Thursday, October 31, 2019

पत्थर हैं हम -मंजुल भारद्वाज

पत्थर हैं हम
-मंजुल भारद्वाज
पत्थर हैं हम
जी रहे हैं
अपने अंदर अपने हिस्से की
आग समेटे हुए
बहुतेरे तुनक मिज़ाज होते हैं
जरा सी चोट लगने पर बिखर जाते हैं
थोड़े समझदार होते हैं
वो आशियाने की नींव बनकर
जिंदगी गुजार जाते हैं
चंद वक्त से जूझना जानते हैं
वो इतिहास के शिलालेख हो जाते हैं
वो जो अपनी आग को तराशना जानते हैं
दुनिया की सुंदर कलाकृति बनते हैं
अपनी आग़ से रोशन करते हैं जीवन
उस चेतना में गढ़ते हैं
अपना कल्पना संसार
जी हाँ वही तो हैं कलाकार
मील का पत्थर बन
भटकते मानवीय कंकालों को
इंसानियत की राह दिखाते हैं!
...
#पत्थर #आग़ #कलाकार #मंजुलभारद्वाज

सतत - मंजुल भारद्वाज

सतत
-मंजुल भारद्वाज
स्पेस, समय, साध्य
साधना,समन्वय,सम्प्रेष्ण
सीमा,क्षितिज,सहर
सुर, संगीत, सृजन
सतत..सतत..सतत!
...
#सतत #क्षितिज #सहर #मंजुलभारद्वाज

ध्येय - मंजुल भारद्वाज

ध्येय
-मंजुल भारद्वाज
आकार,संरचना,
ठोस,स्थाई
पर जड़
संस्थान की प्राण उर्जा है
उसका ध्येय
ध्येय को साध्य करने के लिए
क्रिया,कर्म,क्रियाकलाप
क्रियाकलापों का संस्कार एक रूढ़ी
रुढियों की जड़ता को
नवसृजित करती है ‘चेतना’!
...
#ध्येय #चेतना #मंजुलभारद्वाज

रोमांस - मंजुल भारद्वाज

रोमांस
- मंजुल भारद्वाज
व्यक्तिगत रोमांस में
लब सिल जाते हैं
शर्म-ओ- हया की चादर
सारे जिस्म को ढक लेती है
दो जिस्म एकाकार हो जाते हैं
एक रूहानी सृजन के लिए

देश से रोमांस में लब खुल जाते हैं
शरीर क़ुर्बानी के लिए तैयार होता है
साँसों में क्रांति का सरगम
लबों पर क्रांति गीत सजते हैं

दूर तक कारवां सजता है
संघर्ष में चलते कदम
अपने लहू से सजाते हैं
आज़ादी का गुलिस्तान
चमन में सदियों तक
मुस्कुराते फूलों के खिलने के लिए!
.......
#रोमांस #फूल #मंजुलभारद्वाज

चैतन्य -मंजुल भारद्वाज

चैतन्य
-मंजुल भारद्वाज
‘चैतन्य’ निजता का ध्वंस कर
एकाकार को सृजित करता है!
व्यवहार व्यक्तिगत का निर्माण कर
‘निजता’ को जन्मता है!
‘कलाकार’ ‘चैतन्य’ का स्वामी
व्यक्ति ‘निजता’ का गुलाम!
‘निजता’ की जंजीरों को
कलाकार अपने ‘चैतन्य’ से तोड़कर
उन्मुक्त होकर
व्यापक ‘क्षितिजों’ में रचता है
एकाकार ‘कलात्मक’ ब्रह्माण्ड!
....
#चैतन्य #कलाकार #मंजुलभारद्वाज

मनोरोगियों की बहस का पाखंड - मंजुल भारद्वाज

मनोरोगियों की बहस का पाखंड
-मंजुल भारद्वाज
आज गांधी के सूत
भगत की कुर्बानी
अम्बेडकर के संविधान
और
नेहरु के लोकतंत्र में
कलफ़धारी खादी के पोशाकों की नुमाइश होगी

बहस का पाखंड अपने चरम पर होगा
रोगी-मनोरोगी के तर्क-कुतर्क का ढ़ोंग
राष्ट्र के सामने लाइव पेश होगा
आत्म मुग्ध तानशाह झूठ से
करेगें तार तार संसद की मर्यादा को
भक्त मेज पीटते हुए
जयश्रीराम का जयकारा लगायेंगें
संसद की सरपंच सरकार की
कठपुतली की भूमिका सारे नियमों को
ताक़ पर रखकर निभायेंगी

विश्वास – अविश्वास का खेल
‘नीति’ की बजाए आंकड़ों की
बिसात पर होगा
जहाँ लोकत्रंत्र के ठेकेदार
मलाई देखकर रंग बदलेगें
विकास खूब गरजेगा
बस किसान की आत्महत्या
महिलाओं की सुरक्षा
युवाओं के रोज़गार
साम्प्रदायिक हाहाकार पर
होगा सन्नाटा

स्वतंत्रता सेनानियों के बुतों को निहारते हुए
संसद के किसी कोने में पड़ा लोकतंत्र
‘खामोश’ करहाता रहेगा

व्यक्तिवाद में आकंठ डूबा मनोरोगी
56इंच का सीना लिए
फिर जुमलेबाजी के रिकार्ड रचेगा
आत्महीनता से ग्रस्त मनोरोगियों की भीड़
राष्ट्र को लिंचतन्त्र में बदलती रहेगी

न्याय का ‘दीपक’ राम के नाम जलेगा
और फूंक डालेगा संविधान की आत्मा को
देशवासियों की आह आसमान से टकराएगी
आसमान खूप रोयेगा
मध्यमवर्ग खूब नहायेगा ‘सुहाने’ मौसम में
मीडिया की मंडी में नेशन वांट टू नो का
बाज़ार सजेगा
चोरों ओर शोर ही शोर होगा
संवाद और विवेक का गला घोंटता हुआ!
...
#संसद #लोकतंत्र #राम #न्याय #मंजुलभारद्वाज

गंतव्य - मंजुल भारद्वाज

गंतव्य
- मंजुल भारद्वाज
यादों,आकांक्षाओं का सिलसिला
मन के राडार पर तीव्र गति से
घूमता हुआ

रनवे पर उतरते और उड़ान भरते
उड़नखटोलों की तरह!

एक ख्वाब के गंतव्य पर पहुंचने की खुशी
दूसरे का गंतव्य पर रवाना होने का रोमांच !
अनोखा ,अनकहा
रोमांच और रहस्य का
मनस्वी संसार
अपने गंतव्य की उड़ान भरता हुआ!

ये पढ़े लिखे हैं - मंजुल भारद्वाज

ये पढ़े लिखे हैं
- मंजुल भारद्वाज

ये पढ़े लिखे हैं
कबीर को ‘व्याकरण’ पढ़ायेंगे


ये प्रशिक्षित हैं ‘एकलव्य’ को
धनुर्विद्या सिखायेगें

ये वर्णवाद को पूजते हैं
नानक को ‘एक पंगत,एक संगत’ का
पाठ पढ़ायेंगे

ये सरकारी सांसों पर
जीने वाले निराधार
आपका आधार बनाएंगे !....


सत,सूत और सूत्र - मंजुल भारद्वाज

सत,सूत और सूत्र

- मंजुल भारद्वाज

अचंभित करने वाला

भ्रमित दौर है

‘लोकतंत्र’ संख्या बल का शिकार हो गया

पैसा और जुमला हावी हो गया

‘विवेक’ और विनय पर अंहकार छा गया

संविधान, तिरंगा खिलौना हो गये

अपने अपने रंग में सब नंगे हो गए

भगवा,हरा,लाल और नीला

चुनकर सब निहाल हो गए

इन्सान और इंसानियत लहूलुहान हो गए

भारत की विविधता के विरोधाभास

स्वीकारने का साहस,

गांधी का उपहास हो गया

बनिया है,बनिया है के शोर में

हर भारतीय से संवाद एक सौदा हो गया

सत्य के प्रयोग भ्रम हो गए

खुलापन और सबकी स्वीकार्यता

गाँधी के पाखंड हो गए

जिनको चाहिए था बस अपना

तुष्ट हिस्सा

वो तुष्टीकरण का शिकार हो गए

आज़ादी का जश्न मातम हो गया

गांधी के चिंतन की चिता पर

अपने अपने रंगों की ताल ठोक

पूरी युवा पीढ़ी को भ्रमित कर

कई राम,कई अम्बेडकर और

कई मार्क्स की सन्तान हो गए

अस्मिता,स्वाभिमान और पहचान

के नाम पर जपते हैं अपने अपने

भगवान की माला

और आग लगाते हैं उसी धागे को

जो जोड़ता है,पिरोता है

एक सूत्र में विविध भारत को

अपने सत और सूत से

जिसका नाम है ‘गांधी’!

#गांधी #अम्बेडकर #मार्क्स #मंजुलभारद्वाज

अभिमन्यु का निर्णय - मंजुल भारद्ववाज

अभिमन्यु का निर्णय
- मंजुल भारद्ववाज
दृष्टि के 360 डिग्री गोलाकार
सर्वव्यापक,समग्र सृष्टि के रचने की
प्रतिबद्धता का परचम लहराते हुए योद्धा
संसार को कलात्मक मुक्ति का
गीता उपदेश दे,
विजय पताका फहराते हुए
अपने संसार में लौट आये
तत्व,व्यवहार,प्रमाण और सत्व का चतुर्भुज लिए
मंथरा ने अपनी भूमिका निभाई
कैकयी ने मध्यमवर्गीय
आन बान शान के हनन के जुर्म में
अभिमन्यु को ‘निर्णय’ के
चक्रव्यहू में घेर लिया
चतुर्भुज सता संघर्ष में
त्रिकोण को गया,
सत्व का कोण छिटक गया
पितृसत्तात्मकता के डंडे पर
तत्व और प्रमाण
आरोप प्रत्यारोप में उलझ गए
देखते ही देखते व्यवहारिकता ने
अपना दामन फ़हरा दिया
घर आँगन खुशियों से भर गया
अभिमन्यु के समर्पण करते ही
मंथरा और कैकयी ने अपने होने का जश्न मनाया
मौसमी बरसात में ‘संसार’ की खुशियाँ लौट आई
चतुर्भुज के तत्व, प्रमाण और सत्व
महानगर के गंदे नालों में बह गए
हाँ व्यवहारिकता का पितृसत्तात्मक डंडा
सुखी ‘संसार’ के दरवाज़े पर
मजबूती से प्रगतिशीलता का
राग अलाप रहा है !
क्रांति क्रांति क्रांति मात्र एक बिंदी के
रूप में माथे पर सजती है
सांस्कृतिक चेतना मौसमी
बादलों की चादर में छुप कर देखती है
सता संघर्ष का ये नायाब खेल
वो लोग खेलते हैं
जो हर पल कहते हैं
मेरा ‘राजनीति’ से कोई लेना देना नहीं
हाँ , उनकी बात सही भी है
बेचारे मध्यमवर्गीय...बस अपने
संसार के विकास को सबका विकास मानते हैं !
....
#अभिमन्यु #राजनीति #सत्ता #कलात्मकता #मंजुलभारद्वाज

गूढ़ - मंजुल भारद्वाज

गूढ़
- मंजुल भारद्वाज
व्यवहार,व्यवहारिक,व्यवहारिकता
आपको जीवन भर
अपने पाश में जकड़े रहती है
आपको पल पल समझौता
करने को विवश करती है
आपके तत्व की रीढ़ को तोड़
रेंगने को बाध्य करती है!

दुनिया वाले फिर यह समझाते हैं
यही जीवन और संसार है
फिर कोई सिद्धार्थ भागता है
अपने बुद्ध से मिलने !

बुद्ध लौटता है इसी संसार में
व्यवहारिकता से उन्मुक्त करने के लिए
उलझ जाता है संसार की व्यवहारिकता में
वसुंधरा सोचती है जीवन भर
बुद्ध होने का सार क्या है?

संसार के होने को स्वीकारते हुए
जो स्थिति, परिस्थिति को बदल सकता है
स्थिति की जड़ता की जकडन को तोड़कर
जीवन के सत्व को मानवीय दृष्टि से
उत्प्रेरित और प्रवाहित करता है!

व्यवहारिकता से मुक्ति का मार्ग है
सतत सचेत तात्विक जीवन
जहाँ व्यवहारिकता सिर्फ़ नमक जितनी हो
जो शरीर को सत्व के समुद्र से तार दे
दृष्टि ,चिंतन, विचार का अमर करते हुए!
#गूढ़ #मंजुलभारद्वाज

रंग हैं - मंजुल भारद्वाज

रंग हैं
- मंजुल भारद्वाज
हम रंग हैं
रंग हैं,रंग हैं
हम रंग हैं
कुदरत के
खिलते हैं धरा पर फूल बनकर
सजाते हैं नभ को इंद्रधनुष बनकर
हम खूश्बु हैं
महकतें हैं फूलों में
हम ध्वनि हैं
चहकते हैं पंछियों में
हम लय , ताल
स्वर और सुर हैं
सजते हैं कोयल के गान में
हम प्रतिबद्ध हैं
तपस्वियों से खड़े हैं
देवदार,पीपल और बरगद की मानिद
हम चल विचल चंचल हैं
बहते हुए झरनों की तरह
हम आत्म मंथन में लीन हैं
समुद्र की भांति
हम नकरात्मकता के लिए खार हैं
सकारात्मकता का स्त्रोत
सृजना का गोमुख
साधना का कैलाश हैं

हम रंग हैं,बहुरंग हैं
सप्तरंग हैं जीवन के
जो आप में बसते हैं
आपके आसपास रहते हैं
उम्मीद, सपने, उत्सव बनकर
हम समय हैं
हमारा युद्ध 'समय,' से है
'समय' के लिए
क्योंकि 'समय' जीवन हैं!

#रंग #मंजुलभारद्वाज

Wednesday, October 30, 2019

कालचक्र को भेदता कलाकार - मंजुल भारद्वाज

कालचक्र को भेदता कलाकार
-मंजुल भारद्वाज
कल्पना.यथार्थ
छवि. अक्स
एकांत, समूह
प्रकृति.प्रवृति
संघर्ष,संवेदना
धारणा,व्यवस्था
समस्या,समाधान
समर्पण,सत्व
खोज, सृजन
एक प्रकिया
एक रहस्य
अनुभूति,रोमांच
अमूर्त..मूर्त..अमूर्त
के कलाचक्र को
अपनी कला से भेदता
बांधता,रचता,
गति,गन्तव को
उत्प्रेरित,सुभाषितसम्प्रेषित करता कलाकार!


#कलाकार #मंजुलभारद्वाज

भंवर - मंजुल भारद्वाज

भंवर
- मंजुल भारद्वाज
सपनों का भंवरा
घूमता रहता है
कल्पना लोक के नाभि पटल पर
समय के भंवर में लिपटा हुआ

भंवर के चक्र के चक्र को
नए कक्ष में स्थापित करता है
अपनी इच्छा शक्ति
समर्पण और प्रतिबद्धता से
सृजनकार
परत दर परत
काल की परतें
खोलता हुआ
जीवन भंवर में
उलझे मनुष्य को
पशुता से उभारता हुआ!
...
#भंवर #मंजुलभारद्वाज

अनहद नाद ... मंजुल भारद्वाज

अनहद नाद
... मंजुल भारद्वाज
नाद है यह अनहद
अनहद की है नाद
अनहद नाद ,मेरा
तुम्हारा ,हम सबका प्यारा
न्यारा नाद ,अनहद नाद

सचेत से परे अचेत
सत्व और अस्तित्व
होने ,अनहोने के परे
का नाद ,अनहद नाद

लिप्त ,अलिप्त
सुप्त ,विलुप्त
जागा सोया ,खोया पाया
दिव्यता के सहज भाव
का नाद , अनहद नाद

रमता ,बसता
लिपटा पसरा
सृजन का स्त्रोत
निरंतर गूंजता रहता
नाद , अनहद नाद
................
#अनहदनाद #मंजुलभारद्वाज

यादें हमेशा अकेली होती हैं - मंजुल भारद्वाज

यादें हमेशा अकेली होती हैं
-मंजुल भारद्वाज
यादें हमेशा अकेली होती हैं
अपना भरा पूरा संसार लिए
अपने हिस्से की ख़ुशी,गम
रोमांच और रहस्य समेटे हुए
तबाक से चली आती हैं
ठहरे हुए ‘समय’ में
प्राण फूंकती हुई यादें !

यादें ही सिर्फ़ निजी होती हैं
जिस पर किसी हुकुमत का
ज़ोर नहीं चलता है
‘मन’ के समन्दर की लहरों पर
तैरती हैं यादें
अपने सर्द गर्म अहसास में
भिगोते हुई यादें !

स्मृति की सल्तनत का
खज़ाना हैं यादें
तन्हाई की पुरवाई हैं यादें
बेमौसम की फुहार
बसंत की बहार हैं यादें

संस्कृति की धरोहर
वर्तमान में अतीत की
पदचाप हैं यादें
हर रंग में लपटे हुए
‘भावों’ का गुलदस्ता हैं यादें!

कहीं मौत का क्रन्दन
कहीं जन्म की किलकारी
प्रकृति के समभाव का
दस्तावेज़ हैं यादें!
...

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...