पत्थर हैं हम
-मंजुल भारद्वाज
पत्थर हैं हम
जी रहे हैं
अपने अंदर अपने हिस्से की
आग समेटे हुए
बहुतेरे तुनक मिज़ाज होते हैं
जरा सी चोट लगने पर बिखर जाते हैं
थोड़े समझदार होते हैं
वो आशियाने की नींव बनकर
जिंदगी गुजार जाते हैं
चंद वक्त से जूझना जानते हैं
वो इतिहास के शिलालेख हो जाते हैं
वो जो अपनी आग को तराशना जानते हैं
दुनिया की सुंदर कलाकृति बनते हैं
अपनी आग़ से रोशन करते हैं जीवन
उस चेतना में गढ़ते हैं
अपना कल्पना संसार
जी हाँ वही तो हैं कलाकार
मील का पत्थर बन
भटकते मानवीय कंकालों को
इंसानियत की राह दिखाते हैं!
...
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