Friday, July 29, 2022

आजकल - मंजुल भारद्वाज

 आजकल

- मंजुल भारद्वाज

आजकल  - मंजुल भारद्वाज


पहले अपनी सांसों पर जीते थे

आजकल

उधार की सांसों पर

ठाठ करते हैं लोग !


पहले

विश्वास कमाते थे

आजकल बिकने को

विकास समझते हैं लोग !


कहां तो आंधियों में

चराग जलाने की जिद थी

आजकल जलता दीया बुझाने का प्रण लेते हैं लोग !


सच, इकबाल, इंसाफ

कभी मुक्ति की डगर थी

आजकल कमल के नाम पर

झूठ बोल राज करते हैं लोग !




Tuesday, July 26, 2022

फ़लसफ़ा - मंजुल भारद्वाज

फ़लसफ़ा

- मंजुल भारद्वाज

फ़लसफ़ा  - मंजुल भारद्वाज


मुठ्ठी भर ख़ाक में सिमटा

अपेक्षों का आसमान

सांसों में अग्नि 

आंखों में समंदर

तूफ़ानों से मुक़ाबिल 

जज़्बात है ज़िंदगी !

अरमान दुआओं से 

जहां में बिखरते हैं

बनते,संवरते,टूटते हैं

प्रतिशोध के ज्वार को 

क्षमा से शांत कर

प्रार्थना का रुहानी 

अहसास है ज़िंदगी!

वक्त के सफ़ों पर 

अपने होने की 

दास्तां लिख

ख़ाक से उठकर

ख़ाक होने का 

फ़लसफ़ा है ज़िंदगी !

Saturday, July 23, 2022

गर्व का महा पर्व ! - मंजुल भारद्वाज

 गर्व का महा पर्व !

- मंजुल भारद्वाज

गर्व का महा पर्व ! - मंजुल भारद्वाज

विज्ञापनों पर आज़ादी के महापर्व का 

बुखार चढ़ा हुआ है

महापर्व का गर्व टैग लाइन है 

मुनाफाखोरी हाईलाइट है 

सरकारी रेवड़ियों से सजे 

पद्मश्री से नवाज़े भांड 

भूखे देश का पेट देशभक्ति से भर देंगे

लोक प्रतिनिधियों की सरेआम ख़रीद-फ़रोख्त

बेशर्मी,नंगई को बाज़ार से ढक देंगे !

ग़रीबी,मुफ़लिसी,जात-पात 

हिन्दू –मुसलमान नफ़रत

श्मशान की राख़

कब्रिस्तान की ख़ाक की आंधी से 

घिरा हुआ गांधी 

स्वच्छता अभियान के कीचड़ से सने 

अपने चश्में को साफ़ करते हुए 

संविधान में धर्मनिरपेक्षता 

और 

सरकार में सत्यमेव जयते खोज रहे हैं !

गोडसे गाँधी को नमन करते हुए 

गांधी को हिन्दू राष्ट्र दिखा रहे हैं 

गर्व से बता रहे हैं 

बापू देखो मेरे सपनों का हिन्दू राष्ट्र 

बापू मौन हैं 

सर्वोच्च न्यायालय बापू पर अर्धनग्न होने पर 

सामाजिक शुचिता भंग करने का मुकदमा चला रहा है 

गोडसे दस लाख़ का सूट पहनकर गवाही दे रहा है !

नेहरु,सरदार पटेल,भगत सिंह,आंबेडकर 

अपने क्रिया कलापों कर मन्त्रणा कर रहे हैं 

इनके अनुयायी एक एक करके 

खुद को गोडसे के हवाले कर रहे हैं 

गोडसे सबको मालामाल कर रहा है

जेड प्लस सुरक्षा के घेरे में 

नेहरू,पटेल,आम्बेडकर के अनुयायी 

मन्त्रणा करते हुए

नेहरु,सरदार पटेल,भगत सिंह,आंबेडकर को 

कुचल रहे हैं !

देश की मालिक जनता 

हम भारत के लोग को 

पांच किलो अनाज़ में बेचकर 

मंदिर के सामने लाइन में खड़े हो

झूठन का इंतज़ार कर रहे है

मंदिर में लगे बड़े टीवी स्क्रीन पर 

आज़ादी के महापर्व के जश्न को 

गर्व से देख रही है .... !


 #गर्व,#महापर्व,#देशभक्ति,#मंजुल भारद्वाज

प्रतीकात्मक लोकतंत्र घातक है ! - मंजुल भारद्वाज

प्रतीकात्मक लोकतंत्र घातक है !

- मंजुल भारद्वाज

#प्रतीकात्मक #लोकतंत्र  #मंजुलभारद्वाज

लोकतंत्र घूमता है 

लोकप्रियता के पहिये पर 

जहाँ ‘पूंजी’ का इंजन 

‘तन्त्र’ को दौड़ाता है 

मन मुआफ़िक दिशा में 

अपने अंदाज़ और आवेग में 

नीति और विवेक दौड़ते है 

उसके पीछे पीछे हांफते हुए 

देखते और दिखाई देते है 

मुख्य धारा , दर, दरवाज़े की बजाय 

‘विकल्प’ की खिडकियों से झांकते हुए !

लोकतंत्र की सबसे बड़ी शक्ति है 

लोक सहभागिता 

उस सहभागिता की राजकीय वैधता 

लोकतंत्र की त्रासदी है 

प्रतीकात्मक सहभागिता 

घातक है ‘लोकतंत्र’ के लिए !

‘प्रतीकात्मकता’ विद्रूपता बनकर

ज़ोर ज़ोर से ठहाके लगाती है 

और बडबड़ाती रहती है 

जनता का 

जनता के लिए 

जनता के द्वारा 

लोकतंत्र 

लोकतंत्र 

लोकतंत्र ... !

#प्रतीकात्मक #लोकतंत्र  #मंजुलभारद्वाज


Thursday, July 21, 2022

कमाल का लोकतंत्र है भारत ! -मंजुल भारद्वाज

 कमाल का लोकतंत्र है भारत !

-मंजुल भारद्वाज

कमाल का लोकतंत्र है भारत !  -मंजुल भारद्वाज

कमाल का लोकतंत्र है भारत

जनता झूठ को सच मानती है 

झूठों को सत्ता पर बिठाती है 

झूठे झूठ बोलकर राज करते हैं 

छाती ठोककर जनता को लूटते हैं 

जनता लुटकर धन्य हो जाती है 

झूठों की सरकार जितना जनता को लूटती है 

जनता उतनी ज्यादा वोट झूठों को देती है !

झूठों ने नोटबंदी कर दी 

जनता बैंकों के सामने सारा काम धाम छोड़ कर लाइन में लगी 

दिन रात भूखी रही 

पुलिस से पिटी

खुद मरी 

बच्चे मरे 

पर काले नोट बदल कर सफ़ेद कर लिए 

जनता ने भारत में काले नोट बदल लिए 

और कमाल यह हुआ कि स्विस बैंकों में जमा 

भारत का पैसा सफ़ेद हो गया 

एक पैसा भारत वापस नहीं आया 

उल्टा दुगना भारत से निकलकर 

स्विस बैंकों में जमा हो गया 

काले धन को इस तरह झूठों ने सफ़ेद किया 

छोटे उधोग धंधे बंद हो गये 

व्यापारी बर्बाद हो गए 

पर जनता खुश हुई 

उसने देश की अर्थ व्यवस्था को बर्बाद करने वाले तुगलक़ को फिर चुना 

और देश का शहंशाह बना दिया !

झूठ जनता को पसंद है 

शहंशाह जान गए 

इस बार शहंशाह ने जनता के प्राण लिए 

47 लाख लोगों का संहार किया 

लोग एक एक सांस के लिए तड़पे

घर घर मसान बन गया 

श्मशान और कब्रिस्तान कम पड़े गए 

करोड़ों मज़दूर विस्थापन हुए 

पर शहंशाह ने 5 किलों राशन से मतदातों को खरीद लिया 

जनता ने शहंशाह के नमक का कर्ज़ चुकाया 

और जनता ने पूरा देश शहंशाह के नाम कर दिया !

शहंशाह ने पेट्रोल डीजल पर जज़िया लगा दिया 

10 साल से हिन्दू बनी जनता ने उसे स्वीकार किया 

गर्व से हिन्दू होने का नारा लगाया 

56 इंच के सीने का गुणगान किया 

घास की रोटी खायेंगे 

झूठों तुम्हें जितायेंगे 

हमने शेर को पाला है 

हम ख़ुशी ख़ुशी निवाला हैं !

शहंशाह ने देश बेच दिया 

जनता खुश हुई 

उसका क्या था, उसका क्या है 

जो है शहंशाह का है 

झूठे ने कहा आज़ादी का अमृत काल है 

जनता इसका जश्न मनाये 

जनता ने शहंशाह का शुक्रिया अदा किया 

खुशहोकर शहंशाह ने जनता को इनाम दिया 

आज़ादी के बाद पहली बार 

आटे,दाल,चावल पर जीएसटी लगा दिया

जनता के कहा हमारा शहंशाह कमाल है 

देश को बेच दिया 

पर झुकने नहीं दिया 

देश को कंगाल कर दिया 

पर काले धन को सफ़ेद कर दिया 

हम सब को तीन दिन तिरंगा फ़हराने का आदेश दिया 

हम शहंशाह के आभारी हैं 

हम भूखे रहेंगे 

पर शहंशाह की तिज़ोरी को भरेंगे !

शहंशाह हिन्दू राष्ट्र मना रहे हैं 

अरब के सब मुस्लिमों को गले लगा रहे हैं 

भारत की जनता को जन्नत पंहुचा रहे हैं 

70 साल में ऐसा चमत्कार पहली बार हुआ है 

मूर्छाकाल,मृत्यु काल ,अकाल 

अमृतकाल लग रहा 

संविधान को न्यायालय ने सलीब पर टांग दिया है 

अशोक चिन्ह को उपहास बना दिया है 

सरकारी पयादे शहंशाह के फ़रमान से चलते हैं 

और भांड शहंशाह के गुणगान कर रहे हैं 

न्याय न्याय न्याय की गुहार लगाने वाले 

जेलों में सड़ रहे हैं 

दुनिया में चर्चा है 

शहंशाह बेमिसाल है 

भारत का लोकतंत्र कमाल है !

Sunday, July 17, 2022

वक्त से मत डरो ! - मंजुल भारद्वाज

 वक्त से मत डरो !

- मंजुल भारद्वाज

वक्त से मत डरो !  - मंजुल भारद्वाज

 

वक्त ना बलशाली होता है

ना शक्तिहीन

वक्त ना दुख देता है 

ना सुख

वक्त सिर्फ़ तमाशबीन है

वक्त के हाथ में होता तो

बुराई का अच्छाई पर वर्चस्व नहीं होता

अच्छा या बुरा वक्त नहीं होता

आपका दृष्टिकोण होता है

आपकी दृष्टि आपका जीवन दर्शन है

दृष्टि कमज़ोर तो वक्त बुरा 

दृष्टि समग्र तो वक्त अच्छा 

इसलिए वक्त से मत डरो

उसके सामने भयमुक्त खड़े रहो

अपनी दृष्टि से रची सृष्टि से

वक्त को दिशा दो

नया इतिहास रचो

वक्त से मत डरो

ज़िंदगी का एक एक पल

अपनी दृष्टि सम्मत जियो!

ताकि सनद रहे ... अपने ज़िंदा होने पर शर्मिंदा हूँ ! -मंजुल भारद्वाज

 ताकि सनद रहे  ...

अपने ज़िंदा होने पर शर्मिंदा हूँ !

-मंजुल भारद्वाज 

आजकल मैं श्मशान में हूँ 

कब्रिस्तान में हूँ 

सरकार का मुखिया हत्यारा है 

सरकार हत्यारी है 

अपने नागरिकों को मार रही है 

सरकारी अमला गिद्ध है 

नोंच रहा है मृत लाशों को 

देश का मुखिया गुफ़ा में छिपा है 

भक्त अभी भी कीर्तन कर रहे हैं

इस त्रासदी पर 

देश की सेना पुष्प वर्षा कर रही है 

बैंड बजा रही है 

मैं जलाई और दफनाई 

लाशें गिन रहा हूँ 

रोज़ ज़िंदा होने की 

शर्मिंदगी महसूस कर रहा हूँ 

क्या क्या गुमान था 

कोई संविधान था 

कोई न्याय का मंदिर था 

एक संसद थी 

कभी एक लोकतंत्र था 

आज सभी मर चुके हैं 

ज़िंदा है सिर्फ़ मौत !

#लोकतंत्र #मंजुलभारद्वाज

ख़्वाब कांच के नहीं होते - मंजुल भारद्वाज

 ख़्वाब कांच के नहीं होते

- मंजुल भारद्वाज

ख़्वाब कांच के नहीं होते - मंजुल भारद्वाज


इस भ्रम को निकाल दीजिये

ख़्वाब कांच के नहीं होते

ज़िंदा हाड़ मांस की चेतना से

जन्मते हैं सपने

आँखों में चुभते नहीं

पलकों में सजते हैं

टूटते हैं,बिखरते हैं

तब दर्द उपजाते हैं

आखों में जमीं धूल हटाते हैं

नमकीन जल के ज्वार भाटा में

खूब बरसते हैं

साहिल से टकराते हैं

आपके कवि-कथा रूप को

गढ़ते हैं

संजीदा हो दृष्टि बदलते हैं

आत्म संघर्ष की लौ जलाते हैं

ख़ुद के बिखरे टुकड़ों को जोड़

एक नया व्यक्तित्व रचकर

नया इतिहास बनाते हैं

आपको आपकी नज़रों में

पुन: सजाते हैं

पूरे होने पर

आपको अमर कर जाते हैं

सपने ही अपने होते हैं !

#ख़्वाबकांचकेनहींहोते #मंजुलभारद्वाज

यह समय तुम्हारा है -मंजुल भारद्वाज

यह समय तुम्हारा है

-मंजुल भारद्वाज

पलों ने कह दिया

वो तुम्हारे टुकड़ों को जोडेंगे नहीं

अपितु टुकड़ों के टुकड़ों को पीसकर

एक नई माटी बना देंगे

इस बार इस माटी के

शिल्पकार भी तुम

आकार भी तुम

तुम्हारी दृष्टि

तुम्हारी सृष्टि

यही तो है

आत्म मंथन

आत्म खोज

अध्यात्म की परिणति

सृजनकार वक्त गढ़ते हैं

काल को समय बना देते हैं

यह समय तुम्हारा है !

#यहसमयतुम्हाराहै #सृजनकार  #मंजुलभारद्वाज

जिस्म खोलता रहा - मंजुल भारद्वाज

जिस्म खोलता रहा

- मंजुल भारद्वाज


जिस्म खोलता रहा  - मंजुल भारद्वाज

 

बाज़ार के पैकेज में बंधे युवा

ऐ लाइफ इन मेट्रो

जीने लगे

बाज़ार की शर्तों को

अपना कैरियर समझने लगे

ओह शीट 

ओह माय गॉड 

ज्ञान मत दे यार 

विल कैच यू लेटर के

पासवर्ड से ज़िंदगी को

लॉग इन करने लगे

सम्बन्धों में जीने की बजाए

जिस्म एक पूंजी बन गया

जो बार बार इन्वेस्ट होता रहा

जिस्म के सम्बन्धों को 

लिव इन रिलेशनशिप का नाम दे

मेट्रो मॉडर्निटी का शिकार हो गए

फ्लाइंग, डायनिंग,क्लब 

पब पार्टी में जवानी खप गई

विकास को पिज़्ज़ा ऑर्डर समझ

विकास पर मर मिटे

विकास सत्ता पर बैठ 

दुनिया घूमता रहा

और रोज़गार डूबता रहा

बाज़ार के मॉल में

सजावट का सामान बना युवा

आधुनिकता के नाम पर

विचार खोलने की बजाए

जिस्म खोलता रहा

आज किश्त के फंदे ने

ज़िंदगी को दबोच लिया है

विकास लाशों की गुफ़ा में

ध्यान लगाए बैठा है!

#युवा #मेट्रो #मंजुलभारद्वाज

ताकि सनद रहे... गांव अभी दूर है - मंजुल भारद्वाज

 ताकि सनद रहे...

गांव अभी दूर है
- मंजुल भारद्वाज


ताकि सनद रहे...  गांव अभी दूर है - मंजुल भारद्वाज


जिनके लहू में जान थी
वो चल पड़े
जिनका लहू पानी है
वो बिलों में छुपे रहे
हां आजकल
विकास युग में
चूहे महानगरों में रहते हैं
आलीशान चार दीवारों में कैद
अपना सर्वमूल विनाश देखते हुए
अभिशप्त कौम है
यह ना घर के रहे ना घाट के
गांव के हुए नहीं
शहर इनका होगा नहीं
हां कभी कभी तफ़रीह में
गांव इनके सपनों में आता है
हर बार गांव इनसे दूर हो जाता है
यह शहर के पाताल में
धंसते चले जाते हैं!

Saturday, July 16, 2022

गोधडी - मंजुल भारद्वाज

 गोधडी

- मंजुल भारद्वाज


गोधडी  - मंजुल भारद्वाज

गोधडी माझ्या स्वप्नाची

गोधडी माझ्या सत्वाची

आशेची, मनाची

विवेकाची 

आपल्या सर्वांची

गोधडी

आठवण, साठवण

लहान, तरुण आणि मोठं होण्याची

गोधडी सप्तरंगाची

गोधडी

जगण्याची, जीवन संसाराची 

गोधडी युक्तीची, मुक्तीची

गोधडी !

आप ‘सत्य के प्रयोग’ से डरते हैं! - मंजुल भारद्वाज

 आप ‘सत्य के प्रयोग’ से डरते हैं!

- मंजुल भारद्वाज

आप ‘सत्य के प्रयोग’ से डरते हैं!  - मंजुल भारद्वाज

हाँ लोकतंत्र की ताक़त है बहुमत

लोकतंत्र की कमजोरी भी है बहुमत

जब बहुमत विवेक से उत्प्रेरित हो

तब ताक़त

और उन्माद से संचालित हो

तब कमज़ोरी

हाँ यह भारत का कटु आधुनिक सच है

सत्ता संख्या बल से मिलती है

चाहे वो विचारशील समाज हो

या वर्तमान में भूमंडलीकरण की

संचार तकनीक से लैस भेड़ों की संख्या

सत्ता इसी बहुमत से नीति

कानून और कार्यक्रम संचालित करती है

बिल्कुल संविधान सम्मत

साफ़ साफ़ ‘नोटबंदी’ की तरह

संविधान से प्राप्त मताधिकार से

भेड़ों ने चुनी है वर्तमान सत्ता

जी सहमत हूँ

यह सरकार संविधान सम्मत है

पर क्या विवेक सम्मत है?

आप संख्या में कम हैं

यह कुर्तक देकर अपनी

ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकते

जरा उदाहरण दें बताएं

दुनिया में गांधी कितने हुए

मार्टिन किंग लूथर कितने हुए

महात्मा फुले कितने हुए

सावित्रीबाई फुले कितनी हुईं

भगतसिंह कितने हुए

आंबेडकर कितने हुए 

माई भागो कितनी हुई?

आप विचार को संख्या से तोलना बंद करो

हाँ यह सही है

यह ट्रोल करेंगें

चरित्र हनन करेंगे

अर्बन नक्सल का तमगा देंगें

जेल में ठूंस देंगें

राष्ट्रद्रोह का मुकद्दमा चलायेगें

गोली मार देगें

बिल्कुल ‘गांधी’ की तरह!

तो आप विचार का अलख

जगाना बंद कर देंगे 

तर्क की मशाल बुझा देंगे

भीड़ गणपति की मूर्ति को

दूध पिलाती रहेगी

और आप जयकारा लगायेंगे 

या विवेक की चेतना जगायेंगे

सच यह है की विचारक कम होते हैं

प्रचारकों का संघ होता है

झूठ सत्ता का प्रपंच है

सत्य कल्याण का मार्ग

और सच यह है की

आप ‘सत्य के प्रयोग’ से डरते हो

और ‘गांधी’ को गाली देते हुए

‘गाँधी’ के देश में रहना चाहते हो

तो जनाब आपसे बड़ा पाखंडी कोई नहीं है

उसी का प्रतिफल है की

आप भूमंडलीकरण से अभिशप्त

गोडसे के भारत में हो

इसे स्वीकार कर

गाँधी के भारत का निर्माण करो

या 

गांधी के फ़ोटो पर माला डाल

संघ के संस्कारों की नींद में सो जाओ

निर्णय आपका है!

...

#सत्यकेप्रयोग #बहुमत #लोकतंत्र #मंजुलभारद्वाज

गुदड़ी -मंजुल भारद्वाज

 गुदड़ी 

-मंजुल भारद्वाज

गुदड़ी  -मंजुल भारद्वाज


मेरा मन 

तुझमें जा बसता है 

दिनभर जीवन यथार्थ को साधता है 

रात को तुमसे लिपट कर सो जाता है 

नए अर्थ की तलाश में 

रात भर मन भावन ख़्वाब बुनता है 

एक एक ख़्वाब अपना अपना रंग लिए 

तेरा श्रृंगार करता है 

रंग लेती है तू उसे अपने रंग में 

तेरे रंगों में लिपटा

वो घूमता रहता है

अपने मन को खोजते हुए 

अपने मन का जीवन जीने के लिए 

अपने मन का संसार 

अपने मन का जीवन 

अपने मन की कृति 

अपने मन का संसार 

अपने मन की कृति 

संस्कृति !

क्या है संस्कृति ?

समय के थपेड़ों को सहते हुए 

या समय को सहेजते हुए 

तार तार हुए अपने चिथड़ों को गुंथकर 

जीवन का सार समेटे हुए एक रहस्य

अपने आप अपना भेद खोलती

अपने होने की  

अजर अमर कथा गाती 

एक गुदड़ी !


शिव सृष्टि का प्रथम अर्बन नक्सल है! - मंजुल भारद्वाज

 शिव सृष्टि का प्रथम अर्बन नक्सल है!

-मंजुल भारद्वाज

शिव सृष्टि का प्रथम अर्बन नक्सल है!  -मंजुल भारद्वाज


तुम मर रहे हो पल पल

ओ महान सभ्यता के उतराधिकारी

घुट घुट कर अपने पिंजरे में

हर रोज़ अपने पंख काट रहे हो

सृष्टि को बचाने के लिए

त्रिनेत्र खोलने वाले शिव के उपासको

तुम अपने सारे नेत्र बंद किए

एक महान देश को

मौत के कुएं में धकेल रहे हो

किसलिए?

किसकेलिए?

एक भस्मासुर के लिए?

ज्ञात है तुम्हें भस्मासुर का

आतंक और अंत

अपना सर्वस्व त्याग कर

प्रतिरोध  करने वाली

मिटटी से जन्में भूमिपुत्रों

स्मरण रहे आदिकाल से

शिव प्रतिरोध का सूत्र है

आज की शब्दावली में अर्बन नक्सल

हमारी भक्ति परम्परा है

भक्त भगवान से लड़ जाते हैं

भगवान से सवाल करते हैं

भगवान से तर्क करते हैं

भगवान से डरते नहीं

प्रेम करते है

हे भक्ति परम्परा के वंशजो

उठो अब एक छद्म अवतार से

सवाल करो

भेड़ और भक्त के अंतर को समझ

अपने अंत से पहले

भस्मासुर का हाथ उसके सर रखवा दो

अपने महान देश के लिए

भस्मासुर को भस्म करो

यही शिव की भभूत है

और तुम्हारे लिए संजीवनी!

#शिवसृष्टिकाप्रथमअर्बननक्सलहै #मंजुलभारद्वाज

आंखों में चमकती लक्ष्य लौ से स्पंदित स्थापित मानदंडों को पिघलाती हुई बेलाग आग धधक रही है संवेदनाओं के गर्भ में दृष्टि सम्मत लक्ष्य को साधती हुई !


 

आंखों में चमकती

लक्ष्य लौ से स्पंदित

स्थापित मानदंडों को

पिघलाती हुई

बेलाग आग

धधक रही है

संवेदनाओं के गर्भ में

दृष्टि सम्मत लक्ष्य को

साधती हुई !

- मंजुल भारद्वाज

सत्ता में संख्या की महिमा! -मंजुल भारद्वाज

सत्ता में संख्या की महिमा!

-मंजुल भारद्वाज


सत्ता में संख्या की महिमा! -मंजुल भारद्वाज


संख्या की बड़ी महिमा है

लोकतंत्र में संख्या

सत्ता की चाबी है

चाहे वो भेड़ों की क्यों ना हो

संख्या से सत्ता

सत्ता से ताक़त

सत्ता की ताक़त करिश्मा करती है

चोर को चौकीदार बना देती है

सत्ता पिपाशु को संत

तानाशाह को उदार

लोभी और कामी को फ़कीर बना देती है

सत्ता इतना दु:साहस भर देती है

कोई भी विकारी

लकीरों पर संसद में प्रवचन देता है

जड़ों को काटने का संकल्प ले

लकीरों को बड़ा करने का प्रपंच रचता है

लोक युक्ति की चादर ओढ़

ज्ञान का सागर बनता है

लोकतंत्र में संख्या ज्ञानोदय का

सूक्त वाक्य है

संख्या की महिमा

लोकतंत्र में अपरंपार है!

...

भारत की राष्ट्रभक्त जनता चुप रहेगी! -मंजुल भारद्वाज

भारत की राष्ट्रभक्त जनता चुप रहेगी!

-मंजुल भारद्वाज

पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ गए

जनता चुप रहेगी

मंहगाई बढ़ जाए

जनता चुप रहेगी

नौकरी चली जाए

जनता चुप रहेगी

पगार नहीं मिले

जनता चुप रहेगी

फसल का दाम ना मिले

जनता चुप रहेगी

लोग भूखे मर जाएं

जनता चुप रहेगी

महामारी से लोग मरते रहें

जनता चुप रहेगी

गंगा में लाशें तैरती रहें

जनता चुप रहेगी

मंदिर के लिए दिए चंदे को 

पाखंडी लूट का माल समझकर लूटते रहें 

जनता चुप रहेगी

किसान धरने पर बैठे रहेंगे

जनता चुप रहेगी

प्रधानमंत्री सरेआम टीवी पर लाइव झूठ बोले

जनता चुप रहेगी

पूरा देश बिक जाए

जनता चुप रहेगी

चुप्पी राष्ट्रभक्ति का नया नाम है

आज भारत की जनता राष्ट्रभक्त है!

#जनता #राष्ट्रभक्ति #मंजुलभारद्वाज

न्याय बोध वाले सारे धरे जायेंगे ! - मंजुल भारद्वाज

न्याय बोध वाले सारे धरे जायेंगे !

- मंजुल भारद्वाज

वो एक एक करके 

सबको कैद कर लेंगे 

पुलिस के डंडे से 

बेटों से बाप को पिटवायेंगे

जज साहब को राज्य सभा भेज कर 

न्याय को सूली पर चढ़ा देंगे !

संविधान और कानून को 

बहुमत से कुचल देंगे 

47 लाख लोगों के हत्यारे 

देश बेच कर 

तुम्हें 5 किलो मुफ्त का राशन दे 

तुम्हारे वोट को खरीद लेंगे !

तुम जात धर्म के खेल में 

एक विशेष धर्म वालों के घरों को 

बुलडोज़र से ध्वस्त होते देख 

परम आनंद की अनुभूति में 

अपने बच्चों की अग्निवीर में 

ख़ुशी ख़ुशी आहुति देकर 

देश की सुरक्षा से 

आत्मघात कर रहे होंगे !

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...