रंग हैं
- मंजुल भारद्वाज
हम रंग हैं
रंग हैं,रंग हैं
हम रंग हैं
कुदरत के
खिलते हैं धरा पर फूल बनकर
सजाते हैं नभ को इंद्रधनुष बनकर
हम खूश्बु हैं
महकतें हैं फूलों में
हम ध्वनि हैं
चहकते हैं पंछियों में
हम लय , ताल
स्वर और सुर हैं
सजते हैं कोयल के गान में
हम प्रतिबद्ध हैं
तपस्वियों से खड़े हैं
देवदार,पीपल और बरगद की मानिद
हम चल विचल चंचल हैं
बहते हुए झरनों की तरह
हम आत्म मंथन में लीन हैं
समुद्र की भांति
हम नकरात्मकता के लिए खार हैं
सकारात्मकता का स्त्रोत
सृजना का गोमुख
साधना का कैलाश हैं
हम रंग हैं,बहुरंग हैं
सप्तरंग हैं जीवन के
जो आप में बसते हैं
आपके आसपास रहते हैं
उम्मीद, सपने, उत्सव बनकर
हम समय हैं
हमारा युद्ध 'समय,' से है
'समय' के लिए
क्योंकि 'समय' जीवन हैं!
#रंग #मंजुलभारद्वाज
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