Tuesday, March 21, 2023

सत्यम,शिवम्,सुन्दरम -मंजुल भारद्वाज

सत्यम,शिवम्,सुन्दरम 

-मंजुल भारद्वाज 

सत्यम,शिवम्,सुन्दरम   -मंजुल भारद्वाज


अपनी कला से 

दुनिया को

मानवीय विष से 

मुक्त करता है कलाकार !

फिर

समुद्र मंथन के विष को 

अपने कंठ में 

धरने वाले शिव 

क्यों समाधिस्त है?

क्या

विष से मुक्त होने के लिए?

या

एक ऐसा कला व्यक्तित्व 

घड़ने के लिए 

जो विष के प्रभाव से मुक्त हो !

विषग्रस्त कलाकार  

विकारग्रस्त हो 

स्वयं का 

आत्मघात करेगा !

शरीर जर्जर हो 

प्रतिरोधक शक्ति का 

ह्रास करेगा !

शरीर व्यक्ति का होता है 

व्यक्ति कला- भाव धारण कर 

शरीर को 

कलाकार बनाता है !

कला भाव यानी 

विकार को निरस्त करती 

चैतन्य उर्जा 

जो बिखेरती है  

विविध रंग !

रंग तरंगित हो

स्पंदित होते हैं 

दर्शक संसार 

कलात्मक तरंगों की अनुभूति से 

विषमुक्त होता है !

जीवन चक्रव्यूह में 

दर्शक संसार का त्यागा विष 

कलाकार की कलात्मक तरंगों पर 

प्रतिवार कर 

उनको कुंद करता है !

तरंगें कलाकार की कलात्मक 

उर्जा का क्षय कर 

कलाकार के शरीर को घेरती हैं !

सतत कलात्मक तरंगों के  

सृजन चक्र को स्पंदित कर

विष को निष्क्रिय करना 

कलाकार की अनिवार्यता है !

तभी कलाकार 

सत्यम शिवम सुन्दरम के 

कलात्मक स्वरूप को 

साध सकते हैं!

#सत्यमशिवम्सुन्दरम #मंजुलभारद्वाज


अग्नि -मंजुल भारद्वाज

 अग्नि 

-मंजुल भारद्वाज 

संवेदनाओं पर जमी 

बर्फ़ को पिघलाती

सर्द आहों के बीच जलती 

प्रेम अग्न  !

इश्क़ में सुलगता दिल

जिस्म की तपिश 

पेट की आग़

मोहब्बत का जलता चराग़ !

नफ़रत के धुएं से घिरा 

ईर्ष्या में जलता विकार 

चैतन्य में तपता विचार 

अमन के लिए जली मोमबत्ती !

जीवन अग्न लिए 

वसुंधरा के गर्भ में 

पलता 

धधकता लावा !

मौत का जश्न मनाती  चिता 

अपने को 

सूर्य में तपाती अग्नि 

सबको मुक्त करती है!

अग्नि   -मंजुल भारद्वाज

#अग्निसबकोमुक्तकरतीहै #मंजुलभारद्वाज

Monday, March 20, 2023

पानी -मंजुल भारद्वाज

 पानी 

-मंजुल भारद्वाज

प्यासे का ख़्वाब 

आब-ए-हयात है पानी!

आँखों में बसा ईमान 

पूरी कायनात की मुराद है पानी !

सब्ज़ा का शबाब 

बहते दरिया का रुबाब है पानी !

वसुंधरा का श्रृंगार

रूह में जलता चराग़ है पानी !

पानी   -मंजुल भारद्वाज

फ़ोटो : Dhananjay Kumar


Tuesday, March 14, 2023

विकास का पोस्टर -मंजुल भारद्वाज

 विकास का पोस्टर 

-मंजुल भारद्वाज 

विकास का पोस्टर   -मंजुल भारद्वाज


मोशा के विकास का 

सर्वहारा पोस्टर 

जुमलों से लुटी 

उम्मीद की सूखी 

नदी के किनारे 

सपनों की जलती 

चिता को देख

पथराई आँखें 

विकारी संघ के

शिकंजे में फंसी

अपनी संतानों की 

बर्बादी के मरघट में 

ज़िंदा रहने के लिए

उम्र के इस पड़ाव पर  

बेबसी को श्रम की 

सार्थकता से हराती हुई 

मिर्ची,प्याज,आलू 

चुकन्दर बेचती 

बूढ़ी भारत माँ!

#भारतमाँ #मंजुलभारद्वाज

कला दृष्टिगत सृजन राजनीति सत का कर्म! -मंजुल भारद्वाज

कला दृष्टिगत सृजन 

राजनीति सत का कर्म!


-मंजुल भारद्वाज 

कला दृष्टिगत सृजन  राजनीति सत का कर्म!  -मंजुल भारद्वाज


कला आत्म उन्मुक्तता की सृजन यात्रा 

राजनीति सत्ता,व्यवस्था की जड़ता को 

तोड़ने का नीतिगत मार्ग 

कला मनुष्य को मनुष्य बनाने की प्रक्रिया 

राजनीति मनुष्य के शोषण का मुक्ति मार्ग 

कला अमूर्त का मूर्त रूप 

राजनीति सत्ता का स्वरूप 

कला सत्ता के ख़िलाफ़ विद्रोह 

राजनीति विद्रोह का रचनात्मक संवाद 

कला संवाद का सौन्दर्यशास्त्र 

राजनीति व्यवस्था परिवर्तन का अस्त्र 

कला और राजनीति एक दूसरे के पूरक 

बाज़ार कला के सृजन को खरीदता है 

सत्ता राजनीति के सत को दबाती है 

जिसकी चेतना राजनीति से अनभिज्ञ हो 

वो कलाकार नहीं 

चाहे बाज़ार उसे सदी का महानायक बना दे 

झूठा और प्रपंची सत्ताधीश चाहे

लोकतंत्र की कमजोरी, संख्याबल का फायदा उठाकर  

देश का प्रधानमन्त्री बन जाए 

पर वो राजनीतिज्ञ नहीं बनता 

राजनीतिज्ञ सर्वसमावेशी होता है 

सत उसका मर्म एवं संबल होता है 

कलाकार पात्र के दर्द को जीता है 

राजनीतिज्ञ जनता के दुःख दर्द को मिटाता है 

कलाकार और राजनीतिज्ञ जनता की 

संवेदनाओं से खेलते नहीं है 

उसका समाधान करते हैं 

कलाकार व्यक्ति के माध्यम से 

समाज की चेतना जगाता है 

राजनीति व्यवस्था का मंथन करती है 

कला मंथन के विष को पीती है 

राजनीति अमृत से व्यवस्था को 

मानवीय बनाती है 

कला एक मर्म 

राजनीति एक नीतिगत चैतन्य 

दोनों एक दूसरे के पूरक 

जहाँ कला सिर्फ़ नाचने गाने तक सीमित हो 

वहां नाचने गाने वाले जिस्मों को सत्ता 

अपने दरबार में जयकारा लगाने के लिए पालती है 

जहाँ राजनीति का सत विलुप्त हो 

वहां झूठा,अहमक और अहंकारी सत्ताधीश होता है

जनता त्राहिमाम करती है 

समाज में भय और देश में युद्धोउन्माद होता है 

हर नीतिगत या संवैधानिक संस्था को ढाह दिया जाता है 

इसलिए 

कला दृष्टि सम्पन्न सृजन साधना है 

और 

राजनीति सत्ता का सत है 

दृष्टि का सृष्टिगत स्वरूप है 

दोनों काल को गढ़ने की प्रकिया 

दोनों मनुष्य की ‘इंसानी’ प्रक्रिया!

...

#कला #राजनीति #मंजुलभारद्वाज

Monday, March 13, 2023

मैं विचार हूँ ! -मंजुल भारद्वाज

 मैं विचार हूँ ! -मंजुल भारद्वाज

मैं विचार हूँ ! -मंजुल भारद्वाज

मैं विचार हूँ 
खरपतवार नहीं 
हर जगह नहीं उगता 
मुझे उगाना पड़ता है 
व्यवहार की कसौटी पर 
साधना पड़ता है!
विचार होना 
मनुष्यता का होना है 
विवेक के आलोक में 
इंसानियत को साधना होता है !
देह का पेट होता है
जीने के लिए 
पेट भरना अनिवार्य है 
पर पेट भरना जीवन नहीं 
जीवन होना मतलब 
विचार का होना है !
विचार सरल होता है 
व्यवहार भौतिक सुख की 
चरम प्राप्ति में उलझा हुआ
भौतिक संसाधनों को 
नियंत्रित करती है सत्ता 
सत्ता के सूत्र होते हैं 
साम,दाम,दंड,भेद 
यही द्वंद्व है 
विचार और व्यवहार का !
ज़िंदगी में हर समय 
व्यवहार के बादल छाये रहते हैं 
जो विचार सूर्य को ढक लेते हैं 
व्यवहार के काले घने बादलों को हटा 
विचार सूर्य से रूबरू कराती है कला
कला मनुष्य को 
इंसानी संवेदना से प्रज्वलित कर 
न्याय,समता और स्वतंत्रता के 
आसमान में स्वछंद उड़ान देती है 
इस उड़ान की ज़मीन है विचार ! 

कलम - मंजुल भारद्वाज

 कलम 
- मंजुल भारद्वाज

कलम - मंजुल भारद्वाज


क किस्सागोई 
ल लोकतंत्र
 मुफीद 
कलम वो किस्सागोई थी
जो लोकतंत्र के लिए 
मुफीद हो !
क अब भी कायम है
बस ल और म ने
अपनी जगह बदल ली
कलम अब कमल हो गई!
अब किस्सागोई 
लोकतंत्र के लिए नहीं
सत्ताधीश की मुफीद हो गई!

क्या चुनाव सिर्फ़ नेता का भाषण भर है? -मंजुल भारद्वाज

क्या चुनाव सिर्फ़ नेता का भाषण भर है?

-मंजुल भारद्वाज 


क्या चुनाव सिर्फ़ नेता का भाषण भर है?  -मंजुल भारद्वाज

क्या चुनाव का मतलब 

नेताओं की रैलीयाँ 

भाषण और भीड़ की तालियाँ भर है?

क्या चुनाव मुनाफाखोर 

मीडिया का विज्ञापन भर है?

क्या चुनाव प्रीपोल सर्वे 

और उस थूक बिलोते तथाकथित 

चुनावी पंडितों की चक्कलस भर है?

क्या चुनाव पूंजीपतियों का 

सट्टा बाज़ार है भर है?

क्या चुनाव पूंजीपतियों का 

मुनाफ़ा वायदा कारोबार है?

या 

चुनाव जनता के दुःख दर्द 

निवारण का नीतिगत जनमत है

क्या जनता को भीड़ में 

सिर्फ़ तालियाँ बजानी हैं 

या सरकार से हिसाब भी लेना है?

हर चुनावी प्रतिनिधि से 

दृष्टिपत्र पर विमर्श करना है 

या सिर्फ़ जयकारा करना है 

क्या जनता ने चुनाव को समझा है

या जनता नेता,भीड़, भाषण 

रैली,टीवी की नकली बहस के 

षड्यंत्र के चक्रव्यूह में उलझी है?

जनता को अपना भविष्य 

स्वयं लिखना है 

नीतिगत विचार विमर्श करना है

अपने मुद्दों पर मनन,मंथन कर  

झूठे,फ़रेबी जुमलों की बजाए 

नीति,स्वयं,प्रेम और सौहार्द को चुनना है!   

….

#चुनाव #मंजुलभारद्वाज


Saturday, March 11, 2023

संविधान के नमक का कर्ज़ अदा करो! -मंजुल भारद्वाज

 संविधान के नमक का कर्ज़ अदा करो!

-मंजुल भारद्वाज 

संविधान के नमक का कर्ज़ अदा करो!  -मंजुल भारद्वाज



दुर्योधन आर्य था 
आर्य यानि आज का हिन्दू 
भीष्म हिन्दू था 
द्रोणाचार्य हिन्दू था 
भीष्म और द्रोणाचार्य ने 
दुर्योधन के नमक का 
कर्ज़ अदा किया 
और मारे गए !
जब विधि,विधान,संविधान 
नीति से बड़ा व्यक्ति के 
नमक का कर्ज़ हो जाए 
तो विध्वंस अटल है !
सतापिपाशु वहशी दरिंदा 
ना हिन्दू होता है 
ना मुसलमान 
वो सिर्फ़ वहशी दरिंदा होता है !
अपने अपने धर्म के दुलारो
राम और रहीम के प्यारो 
सतापिपाशु वहशी दरिंदों के 
भीड़,भेड़,भ्रम जाल से मुक्त हो !
व्यक्ति नहीं संविधान के नमक का 
कर्ज़ अदा करो 
तभी विध्वंस टलेगा 
आपका प्यारा देश बचेगा! 

साहित्य और सत्ता की टकसाल - मंजुल भारद्वाज

साहित्य और सत्ता की टकसाल  - मंजुल भारद्वाज


सोचता हूं 
साहित्य जिंदा होता तो
भारतीयता त्याग
गर्व से कंकाल होने के 
नारे कौन लगाता?
वैसे साहित्य जिंदा कब था
पाषाण काल में
सामंत काल में 
या भूमंडलीकरण में?
क्या साहित्य 
सत्ता की टकसाल से
चंद सिक्के और शोहरत 
पाने के लिए लिखा जाता है ?
सत्य,समता,न्याय 
अधिकारों के लिए 
लड़ने वालों के पथ में
सत्ता कील ठोक देती है
सूली चढ़ा देती है !
पर जब साहित्यकार को 
सत्ता पुरस्कार देती है
तब सत्ता पुरस्कृत साहित्य 
सत्य,समता,न्याय का उद्घोष नही
सत्ता का जयकारा होता है !

क्या हिंसा राष्ट्रवाद है? -मंजुल भारद्वाज

 क्या हिंसा राष्ट्रवाद है? -मंजुल भारद्वाज

क्या हिंसा राष्ट्रवाद है? -मंजुल भारद्वाज

क्या हिंसा,नफ़रत,द्वेष राष्ट्रवाद है?
क्या हिंसा शौर्य और वीरता है?
क्या आप हिंसक हो गए है?
क्या आप देश को
नफ़रत के हवाले करना चाहते हैं?
क्या आप उन प्रवृतियों को पहचानते हैं
जो हर पल आपको युद्धोउन्माद में झोंक रहे हैं?
क्या आपके अंदर सोचने समझने की शक्ति है
या आप भीड़ में भाषण सुनकर भेड़ बन गए हैं?
क्या एक व्यक्ति देश होता है?
क्या आप आईना देखते हैं
देखिये आईने में कौन नज़र आता है
हिंसक पशु या प्रेम से ओतप्रोत
एक इंसान?
देश हम सबका है
हम क्या चुनते हैं
हिंसा या प्रेम?
फ़ैसला भी हमारा है
आप क्या चुनेगें
अपने लिए,अपने बच्चों के लिए
नफ़रत या सौहार्द
हिंसा या प्रेम?
...


ज्ञान और जीवन लक्ष्य के , काल कोण से निर्धारित होती है परछाई! -मंजुल भारद्वाज

 ज्ञान और जीवन लक्ष्य के , काल कोण से निर्धारित होती है परछाई!

-मंजुल भारद्वाज 



अपनी परछाई से 
मुक्त होना चाहता है 
व्यक्ति,समूह,समाज
हो नहीं पाता 
ताउम्र अपने तमस से 
द्वंद्व कर संसार त्याग 
शरीर छोड़ देता है 
परछाई से मुक्त नहीं होता 
परछाई का प्रकाश से 
अटूट संबंध है 
प्रकाश से संचालित 
होती है परछाई 
प्रकाश यानी ज्ञान 
छाया यानी तम
तमसो मा ज्योतिर्गमय
जीवन का मूल है 
वसुंधरा का प्राण है जीवन 
वसुंधरा सूर्य की परिक्रमा करती है 
सूर्य ज्ञान का स्त्रोत 
ज्ञान मनुष्य को अँधेरे से 
मुक्त करता है 
वसुंधरा के आंगन में 
मनुष्य की परछाई 
सूर्य और वसुंधरा के 
काल कक्ष कोण से 
निर्धारित होती है 
सूर्य सर पर हो 
तो परछाई पैरों के 
तले होती है 
नियंत्रित या विलुप्त होती है
सूर्य और वसुंधरा के 
काल कक्ष कोण की भांति 
मनुष्य का ज्ञान और जीवन लक्ष्य 
जीवन के उजाले-अँधेरे 
तय करते हैं 
ज्ञान का काल कोण
जीवन के लक्ष्य को 
संचालित करे तो 
जीवन कल्याणकारी 
परछाई यानी तम
मुक्त होता है!

Friday, March 10, 2023

अहिंसा मानवता का मुक्ति सूत्र है! -मंजुल भारद्वाज

 अहिंसा मानवता का मुक्ति सूत्र है!

-मंजुल भारद्वाज 
अहिंसा मानवता का मुक्ति सूत्र है!  -मंजुल भारद्वाज




एक हिन्दू राजा था 
कुंठा और हिंसा से लिप्त 
प्रतिशोध की अग्नि में जलता हुआ 
दिन रात तलवार की नोंक से 
अपना आधिपत्य स्थापित करते हुए
मनुष्यों के रक्त से स्नान करता हुआ 
वो युद्ध का उपासक था
एक युद्ध की विभीषका ने 
उसे झकझोर दिया 
उसका विवेक जागा
कलिंग की भूमि ने 
उस हिंसक राजा को 
बुद्ध की शरण में भेज दिया 
राजा ने अहिंसा को अपनाया 
और वो राजा 
दुनिया का चक्रवर्ती सम्राट कहलाया 
बुद्ध के उस अनुयायी ने 
राजनीति को जनकल्याण के 
रूप में प्रस्थापित किया 
सत्ता को न्याय का तख्त बनाया 
मानव के साथ पशु प्राणियों के 
अधिकार को सुनिश्चित किया 
आज भी उसका चक्र 
भारत के तिरंगे की शान है 
उसका चिन्ह 
भारतीय शासन की आन है 
वो है अहिंसा का अनुयायी 
सम्राट अशोक !

सत्ता के विधाता का नाम है आम आदमी! -मंजुल भारद्वाज

 सत्ता के विधाता का नाम है आम आदमी!

-मंजुल भारद्वाज 
सत्ता के विधाता का नाम है आम आदमी!  -मंजुल भारद्वाज


बेचारगी का भाव 
अजर अमर करने वाला 
लाचारी सोने पे सुहागा 
गिडगिडाने में सिद्धहस्त
धर्म का खेवनहार 
है आम आदमी !
इसी आम आदमी को
बेबसी,गरीबी और शोषण चक्र से मुक्त कराने के लिए
अमोघ सत्ता सूत्र से 
अपने को दृष्टा,सृष्टा 
राजनीति के राजसूत्र बताने वाले 
सर्वहारा के मार्क्स
अंतिम व्यक्ति की मुक्ति के महात्मा 
जन्म के संयोग से अभिशप्त 
जनता के मूकनायक आंबेडकर ने
अपने जीवन की आहुति दे दी और
स्वाहा हो गए 
पर यह आम आदमी 
अत्याचार,हिंसा,अन्याय की चादर में 
सत्ता का केंद्र बनकर 
कुम्भकर्ण के निंद्रायोग में समाधिस्त है !
सदाचारी विवेक में तपने वाले 
स्वघोषित आम आदमी के उद्धारक
क्या 
मनुष्य होने की सार्थकता से भागते 
पेट भरने को जीवन का मकसद 
मानने वाले इस आप आदमी के 
सत्ता मन्त्र को जान पाए? 
घाघ है यह आम आदमी 
पेट भरने के सुख के लिए
न्याय,अहिंसा,समता,विवेक का 
हर पल सौदा करता है !
दुनिया का सबसे बड़ा 
अवसरवादी है यह आम आदमी 
अच्छे अच्छे विचारक,सत्ताधीश 
इसके चक्रव्यहू में घूमते रहते हैं 
पर भेद नहीं पाते !
यह आम आदमी पेट भरने के मोक्ष से 
कोई समझौता नहीं करता 
सत्ता बनती हैं 
मिट जाती हैं 
इस आम आदमी के सत्ता सूत्र
बेबसी,गरीबी,शोषण 
आदिकाल से आज तक कायम हैं 
पेट भरता रहे बस 
राजतन्त्र,तानाशाही,लोकतंत्र से 
उसे कोई मतलब नहीं 
नीति,विधान,संविधान से 
कोई सरोकार नहीं 
पेट भरने की दरकार है !
यह आम आदमी ही है 
सत्ता का विधाता 
जो डांट डपट,दमन 
तोप,टैंक,अणुबम से नहीं 
बेचारगी,बेबसी और लाचारी से 
घूमाता है सत्ता का चक्र 
जिसमें पिसकर चले जाते हैं 
अंतिम व्यक्ति के महात्मा
सर्वहारा के मसीहा 
जन्म संयोग के मुक्तिदाता
कायम रहती है 
आम आदमी की भूखी भीड़ 
विवेक,विधि,विधान को बेचकर
मनुष्य होने की सार्थकता से 
भागती अवसरवादी भीड़
इस भीड़ का नाम है 
आम आदमी! 

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...