Tuesday, June 21, 2022

सरकार से सवाल करो,एफआईआर का इनाम पाओ - मंजुल भारद्वाज

 सरकार से सवाल करो,एफआईआर का इनाम पाओ

- मंजुल भारद्वाज

सरकार से सवाल पूछोगे 

तो एफआईआर मिलेगी

अमन की बात करोगे

तो एफआईआर मिलेगी

शांति भाईचारे की बात करोगे

तो एफआईआर मिलेगी

लोकतंत्र के लिए आवाज़ उठाओगे

तो एफआईआर मिलेगी

संविधान के लिए आवाज़ उठाओगे

तो एफआईआर मिलेगी

लोगों में दंगा कराओगे

तो मंत्री बनोगे

सरेआम जनता को गोली मारने के लिए उकसाओगे 

तो मंत्री बनोगे

पर गरीबों 

छात्रों

मज़दूरों

किसानों

महिलाओं के हक की बात करोगे तो

तो एफआईआर मिलेगी!

#एफआईआरमिलेगी #मंजुलभारद्वाज


यह निराशा का नहीं जवाबदारी के निर्वहन का काल है! - मंजुल भारद्वाज

 यह निराशा का नहीं जवाबदारी के निर्वहन का काल है!

- मंजुल भारद्वाज


यह निराशा का नहीं जवाबदारी के निर्वहन का काल है!  - मंजुल भारद्वाज

 

जिस देश की आबादी युवा हो 

जिस राष्ट्र में युवा सबसे ज्यादा हों 

युवाओं की जनसंख्या के आधार पर 

जो राष्ट्र युवा हो 

वो राष्ट्र वैचारिक संकट से गुजरता है 

और ऐसा भूमंडलीकरण के काल में हो 

तो कोढ़ में खाज

ऐसे समय में 

तर्क और विवेकहीन 

राष्ट्र पैदा होता है 

ऐसे दौर में 

तर्कसंगत और विवेकशील 

अपने आप को निराश

अर्थहीनता के अपराध बोध से 

घिरा पाते हैं 

दरअसल यह अपेक्षाओं की 

भ्रामक अवस्था है 

उसका कारण यह मान लेना है 

‘युवा’ अपने आप विचार

तर्कसंगत और विवेकशील होगा 

वो भी बाज़ार की भट्टी में 

हाँ यह होगा पर समय लगेगा 

उसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी 

शायद एक राष्ट्र के रूप में 

हम ‘एक’  ही ना रहें

इसलिए तर्कसंगत और विवेकशील 

कौम के पास निराशा में 

झूलने का समय नहीं है 

उनके ऊपर एक तर्कसंगत

विवेकशील समाज गढने की 

जवाबदेही और ज़िम्मेदारी है 

इसलिए अर्थहीन और उदासीनता को 

तिलांजलि दे 

उत्साह के प्रतिबद्ध संबल और संयम से   

आओ पुन: मनुष्यों का समाज घड़े!

...

#युवा #राष्ट्र #मंजुलभारद्वाज

Monday, June 13, 2022

हिंसा को पूजती है दुनिया ! -मंजुल भारद्वाज

 हिंसा को पूजती है दुनिया !

-मंजुल भारद्वाज


हिंसा को पूजती है दुनिया !  -मंजुल भारद्वाज


मनुष्य क्या है? 

हिंसा का पुजारी है 

हिंसा का कारोबारी है 

मीडिया,सिनेमा से लेकर 

हथियारों की बिक्री तक 

आदिकाल से आजतक 

सिर्फ़ हिंसा ही हिंसा जारी है !

विडम्बना है

हिंसा न्याय का नारा बन जाती है 

सत्ता बंदूक की गोली से निकलती है

और

प्रगतिशीलता का पर्याय बन जाती है !

धर्मरक्षा का ध्वज 

मनुष्यों के खून से रंगा होता है 

राम–कृष्ण विचार नहीं बदल पाते 

जनसंहार धर्मयुद्ध

और 

हत्यारे अवतार बन जाते हैं 

जिनको युगों युगों तक जपा जाता है 

हिंसा और नरसंहार के लिए !  

ढोंग है वो धर्म 

सभ्यता,संस्कृति,प्रगतिशीलता

जिसकी जड़ में हिंसा हो !

मनुष्य अपनी हिंसा से मुक्त नहीं हो पाया

उसके लिए हिंसा न्याय का मार्ग है

सर्वहारा की सत्ता के लिए हिंसा 

पूंजीवादी सत्ता के लिए हिंसा 

आज दुनिया में सारे सत्ताधीश गिद्ध हैं  

सारी सत्ता मनुष्य की कत्लगाह !

ऐसे प्रलयकाल में 

अहिंसा के सूर्य हैं 

बुद्ध और गांधी 

पर हिंसा को पूजने वाली दुनिया को 

क्या वो दिखाई देते हैं?

Thursday, June 9, 2022

लव यू ज़िंदगी ! - मंजुल भारद्वाज

 लव यू ज़िंदगी !

- मंजुल भारद्वाज

लव यू ज़िंदगी! - मंजुल भारद्वाज

ज़िंदगी को पढ़ना

एक जुनून हैं

ज़िंदगी महबूब है

जितनी बार देखो

उतनी बार हसीन लगती है

जितनी बार मिलो

एक रहस्य लगती है

जिया हुआ समय

किताब की तरह

लिखा हुआ है

चल रहा समय

सृजन काल है

चलते चलते ज़िंदगी

कभी समय से जुड़ जाती है

कभी काल से ठिठक जाती है

सहम जाती है

मायूस हो जाती है

ऐसे समय में अतीत के

हसीन पलों में जा बैठती है ज़िंदगी

ले आती है भविष्य में

जीने का हौंसला 

बिल्कुल नए ख़्वाब की तरह

लव यू ज़िंदगी!

#लवयूज़िंदगी #मंजुलभारद्वाज

Monday, June 6, 2022

रचते हैं सृजनकार! - मंजुल भारद्वाज

 रचते हैं सृजनकार !

- मंजुल भारद्वाज


रचते हैं सृजनकार !  - मंजुल भारद्वाज

सृजनकार 

सार्वभौमिक,सर्वव्यापी 

चेतना से संपन्न होते हैं

जब 'मैं' जलकर 

अपने भीतर ब्रह्मांड को

आलोकित करता है

तब सृजनकार उदित होता है !

जन की पसंद ना पसंद से परे

प्रकृति की मानिंद

बिल्कुल फूल और कांटे सा 

सम स्थापित करते हुए

रचते हैं सृजनकार

जीवन दर्शन का शाहकार!

इस पल में युग

युग में पल जीते हुए

देह नश्वर है

जीवन शाश्वत

जन्म और मृत्यु से परे

जीवन के पैरोकार हैं सृजनकार !

वक्त,काल,समय

घड़ी को घड़ते हुए

ब्रह्म हैं सृजनकार

पहर की गोधूलि के

धुंधलके को 

परिवर्तन के आईने में

तराशते हैं सृजनकार !

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...