Monday, January 30, 2023

सबसे खतरनाक है ! -मंजुल भारद्वाज

 सबसे खतरनाक है !

-मंजुल भारद्वाज
सबसे खतरनाक है
कला को भोगवादी बनाना 
किसी धनपशु की पूंजी से 
स्वयं को ‘कलाकार’ साबित करना 
नौकरी करना, पत्रकार और 
पत्रकारिता की ताल ठोकना 
दो पल के सुख के लिए 
सदियों की गुलामी करना 
लोकतंत्र में रहना और 
राजनीति को गंदा समझना
विकास की लालच में 
देश के वर्तमान को जलाना 
रीढ़ की हड्डी होते हुए रेंगना 
ये कल पाश ने लिखा था 
सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना 
नहीं सबसे खतनाक है 
सपनों का बिक जाना !

चिरनिद्रा में सोयी भारत की आत्मा - मंजुल भारद्वाज

 चिरनिद्रा में सोयी भारत की आत्मा 

- मंजुल भारद्वाज 
राम नाम के नारों 
राम नाम के जुमलों 
राम के नाम बजने वाले 
मंजीरों के शोर में 
नींद बहुत आती है 
घनी नींद में सो जाता है 
देश राम राज्य के लिए 
तड़ीपार,जुमलेबाज़,भक्तों का झुण्ड 
गाय और भक्ति भाव का 
करते है दोहन, चुनाव में 
परचम लहराते हैं 
हिन्दू ,हिन्दूतत्व और हिन्दुस्तान का 
अपने ही देशवासियों की लाश पर 
संविधान की अर्थी निकालते हुए 
सुलाते हैं सांस्कृतिक चिंतन को 
चिरकाल निद्रा में, 
हर पल मर्यादा पुरुषोत्तम की 
मर्यादाओं को तार तार करते हुए 
चीर निद्रा में सोयी आत्मा 
नहीं जागती अग्नि परीक्षा के लिए 
बस शरीर स्वाहा हो जाते हैं 
और सन्नाटे से आवाज़ आती रहती है 
राम नाम सत है
चिरनिद्रा में सोने वालों की गत है !

Friday, January 27, 2023

जन गन मन ! - मंजुल भारद्वाज

 जन गन मन !

- मंजुल भारद्वाज
जन गन मन !  - मंजुल भारद्वाज


देश के दो रखवाले
एक किसान,एक जवान
दोनों को आपस में लड़वाए
गद्दी पर बैठा है शैतान !
एक तानाशाह का अहंकार
खत्म करे सबके अधिकार
जन गन के मन में भरे
द्वेष,हिंसा और विकार !
झूठ,फ़रेब,पाखंड,प्रोपोगेंडा
फूट डालो राज करो इसका फंडा
हिन्दू मुस्लिम
सवर्ण दलित
महिला पुरुष
हर एक को एक एक कर कूटा !
हिन्दू अपने गर्व में ध्वस्त हो गया
मुसलमान इस्लाम ख़तरे में धंस गया
दोनों बर्बाद हुए
दोनों को बर्बाद करने वाला
गद्दी पर बैठ मालामाल हुआ !
जनता के हत्यारे ने
हाथों में धर्म ध्वज लिया
हर हत्या को धर्मयुद्ध बताया
सत्ता तक पहुँचने का कत्त्लेआम
अब सरेआम है !
उसका हर ज़ुल्म चीख रहा है
सुनो चीखें गुजरात की
नोट बंदी से मरते
बच्चों और बुजुर्गों की
लहुलुहान पैदल चलते
भूख से मरते मजदूरों की
लॉक डाउन में मरती अवाम की
अस्मत लुटी बेटी की !
आधी रात में
संस्कारों-संस्कृति की
जलती चिता से
निकलती चीखें सुनो !
अब किसान जवान एक हों
हिन्दू मुसलमान एक हों
मज़दूर,युवा एक हों !
हम भारत के लोग
अपना संवैधानिक फर्ज़ निभाएं
सत्ताधीश से जवाब लें
हर गुनाह का हिसाब लें !
जब जनता मर रही थी
तब उसके यार पूंजीपति
क्यों मालामाल हुए?
क्यों देश की सम्पति बेची गई?
बहुत हुआ अब और नहीं
उतारो गद्दी से
करो दर्ज़ एफ आई आर
देश की हो यह पुकार !

Tuesday, January 24, 2023

सत्ता समायोजन ( Appropriation for Power) -मंजुल भारद्वाज

 सत्ता समायोजन ( Appropriation for Power)

-मंजुल भारद्वाज
भारत में आजकल 
विकारी सत्ता का दौर है 
जिसका झूठ,पाखंड और 
जुमलों पर ज़ोर है !
मजे की बात यह है 
जिनका इतिहास में 
कोई नामलेवा नहीं 
वो इतिहास पुरुषों को 
इतिहास में जगह दिला रहे हैं !
विकारी कीचड़ की यह जोंक 
जनता का खून चूसकर 
गिरगिट से भी तेज़ 
सत्ता के लिए 
अपना रंग बदल रहे हैं ! 
बानगी देखिये 
गांधी के हत्यारे 
सत्ता पर बैठने के लिए 
गांधी के पुतलों को पूज
गोडसे वंशजों को सांसद बना रहे हैं !
जिस लौह पुरुष ने 
इनके ज़हरीले संघ को बैन किया था 
यह उनकी सबसे बड़ी मूर्ति बनवा रहे हैं 
जिस सुभाष बाबू ने 
इनके छद्म को उजागर किया 
अब उन्हीं के होलोग्राम का 
राजपथ पर उद्घाटन कर रहे हैं !
चीन के अतिक्रमण पर 
56इंची के मौन को 
बड़े गौर से देख रही जनता 
इनके छद्म राष्ट्रवाद की होलिका दहन का 
इंतज़ाम कर रही है ! 
निर्लज्जता की सारी सीमाएं लांघ
सत्ता
सिर्फ़ सत्ता 
सत्ता के लिए यह विकारी
सभी तरह का समायोजन कर 
अपनी चाल,चरित्र और चेहरा 
गिरगिट से भी तेज़ बदलते हैं !

Saturday, January 14, 2023

मौसम ख़राब होने से

 मौसम ख़राब होने से

हुनर का परिंदा नहीं रुकता
जितना ख़राब मौसम
उतनी ऊंची उड़ान भरता है
हर बार एक नया कीर्तिमान रचता है
प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती
वो अपने तेज़ से 
संसाधनों का निर्माण कर
विषमता मिटा
समता,न्याय और विवेक की लौ को 
प्रज्वलित करती है!


- मंजुल भारद्वाज

Monday, January 9, 2023

जुगनू -मंजुल भारद्वाज

 जुगनू

-मंजुल भारद्वाज

जुगनू  -मंजुल भारद्वाज


ये जो जुगनू होते है ना
यह मजनू होते हैं
इश्क़ की आग में जलकर
स्वाह हो जाते हैं
अपने मिलन,उत्सर्जन का
उत्सव मनाते हुए
दुनिया को रोशन कर जाते हैं
गर्मी,उमस भरे दिनों में
बारिश की आहट मिलते ही
किसी पेड़ को जगमगाते हुए
यह प्रेम उत्सव मनाते हैं
हजारों की संख्या में
अँधेरी रात को रोशन करते हुए
आपको गुदगुदाते हैं
आपके अंदर प्रेम,प्रणय
आनंद और उन्मुक्तता की
चिंगारी लगाते हैं
घंटों इनको देखते हुए आप
इनकी दुनिया में विचर जाते हैं
मोहक,सम्मोहक अद्भुत स्निग्ध दृश्य
आँखों में समां आप उनके साथ हो लेते हैं
प्यार में जलने के लिए
एकाकी मन,अकेलपन,बोझिल मन में
एक तरंग,उमंग,ताज़गी,उत्साह
ठहरे वक्त में प्राण फूंक
मन्नत की जन्नत में
नयी कल्पनाओं का संसार बसा जाते हैं
दरअसल यह जुगनू विद्रोही होते है
रात को जगमगा कर
सूर्य की प्रस्थापित सत्ता को चुनौती देते हैं
सभ्यता के ढकोसलों में जकड़े
प्रेम के दुश्मन मनुष्य को
स्वयं प्रकाशित हो
प्रेम का पाठ पढ़ा जाते हैं!
...

Sunday, January 8, 2023

फ़क़ीर कब मौत से डरते है ! -मंजुल भारद्वाज

फ़क़ीर कब मौत से डरते है !

-मंजुल भारद्वाज
फ़क़ीर कब मौत से डरते है !  -मंजुल भारद्वाज


फ़क़ीर 
कब मौत से डरते है 
तानाशाह मौत से 
ख़ौफ़ज़दा होते हैं !
फ़क़ीर 
इंसानियत के हबीब 
तानाशाह 
इंसानियत के रक़ीब होते हैं !
फ़क़ीर 
संसार के जाल को भेदते हैं 
तानाशाह 
अपने ही जाल में फंसते हैं !
मैं को मार 
फ़क़ीर जन्मता है 
मैं को पाल 
तानाशाह मरता है !

Saturday, January 7, 2023

कलात्मक आविष्कार -मंजुल भारद्वाज

 कलात्मक आविष्कार

-मंजुल भारद्वाज
कलात्मक आविष्कार  -मंजुल भारद्वाज


खोज,शोध,साधना 
दृष्टि को तरंगित 
स्पंदित,प्रज्वलित कर 
अमूर्त को मूर्त कर 
दर्शक को अद्भुत 
आत्मिक कलात्मक 
अनुभूति और आनंद से 
सराबोर करती है 
उसे जीवन चुनौतियों से 
पार जाने के लिए 
सत्य,अहिंसा के इंसानी 
पथ दिखलाती है !
कलात्मक आविष्कार 
किसी मशीनी पद्धति से नहीं होता 
सतत मनन मंथन 
समर्पण से होता है 
जिसके विश्लेषण से
एक पद्धति का निर्माण होता है 
पर पद्धतियाँ सिर्फ़ कला के 
मुहाने तक ले जाती हैं 
सृजन महासागर में नहीं डुबाती
सृजन महासागर में पैठने का 
मात्र एक ही मार्ग है 
दृष्टि सम्मत जुनून
समर्पण,निष्ठा और 
प्रकृति सम्मत विवेक !

Wednesday, January 4, 2023

कुर्बानी की राह अकेली होती है -मंजुल भारद्वाज

 कुर्बानी की राह अकेली होती है

-मंजुल भारद्वाज
कुर्बानी की राह अकेली होती है  -मंजुल भारद्वाज


कुर्बानी की राह
अकेली होती है
भोग - प्रसाद की राह में
भारी भीड़
लंबी कतार में
सदियों से दिन रात रेंगती है !
हाकिम के आगे
हाथ पसार भीख से
पेट भरती है
हाथों की मुठ्ठी बना
लुटेरे से अपना हक नहीं मांगती !
सदियों तक इंतज़ार करती है
कोई आएगा
कुर्बानी के पथ पर
अपनी कुर्बानी से
इस भीड़ को गुलामी से
आज़ाद करायेगा !
युगों युगों से दासता के
चक्रव्यूह को भेदता कोई इंकलाबी
सूर्य की मानिंद
रौशन करता है
अंधी गह्वर को
सवेरे आज़ादी के
सांस लेते हैं
चन्द रोज़
फिर दासता की रात में सो जाते हैं !
आजादी मुफ़्त नहीं मिलती
प्रसाद मुफ़्त मिलता है
आजादी कुर्बानी मांगती है
भीड़ हक के लिए नहीं लडती
भीख मांगने को मोक्ष समझती है !
आज देश में भीड़ है
युवाओं की
महिलाओं की
किसानों की
भक्तों की
पिंजरे में क़ैद मध्यवर्ग की
दिहाड़ी मज़दूरों की
जो नौकरी के लिए
अस्मिता के लिए
न्यूतम समर्थन मूल्य के लिए
राम राज के लिए
विकास के लिए
पेट भरने के लिए
खड़े हैं लंबी कतारों में
लुटेरे के सामने
हाथ फैलाए !
पर कोई हाथ मुठ्ठी नहीं बनता
कोई गांधी की तरह नहीं चलता
कोई भगत सिंह की तरह
फांसी का फंदा नहीं चूमता
अपनी आजादी के लिए
अपने मुख से नहीं बोल पाता
इंकलाब ज़िंदाबाद !
बस प्रसाद की लाइन में खड़ा
आरती गा रहा है
लुटेरे की !
राह आज़ादी की
अकेली होती है
सुनसान होती है
इस राह में खड़े पथिक
बाट मत जोह
बस निकल
आगे बढ़
अपना मुस्तक़बिल
खुद लिख
रंग दे बसंती
गाता चल
सुनसान राहों को गुलज़ार कर
कुर्बानी तेरी बाट जोह रही है
चन्द पल के लिए ही सही
आज़ादी का सवेरा रौशन कर !

Tuesday, January 3, 2023

माटी - मंजुल भारद्वाज

 माटी

 - मंजुल भारद्वाज 

गर्भ में धारण कर 
बीज में प्राण 
ओतती है माटी
गुणसूत्र की तासीर को
ताप से उष्मित
नमी से सींचती है माटी
निराकार को आकार
देती है माटी
आकार साकार हो
निराकार होता है 
निराकार को अपने
अंदर समा लेती है माटी !

Sunday, January 1, 2023

मिलन का जश्न -मंजुल भारद्वाज

 मिलन का जश्न 

-मंजुल भारद्वाज
मिलन का जश्न   -मंजुल भारद्वाज


मिलन का जश्न 
ऐसे अदा-अंदाज़ से 
मनाती हैं लहरें
किनारे को चूमकर 
अपना नमक छोड़ जाती हैं !
लहरें इठलाती-मदमाती 
अपने आशियां में लौट जाती हैं 
किनारा वहीँ का वहीँ 
प्रतीक्षारत रहता है 
मिलन की हसरत लिए !
चाँद और वसुंधरा की अटखेलियाँ हैं 
किनारे और लहर का विरह–मिलन
समंदर का ज्वार-भाटा 
है सतत,निरंतर,अविरल !

इंसानियत के शत्रु वो विकारी कौन हैं? -मंजुल भारद्वाज

 इंसानियत के शत्रु वो विकारी कौन हैं?

-मंजुल भारद्वाज
इंसानियत के शत्रु वो विकारी कौन हैं?  -मंजुल भारद्वाज

है ना कमाल
सदियों से बेमिसाल
कहते हैं भारत
संस्कार,संस्कृति और ज्ञान देश है!
पर थोडा सोचें
परखे और जानें
कैसे भारत विकार का शिकार है?
ज्ञान की आढ़ में
आत्महीन लोगों का बोलबाला है
क्या कभी देश के प्रति
उन विकारी ज्ञानियों का
वफ़ादारी भाव था?
कौन थे वो विकारी
जिन्होंने देशवासियों को
वर्ण में बांटा?
कौन थे वो विकारी
जिन्होंने उंच नीच का
नियम बनाया?
कौन थे वो विकारी
जिन्होंने जाति के नाम पर
छुआछूत का षडयंत्र रचा?
कौन थे वो विकारी
जिन्होंने श्रेष्ठता का दम्भ भरकर
देश,समाज को नष्ट किया?
कभी सोचा है
कौन हैं यह विकारी
जो बड़ी आसानी से
देशभक्ति,राष्ट्रवाद
संस्कार,संस्कृति
हिन्दू और हिंदुत्व के
कम्बल में छुपकर
आपके घर में
आपके मन में घुस आते हैं
और आपकी वैचारिक
शक्ति को दीमक की तरह
चाट जाते हैं ?
सोचिये भला वो कैसे हिन्दू हैं
जो ब्राह्मणवाद के नाम पर
दूसरी जातियों का शोषण
करते हैं?
वो कैसे हिन्दू हैं
जो अपनी माँ
बहनों,बेटियों का
बलात्कार करते हैं?
वो कैसे हिन्दू हैं
जो समाज में हर समय
फुट डालने के लिए
धर्म को ढाल बनाते हैं?
ठीक है आप इतिहास में
नहीं जाना चाहते
तो आइये वर्तमान का
आकलन कीजिये !
बताइए वो कौन हैं
जो सुबह शाम
संविधान की बजाए
हिंदुत्व की बात करते हैं?
बताइए वो कौन हैं
जो हर समय
राष्ट्रवाद की बात करते हैं?
बताइए वो कौन हैं
जो संविधान से नहीं
देश मनुस्मृति से चलाना चाहते हैं?
जी तो साफ़ साफ़
आपके सामने है उतर
गांधी को मारने वाले कौन थे ?
भगतसिंह की फांसी की सज़ा की
वकालत करने वाले कौन थे ?
सावित्रीबाई फुले पर
पखाना फैंकने वाले कौन थे?
अंग्रेजों की मुखबरी
करने वाले कौन थे?
जी सही समझे
आपको आत्महीन हिन्दू बनाकर
गर्व से हिन्दू कहो का
नारा लगवाने वाले
देश को बेचने वाले
छद्मी हिन्दू हैं!
वो आज सत्ता पर
विराजमान हैं
जो देश,धर्म,विविधता
समता,प्रेम,संस्कृति
इंसानियत के शत्रु
आपके आसपास मौजूद हैं
वो है विकारी संघ आरएसएस !
यह विकारी संघ
कहता है,लिखता है
राष्ट्रहित सर्वोपरि
झूठ पाखंड का सिरमौर
सत्य नहीं
झूठ का प्रचारक !
यह कैसे धड़ल्ले से
झूठ का कारोबार करते हैं?
क्योंकि आप कभी इनसे नहीं पूछते
ये कौन सा राष्ट्र बनाना चाहते हैं?
इनका वही राष्ट्र है
शोषण,अन्याय,असमानता
वर्चस्ववाद और श्रेष्ठता की
आत्महीनता से ग्रस्त
वर्णवादी राष्ट्र !
इनका वर्णवादी राष्ट्र 
गांधी नेहरु और आम्बेडकर के
खात्में के बिना सम्भव नहीं
इसलिए गाँधी को मारा
नेहरु को गलियाया
आंबेडकर को नष्ट कर रहे हैं
क्योंकि आप आत्महीनता से ग्रस्त
हिन्दू हैं
जो देश की बजाय
अपनी जाति के रक्षक है
विविधता की बजाय
एकाधिकार और व्यक्तिवाद को श्रेष्ठ मानते हैं
संविधान सम्मत भारत नहीं
आरएसएस का हिन्दू राष्ट्र चाहते हैं !
अपने अंदर देखिये
आपको अपने पडोसी से नफ़रत
करना किसने सिखाया?
दूसरे धर्म के प्रति आपके दिल में
ज़हर किसने भरा ?
आप सच्चे राष्ट्र भक्त हैं
तो संविधान सम्मत भारत है
आप सच्चे इंसान हैं
तो भारत में सर्वधर्म समभाव है
तय कर लीजिये
आप आत्महीन होकर
गर्व से हिन्दू बोलने वाले
वर्णवादी शोषक हैं
या
संविधान सम्मत भारत के पैरोकार
अहिंसा,समता,प्रेम को मानने वाले
बुद्ध,नानक,कबीर,गांधी
भगत सिंह और विवेकानंद के उतराधिकारी !

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...