Wednesday, October 30, 2019

यादें हमेशा अकेली होती हैं - मंजुल भारद्वाज

यादें हमेशा अकेली होती हैं
-मंजुल भारद्वाज
यादें हमेशा अकेली होती हैं
अपना भरा पूरा संसार लिए
अपने हिस्से की ख़ुशी,गम
रोमांच और रहस्य समेटे हुए
तबाक से चली आती हैं
ठहरे हुए ‘समय’ में
प्राण फूंकती हुई यादें !

यादें ही सिर्फ़ निजी होती हैं
जिस पर किसी हुकुमत का
ज़ोर नहीं चलता है
‘मन’ के समन्दर की लहरों पर
तैरती हैं यादें
अपने सर्द गर्म अहसास में
भिगोते हुई यादें !

स्मृति की सल्तनत का
खज़ाना हैं यादें
तन्हाई की पुरवाई हैं यादें
बेमौसम की फुहार
बसंत की बहार हैं यादें

संस्कृति की धरोहर
वर्तमान में अतीत की
पदचाप हैं यादें
हर रंग में लपटे हुए
‘भावों’ का गुलदस्ता हैं यादें!

कहीं मौत का क्रन्दन
कहीं जन्म की किलकारी
प्रकृति के समभाव का
दस्तावेज़ हैं यादें!
...

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