Friday, July 26, 2019

हाशिया हाशिये पर ना हो - मंजुल भारद्वाज

हाशिया हाशिये पर ना हो
- मंजुल भारद्वाज 
मजदूरों का यलगार हो 
धर्मान्धता,सामन्तवाद,पूंजीवाद 
शोषण,अन्याय,असमानता 
के खिलाफ़ ललकार हो!

पहाड़ तोड़ने वाले, 
जमीन जोतने वाले 
समुद्र का सीना चीरकर 
तूफानों को रोकने वालों का श्रम 
रोटी का मोहताज़ ना हो

दृष्टि स्पष्ट हो, सृष्टि का निर्माण हो 
अपनी लड़ाई किसी को ठेके पर 
देने की बजाय,
आत्म निर्माण का संकल्प हो!

इंकलाब का आगाज़ हो 
हर सपना साकार हो
सम्यक,समता,न्याय की पुकार हो
एक हाथ नर का दूजा हाथ नारी का
लिंग समानता उसका आधार हो !

ऐ विश्व के मजदूरों 
तुमने भाषा,क्षेत्र, 
देश और भेष को पाटा है 
वसुधैव कुटुम्बकम के नारों
संकल्पनाओं को साकार किया है !

तोडा है गुरुर सत्ताधीशों का 
बारम्बार,लाल लहराया है 
हर बार, लाल के लिए कुर्बान 
ऐ माटी की संतानों 
अब होशियार, सजग और सचेत
होकर पूछो उनसे ये सवाल 
‘मज़दूरों’ के नाम पर साम्राज्यवादियों से 
लड़ने वाले खुद ‘साम्राज्यवादी’ कैसे हो गए! 
ताकि हाशिया हाशिये पर ना रहे!

हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में संघर्ष 
हमारा नारा है 
लड़ेगें, जीतेगें की भीड़ में 
ढ़ोनेवाले,ढकेलने वाले 
नारा लगाने वाले जिस्म 
की छवि को बदलना होगा 
सत्ता को उखाड़ फ़ेंकने वाले 
क्रांतिकारियों को ‘आत्म’ में झांकना होगा 
व्यवस्थागत क्रांति के साथ 
आत्म क्रांति करनी होगी 
चिंतन,विचार,स्वराज का 
आत्मोदीप जलाना होगा 
ताकि हाशिया हाशिये पर ना रहे!...

#सलाम #मज़दूरदिवस #मंजुलभारद्वाज

Tuesday, July 23, 2019

चाँद -मंजुल भारद्वाज

चाँद 
-मंजुल भारद्वाज
 
दिलरुबा है चाँद 
सनम है चाँद 
सुकून है चाँद 
तन्हाई है चाँद 
मिलन का साक्षी
जुदाई का गवाह है चाँद 
वफ़ा की चादर 
बेवफ़ाई का दामन है चाँद 
दिलों का अरमा 
कशिश है चाँद 
कहीं आग लगाता है चाँद
कहीं प्यास बुझाता है चाँद
कहीं वनवास
कहीं ईद है चाँद 
हुस्न,जमाल,खूबसूरती 
का पैमाना है चाँद
कलाओं का कारीगर 
सौन्दर्य का शास्त्र है चाँद 
सियाह रात के सूनेपन में, 
रौशनी का सबब है चाँद
आशिकों का राजदार,साथीदार,
उनकी ख़ामोशी का गुन्हेगार है चाँद 
सूर्य की वसुंधरा पर 
परछाई है चाँद 
मेरे भीतर, मेरे सूर्य का 
आत्म प्रकाश है चाँद 
एक बुद्ध के आत्म ज्ञान का 
प्रकाश और साक्ष्य है चाँद!...

#चाँद #बुद्ध #मंजुलभारद्वाज

कविता - मंजुल भारद्वाज

कविता
- मंजुल भारद्वाज


विचार प्रवृति , विचार प्रकृति 
अपने दृष्टि आलोक के 
शब्दों पुष्पों को 
भावनाओं के आँचल में 
करीने से सजाकर 
एक गुलदस्ता बनाती है 
जिसको हम ‘कविता’ कहते हैं !
...
#कविता’ #मंजुलभारद्वाज

अपने तल और तलहटियों में झांकिए ! - मंजुल भारद्वाज

अपने तल और तलहटियों में झांकिए !
- मंजुल भारद्वाज 
जल में मल है 
गंध है, दुर्गन्ध है 
नफ़रत है, हिकारत है 
वैमनस्य है,जहर है 
आज समाज की तलहटी में

मानवीय मूल्यों का तल 
ढका है कीचड़,लालच 
क्रूरता,हत्या और फ़रेब से

आँखों में प्रेम नदी का तल 
सरस्वती की तरह विलुप्त है 
गंगाजमुनी तहजीब अभिशप्त है

दुर्योधन,दुशासन,धृतराष्ट्र के युग में 
काल प्रतीक्षारत है किसी द्रौपदी के प्रण का 
तय होना है की धर्मयुद्ध आप स्वयं लडेंगें 
या अवतार का इंतज़ार करेगें!

अपने तल और तलहटियों में झांकिए 
क्या पता कोई कृष्ण 
गाय चराते हुए,अपनी बंसी पर 
प्रेमधुन बजा रहा हो! 
...
#तल #तलहटी #मूल्य #मंजुलभारद्वाज

तुम कौन हो! -मंजुल भारद्वाज

तुम कौन हो!
-मंजुल भारद्वाज 
तुम्हारे समर्पण पर 
मेरा सर्वस्व अर्पण 
एक जीवन,एक दर्पण 
एक मार्ग.एक मंज़िल
एक सफ़र.एक हमसफ़र 
एक तलाश,एक खोज
एक काल,एक कला 
एक पहर,एक सहर
एक स्थूल,एक सूक्ष्म 
एक आकार,एक निराकार 
एक अर्पण,एक समर्पण 
एक जूनून,दो मुसाफ़िर 
एक सृजक,एक सृजन
तुम कौन हो!...

#मंजुलभारद्वाज

ये गा गा है जीवन का -मंजुल भारद्वाज

ये गा गा है जीवन का
-मंजुल भारद्वाज 


ये गा गा है जीवन का 
उसके अलग अलग हिस्से हैं 
हर एक हिस्सा निराला है

एक हिस्सा बच्चों का है 
आँख है उसका आकार
जिसमें हैं जीवन के सपने अपार
मस्ती,कौतुहल,जिज्ञासा 
नादानी,शरारत,भोलापन 
रोना,हंसना,गाना,रूठना 
झुला,घसरपट्टी,सी-सॉ
उछलकूद, भागम भाग, पकड़ा पकड़ी 
अलग अलग आवाजों की किलबिलाहट
ढेर सारी माताएं,एक आध पिता
कहीं दादा दादी,नाना नानी 
पूरे अनुभव के साथ नाच रहे हैं 
इन मासूम बच्चों के इशारों पर 
पर ये अगाध,बेलाग उर्जा 
जीवन की लहर, उनकी बंदिशों के 
किनारे तोड़कर अपने हौंसले 
विश्वास को बढाती हुई 
अपनी आखों में जीवन लिए हुए

इस आँख के इर्दगिर्द हैं पगडण्डीयाँ 
जिस पर जीवन को नाप रहे हैं 
स्वस्थ शरीर का सपना लिए जिस्म 
आधे जागे, आधे सोये 
आधे इधर उधर झांकते हुए 
आधे अपने कानों में इयरफ़ोन 
लगाए नाप रहे हैं जीवन यात्रा

बीच बीच में जीवन को 
समझते,बुझते,प्रौढ
अपने चिंतन मनन से 
देश दुनिया को बदलने 
सपना और रणनीति पर 
चर्चा,बहस और संवाद करते हुए

एक सन्तूर के पास 
गोल बैठा महिला समूह 
बिल्कुल सन्तूर की तरह 
हंसता,खिलखिलाता हुआ 
टूटी शहनाई के पास बैठा समूह 
अपनी यादों को जोड़ता हुआ

बेंचों पर विराजमान बुजर्ग 
अपने जीवन सार को टटोलता हुआ 
उन्हीं के पास चटक पीले फूलों से लदा वृक्ष 
जीवन में बसंती रंग भरता हुआ

एक बेरी के पेड़ वाले कट्टे पर 
अधेड़ उम्र की ग्रहणियों का जमघट 
किसी पनघट की याद दिलाता हुआ 
अलग अलग घर की रसोई 
और जीवन दासता सुनाता हुआ

किसी कोने में अतृप्त,अभिशप्त 
कामुक, कुंठाग्रस्त विडंबनाओं का डेरा है 
उन पर सचेत निगाहों का पहरा है

तो कहीं नवा नवा शबाब 
अपने इश्क की दास्ताँ
लिख रहा है चोरी चोरी
कहीं पूरे आत्मविश्वास से 
जीवन बसाने का मजमून 
लिख रहा है कोई

हाँ मैं हूँ यहाँ 
ऊँगली पकड़े यादों की 
अपनी बेटियों के सवालों
मस्ती,भागदौड़,उनके 
गिरने,उठने,खेलने वाले 
विविध रंगों के साथ 
जी हाँ ये जीवन का गा गा है 
जीवन के समस्त रंग समेटे हुए !



#गागा #बगीचा #जीवन #मंजुलभारद्वाज

ये बेटियों की चीख है! - मंजुल भारद्वाज

ये बेटियों की चीख है!
-मंजुल भारद्वाज 
दर्द की हद है 
सब्र की इन्तहा 
ऐ जुमलेबाज़ जान लें 
ये तेरे जुल्मो सितम की हद है 
कैसे नींद आती है ऐ पाखंडी 
बेटियों की चीखों में कैसे 
चैन से सोता है 
कैसे तेरी रूह नहीं कांपती 
कैसे तेरी आत्मा नहीं जागती 
बक बक करने वाले लफ्फाजी
कैसे बेटियों की आबरू के लिए 
तेरी जुबां नहीं खुलती 
सुन ऐ तानाशाह 
बेटियों की हाय खरतनाक होती है 
अच्छे अच्छे तख़्तनशीनों को खाक 
में मिलाती है 
भुला नही होगा निर्भया की चीख 
जिसका नाम लेकर वोट माँगा था 
वो ‘निर्भया’ की चीख थी जिसने 
सत्ताधीशों को बाहर कर दिया 
ऐ तख़्तनशीन शेखीबाज़
सुन चारो ओर बेटियाँ लहूलुहान हैं 
तेरे भक्त बेटियों को नोच रहे हैं 
और तू खामोश है !
सम्भवतः ये ख़ामोशी तेरा ‘अंत’ है!
ये बेटियों की चीख है!
...
#बेटियाँ #मंजुलभारद्वाज

सत,सूत और सूत्र - मंजुल भारद्वाज

सत,सूत और सूत्र
- मंजुल भारद्वाज 
अचंभित करने वाला 
भ्रमित दौर है 
‘लोकतंत्र’ संख्या बल का शिकार हो गया 
पैसा और जुमला हावी हो गया
‘विवेक’ और विनय पर अंहकार छा गया

संविधान, तिरंगा खिलौना हो गये 
अपने अपने रंग में सब नंगे हो गए 
भगवा,हरा,लाल और नीला 
चुनकर सब निहाल हो गए 
इन्सान और इंसानियत लहूलुहान हो गए

भारत की विविधता के विरोधाभास
स्वीकारने का साहस,
गांधी का उपहास हो गया 
बनिया है,बनिया है के शोर में 
हर भारतीय से संवाद एक सौदा हो गया 
सत्य के प्रयोग भ्रम हो गए 
खुलापन और सबकी स्वीकार्यता 
गाँधी के पाखंड हो गए

जिनको चाहिए था बस अपना 
तुष्ट हिस्सा 
वो तुष्टीकरण का शिकार हो गए

आज़ादी का जश्न मातम हो गया 
गांधी के चिंतन की चिता पर 
अपने अपने रंगों की ताल ठोक 
पूरी युवा पीढ़ी को भ्रमित कर 
कई राम,कई अम्बेडकर और 
कई मार्क्स की सन्तान हो गए

अस्मिता,स्वाभिमान और पहचान
के नाम पर जपते हैं अपने अपने 
भगवान की माला 
और आग लगाते हैं उसी धागे को 
जो जोड़ता है,पिरोता है 
एक सूत्र में विविध भारत को 
अपने सत और सूत से 
जिसका नाम है ‘गांधी’!...


#गाँधी #मंजुलभारद्वाज

शब्दों की कागज़ पर पदयात्रा का नाम है पुस्तक ... मंजुल भारद्वाज

शब्दों की कागज़ पर पदयात्रा का नाम है पुस्तक
... मंजुल भारद्वाज

शब्दों की कागज़ पर पदयात्रा का नाम है पुस्तक
जिंदा अनुभवों की दास्ताँ है पुस्तक 
कल , आज और कल का दस्तावेज है पुस्तक
ब्रह्माण्ड के वर्णन और विश्लेषण का नाम है पुस्तक 
..... शब्दों की कागज़ पर पदयात्रा का नाम है पुस्तक

लेखक की पेंटिंग है पुस्तक
उसके ह्रदय और मस्तिष्क 
की तस्वीर है पुस्तक 
अपने होने का मुद्रण है पुस्तक 
..... शब्दों की कागज़ पर पदयात्रा का नाम है पुस्तक

पाठक का आइना है पुस्तक
उसके सुख दुःख की साथी है पुस्तक 
अतीत की परछाई और भविष्य की मंजिल है पुस्तक 
..... शब्दों की कागज़ पर पदयात्रा का नाम है पुस्तक

भाषा का व्याकरण और प्रलेखन
है पुस्तक 
मानवीय सभ्यता का प्राण है पुस्तक 
मेरा आगाज़ और अंजाम है पुस्तक 
..... शब्दों की कागज़ पर पदयात्रा का नाम है पुस्तक

मार्ग ..मुसाफ़िर...मंज़िल -मंजुल भारद्वाज

मार्ग ..मुसाफ़िर...मंज़िल

-मंजुल भारद्वाज 


शरीर मुसाफ़िर,चेतना मार्ग 
इंसानियत मंज़िल

लोकतंत्र मुसाफ़िर,संविधान मार्ग 
जनकल्याण मंज़िल

विष मुसाफ़िर,सत्य मार्ग 
शिव मंज़िल

संवाद मुसाफ़िर,कला मार्ग 
सृजन मंज़िल

मुक्ति मुसाफ़िर,प्रक्रिया मार्ग 
उन्मुक्तता मंज़िल

जीवन मुसाफ़िर,प्राण मार्ग 
आत्मा मंज़िल

भूत मुसाफ़िर,वर्तमान मार्ग 
भविष्य मंज़िल

मन मुसाफ़िर.सनम मार्ग 
प्रेम मंज़िल!


#मार्ग #मुसाफ़िर #मंज़िल #मंजुलभारद्वाज

स्तब्ध हूँ ! -मंजुल भारद्वाज

स्तब्ध हूँ !
-मंजुल भारद्वाज
क्या महिला?क्या पुरुष?
सब शरीर हैं 
सब सत्ताधीश है 
कुर्सी के लिए जमीर बेचकर 
सत्ता की गुलामी में मशगूल हैं

बड़ी आस थी
सालों से बड़ा मान था 
उनका बड़ा सम्मान था 
शायद वो ‘स्वराज’ थी

रक्षा करने का दायित्व 
निर्मल ‘ह्रदय’ कब कठोर हो गया 
अधिकारों के लिए 
सत्ताधीशों की नींद उड़ाने 
वाली वो मेनका थी 
लाडलियों की आवाज़ बनकर 
चहकने वाली वो ‘किरण’
अब संसद की चौखट पर 
मुरझा गयी!
एक जुमलेबाज़ बहेलिये ने 
भारतीय माताओं के ज़मीर को 
मारकर उन्हें सिर्फ़ शरीर बना दिया 
स्तब्ध हूँ ! 
कठुआ से उन्नाव के कोहराम 
की चीखों से, 
न्याय मांगती रूहों से 
और सत्ताधीश मौन महिलाओं से!
स्तब्ध हूँ !
.... 
#महिला #सत्ताधीश #ज़मीर #मंजुलभारद्वाज

अंतर को समझिये -मंजुल भारद्वाज

अंतर को समझिये 
-मंजुल भारद्वाज 
आवाज़ और चीख़
पाखंड और भक्ति 
प्रतीक और प्रतिबद्धता
वचन और जुमला 
उपवास और उपहास 
देशप्रेम और राष्ट्रवाद 
लोकतंत्र और भीड़तन्त्र 
आस्था और धर्मान्धता 
विज्ञान और तकनीक 
बाज़ार और बाज़ारवाद
लाभ और लूट 
कला और नुमाइश 
के अंतर को समझिये 
जनता जनार्दन!
...
#मंजुलभारद्वाज

धड़कन घड़ी है जीवन की -मंजुल भारद्वाज

धड़कन घड़ी है जीवन की
-मंजुल भारद्वाज 


धड़कन घड़ी है जीवन की 
दिल में धड़कती हुई

हर कोशिका को धमनियों की 
सुइयों से स्पंदित करती हुई

ऑक्सीजन से रक्त में प्रवाह का 
संचार करते हुए 
विचारों के कैनवास पर 
भावनाओं के पेंडुलम से 
काल के कपाल पर लिखती हुई 
इतिहास अपने होने का

धड़कन जीवन है 
घड़ी है जीवन की 
कड़ी है,अथ,इति और इतिहास की!
... 
#धड़कन #घड़ी #जीवन #इतिहास

हम कौन हैं ! -मंजुल भारद्वाज

हम कौन हैं !
-मंजुल भारद्वाज 
अतीत के सृजन बिन्दुओं को 
एक एक कर जोड़ते हुए 
वर्तमान में घटित होते हुए 
सृजन बिन्दुओं से 
भविष्य को रचते हुए

भूत..वर्तमान..भविष्य 
कल,आज और कल में 
सीधी रेखा खींचते हुए 
पिरोते हुए बिन्दुओं को 
एक धागे में 
भूमध्य रेखा की भांति 
अपने ध्रुवों से बंधे हुए 
हम कौन हैं!
....
#सृजन #अतीत #रेखा #मंजुलभारद्वाज

नींद बहुत आती है - मंजुल भारद्वाज

नींद बहुत आती है
- मंजुल भारद्वाज 


राम नाम के नारों 
राम नाम के जुमलों 
राम के नाम बजने वाले 
मंजीरों के शोर में 
नींद बहुत आती है 
घनी नींद में सो जाता है 
देश राम राज्य के लिए 
तड़ीपार,जुमलेबाज़,भक्तों का झुण्ड 
गाय और भक्ति भाव का 
करते है दोहन, चुनाव में 
परचम लहराते हैं 
हिन्दू ,हिन्दूतत्व और हिन्दुस्तान का 
अपने ही देशवासियों की लाश पर 
संविधान की अर्थी निकालते हुए 
सुलाते हैं सांस्कृतिक चिंतन को 
चिरकाल निद्रा में, 
हर पल मर्यादा पुरुषोत्तम की 
मर्यादाओं को तार तार करते हुए 
चीर निद्रा में सोयी आत्मा 
नहीं जागती अग्नि परीक्षा के लिए 
बस शरीर स्वाहा हो जाते हैं 
और सन्नाटे से आवाज़ आती रहती है 
राम नाम सत है
चिरनिद्रा में सोने वालों की गत है !
#राम #मर्यादा #सांस्कृतिकचेतना #मंजुलभारद्वाज

सहर होगी साथी - मंजुल भारद्वाज

सहर होगी साथी
  -मंजुल भारद्वाज
 
सहर होगी साथी 
ये यकीन है 
सहर का कोई विकल्प नहीं है 
कलाकार, सृजनकार बदलते हैं
सृष्टि का चक्र 
अँधेरा रहता नहीं कायम
घूमती है पृथ्वी अपनी 
धूरी पर, खेलती है 
अँधेरे उजाले का व्यवहारिक खेल 
अपना अपना विश्वास है 
सत्य, तत्व और दृष्टि पर 
वरना सूर्य सतत रोशन रहता है 
ना अस्त होता है ना उदय 
सहर होगी साथी ..सहर का कोई विकल्प नहीं है 
सहर ...
#सहर #कलाकार #मंजुलभारद्वाज

एक दीया - मंजुल भारद्वाज

एक दीया
-मंजुल भारद्वाज 
साहित्य के शिखर पुरुष 
बन जाते हैं बरगद 
जिनको पूजती हैं पीढियां 
भक्त कौम लटक जाती हैं 
बरगद के इर्द गिर्द अमरबेल की बनकर 
जहाँ नहीं उगता साहित्य अंकुर 
बौना या बंजर हो जाता है सृजन साहित्य 
शेष रहता है भक्तों का शोर
आतंक, वीरानों में भटकती 
सृजन रूहें बरगद की उम्र तक

राजनीति के शिखर पुरुष 
बन जाते हैं युगपुरुष 
काबिज़ हो जाते हैं व्यवस्था की सीढ़ियों पर 
पैठ जाते हैं समाज के चिंतन कोश में 
आश्रित करते है उन्मुक्त चिंतन प्रकिया को 
अवरोधित करते हैं काल के सृजन चक्र को 
जिससे पैदा होती हैं ऐसी नस्ल 
जो विचारों की मूर्तियाँ बनाकर 
अपने दायित्व से मुक्त हो जाती हैं 
और मानव देह लिए तिलकधारी हिंसक शरीर 
भारत माता का जयघोष करते हुए 
हत्या करता है इंसान और इंसानियत की 
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के परचम तले
संविधान बस एक कागज़ और विचार 
सिर्फ़ बुत बनकर चौरोहों में देखते हैं 
हैवानियत का नंगा नाच

नहीं बनना मुझे बरगद 
नहीं बनना मुझे युगपुरुष 
मैं बनना चाहता हूँ 
एक दीप स्तम्भ, एक दीया 
जो सूर्यास्त के बाद राह दिखा सके 
एक दीये से दूसरा दीया जला सके !

#दीया #साहित्य #साहित्यकार #युगपुरुष #राजनीति #मंजुलभारद्वाज

क्यों? से प्रेम करो - मंजुल भारद्वाज

क्यों? से प्रेम करो
-मंजुल भारद्वाज

क्यों से भागिए मत 
क्यों? से प्रेम करो 
क्यों आपके अंतर्द्वन्द्व को 
अंतर्ध्वनि से जोड़ता है 
प्रकाशित करता है चेतना 
चेतना उड़ान भरती है 
अंधेरों को उज्जवलित करने के लिए 
अज्ञात को खोजते हुए 
आपके भीतर तंत्र का निर्माण करती है 
जिससे घूमता है ‘काल’ का चित्र 
चित्र बदलता है नए चित्र का निर्माण करते हुए ,
काल को गढ़ते हुए 
आप सुनते हो अपना सृजन संगीत 
एक बेहतर और मानवीय 
विश्व का सृजन करते हुए !
...
#क्यों #विश्व #काल #चेतना #मंजुलभारद्वाज



भगत सिंह ... 23 मार्च ! -मंजुल भारद्वाज

भगत सिंह ... 23 मार्च !
-मंजुल भारद्वाज
 
ऐ दोस्त तू कमाल कर गया 
गांधी की आंधी से उठा और 
देश को मार्क्स दे गया

क्रांति के लिए हिंसा भी ज़रूरी है 
को नकारते हुए तू शहीद हो गया
सत्ता की गोली बन्दुक से नहीं निकलती 
आज़ादी लहू मांगती है 
आत्म बलिदान से सिद्ध कर गया

भारत विविध और भावुक देश है 
पत्थर में भगवान पूजने वालों को 
‘नास्तिक’ होने की आस्था दे गया

आज तेरी शाहदत के 87 साल बाद 
मैं जब देखता हूँ 
पिज़्ज़ा और डेटा में खपते युवा को 
खुदकुशी करते किसान को 
आबरू बचाती बहनों को 
देश लूटते पूंजीपतियों को 
बैंक लूटकर फ़रार होते ठगों को 
जुमलेबाज़ और तड़ीपार सत्ताधीशों को 
लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलते वोटर को 
प्रतिरोध का बिगुल फूंकने की बजाए 
दरबार में नाचते कलाकारों को 
तो ऐ दोस्त ...
तेरे फोटो पर मैं हार नहीं चढ़ाना चाहता 
मैं तेरे होने का बखान नहीं करना चाहता 
मैं एक रस्म अदायगी नहीं करना चाहता 
भगत सिंह को पड़ोस में नहीं ढूंढना चाहता 
मैं खोजना चाहता हूँ 
अपने अंदर भगत सिंह 
होना चाहता हूँ कुर्बान 
संविधान और लोकतंत्र के लिए !...


#शहीद #प्रतिरोध #संविधान #लोकतंत्र #गांधी #मंजुलभारद्वाज

प्रतिरोध - मंजुल भारद्वाज

प्रतिरोध
- मंजुल भारद्वाज 
प्रतिरोध सृजन है 
सृजन का बीजमन्त्र है
बिना प्रतिरोध के सृजन नहीं हो सकता
अपने आवरण को बिना फाड़े 
बीज अंकुरित नहीं हो सकता 
बिना प्रतिरोध के सृजन नहीं हो सकता

उत्क्रांति सृजन प्रकिया का 
वक्त के चक्र पर चलने वाला 
अनंत आन्दोलन है 
जो मनुष्य के पहले 
और बाद भी रहेगा 
..आदि से अनंत तक ...

मनुष्य या प्राणी अपनी ‘जननी’ का 
गर्भ फाड़ कर बाहर आते हैं 
अपनी जननी के शरीर से 
बगावत कर अपनी माँ के 
गर्भाशय में अपने शरीर के 
आकार के लिए ‘संघर्ष’ कर 
जगह बनाते हैं अपने प्रतिरोध से 
‘गर्भाशय’ को सृजन की प्रयोगशाला बनाते हैं 
जननी के शरीर से अपने शरीर के 
होने का नाम ही ‘जन्म’ है
प्रसूति उसी प्रतिरोध का नाम है

सृजनकार की सृजन प्रतिबद्धता 
दृष्टि , समग्रता तय करती है
सत्ता’ भक्ति या प्रतिरोध प्रवृति 
वो अपने ‘सृजन’ से मनुष्य को 
‘जंगली’ पशु की गुहा से निकालकर 
विचारों की संकीर्णता को तोड़कर
‘वर्चस्ववाद’ के रसातल से निकाल
मनुष्य बनने के लिए उत्प्रेरित करें

सामाजिक, आर्थिक,सांस्कृतिक,राजनैतिक
आयामों को अपने सृजन प्रतिरोध से भेदकर 
नयी व्यवस्था का निर्माण करे 
सड़ती ‘व्यवस्था’ को वैचारिक परिवर्तन से
जड़ता और अराजकता के ‘चक्रव्यूहों’ को 
अपने ‘सृजन’ से भेदकर सृजनकार 
सृजन प्रक्रिया के प्रतिरोध से 
अपनी जड़ता को स्वयं ‘तोड़ता’ रहे 
अनंत काल तक....!
...
#प्रतिरोध #सृजन #सृजनकार #मंजुलभारद्वाज

तुम्हारे रक्तरंजित छालों से - मंजुल भारद्वाज

तुम्हारे रक्तरंजित छालों से
-मंजुल भारद्वाज
 
अपने रक्तरंजित पाँव के निशान 
जव विकास पथ पर अंकित करते हो 
तब सत्ता के दलालों को 
तुम माओवादी नज़र आते हो
तुम अपने ही देश में पराये नज़र आते हो 
तुम्हारे हक्क, तुम्हारे हकूक छीनने वाले 
तुम्हारे पद चिन्हों से बौखला गए हैं 
तुम्हारे पाँव के छालों से निकला लहू 
अब क्रांति की इबारत लिखेगा 
जिसमें ढह जायेगीं धर्मांध ताकतें 
तुम्हारे खून से सनी सत्ता 
निर्माण होगी एक न्याय संगत व्यवस्था 
जहाँ बुद्ध गांधी मार्क्स अम्बेडकर के परचम लहरायेगें 
ध्वस्त होगी अडानी,अम्बानी जैसे लुटेरों की सत्ता 
देखना ज्योतिबा और सावित्री जागेगा 
हर भारतीय में 
संतों के मुखौटे लगा ढोगी बाबा 
तब होंगें जेलों में 
तुम्हारी ये ललकार 
बनेगी जनमानस की पुकार 
अब जवान नहीं मरेगा 
किसान और जहर नहीं पीयेगा
तुम्हारे रक्तरंजित छालों से 
निकलेगी सम्पूर्ण क्रांति की बयार !
...
#किसान #पूंजीवाद #क्रांति #रक्तरंजित #मंजुलभारद्वाज

हे भूमि पुत्रो तुम्हें सलाम -मंजुल भारद्वाज

हे भूमि पुत्रो तुम्हें सलाम
-मंजुल भारद्वाज 
हे भूमि पुत्रो तुम्हें सलाम 
अपने खेतों की मेढ से निकल 
अपने गाँव से निकल कर 
लाल झंडे हाथ में लिए 
अपने हक्क हकूक के लिए 
विकास पथ पर बढ़ते हुए 
तुम्हारे क़दमों की ताल से 
गूंजते तुम्हारे हौंसले को सलाम !

आज विघटित,व्यक्तिवाद की गिरफ्त में 
जकड़े हुए समाज में 
तुम्हारी संगठित ताकत को सलाम!

ऐ माटी के लाल अबकी बार 
हाकिम को एक मांगपत्र देकर मत रुक जाना 
एक जुमला सुनकर मत बहक जाना 
डिजिटल इंडिया के गवरनेन्स के झांसे में मत आ जाना 
आज आर पार की लड़ाई में तुम चूक मत जाना

आज तुम्हें ऐ भूमि पुत्रों 
तुम्हारा हक्क दबाये हर हाकिम से लड़ना है 
तुम्हारा निशाना उस ‘मीडिया’ पर भी होना है 
जो तुम्हारे होने और तुम्हारे संघर्ष को नकारता है 
भूमंडलीकरण के दैत्य को ईश्वरीय वरदान देते 
सेंसेक्स को भी पलटना है 
तुम्हारी लड़ाई अगर सिर्फ़ MSP और 
कर्ज़माफ़ी तक रही तो तुम्हारे 
खेत खलिहान श्मशान बनते रहगें 
तुम्हें निशाना शोषण के मूल पर लगाना है 
अपनी फ़सल का अब स्वयं दाम तय करना है!

केंद्र में बैठे, 
तुम पर मेहरबानी की भीख के 
टुकड़े फैंकने वालों से अब सत्ता छीननी है 
पर उसके लिए तुम्हें अपने आप से लड़ना है 
अपने अन्दर बैठे जातिवाद को हराना है 
अपने अन्दर बैठे धर्म के पाखंड पर विजय पानी है 
अपने अंदर बैठे सामन्तवादी ‘खाप’ से लड़ना है
तुम्हारे साथ कंधे से कन्धा मिलाती महिला को 
अपने बराबर हिस्सेदारी का सम्मान देना है 
और ये तुम कर सकते हो ..
इसके लिए तुम्हें बाहर नहीं 
अपने आप से लड़ना है 
हे क्रांतिवीरो स्मरण रहे 
दुनिया के हर क्रांतिकारी को पहले 
अपने आप से लड़ना होता है 
चाहे गांधी हो , नानक हो , बुद्ध हो 
ये जब तक अपने आप पर विजय पाते रहे 
तब तक क्रांति का परचम लहराते रहे

मुझे तुमसे बहुत उम्मीद है 
इस भूमंडलीकरण के गुलामी काल में 
इस कॉर्पोरेट लूट और पूंजी के नगें नाच में 
विकास पथ पर लाल झंडे लिए 
तुम्हारे कदम क्रांति की ताल ठोंक रहे हैं 
हे माटी के लाल इस ताल को स्वयं भी सुनो 
इसको चंद मांगो की पूर्ति का मोर्चा भर नहीं 
अब सम्पूर्ण क्रांति के मार्च का गीत बनो !
...
किसान आन्दोलन के समर्थन में !
#किसान #भूमंडलीकरण #हाकिम #मंजुलभारद्वाज



हे बेहतर और मानवीय विश्व के रचनाकारो - मंजुल भारद्वाज

हे बेहतर और मानवीय विश्व के रचनाकारो
-मंजुल भारद्वाज

वस्तुस्थिति बदलने वालो 
हमेशा उस मंजर से बचो जहां
बीच समंदर में लहर प्यासी हो

सपनों को हासिल करने वालो 
हमेशा उस धरातल से बचो जहां
आरजू ख़ुशी का सबब बनने की बजाए
दर्द की , गम की अमानत बन जाए

नयी खोज,नए आविष्कार करने वालो
हमेशा उस मृगतृष्णा से बचो जहां
अपनी परछाई आपको छले 
शोध एक हासिल होने की बजाए
एक अंतहीन भटकाव बन जाए

वीरानो को आबाद करने वालो 
हमेशा अतिविश्वास के दम्भ से बचो जहां
हौंसलों का आधार सिर्फ निरी भावनाएं हों 
और 
विचार हवा में सूखे पत्तों की तरह उड़ रहे हों

साधना के साध्य के साधको 
हमेशा उस मन;स्थिति से बचो जहां 
एकांतवास को तन्हाई आ घेरे 
सृजन को दुनियावी व्यवहार ढक ले 
हे बेहतर और मानवीय विश्व के रचनाकारो 
उपरोक्त सृजन के ‘भंवरों’ से उभरने के लिए 
हमेशा इस ‘पल’ और ‘गति’ की दिशा 
की नजब को पकड़े रहो 
इस ‘पल’ और ‘गति’ के स्पंदन से 
स्पन्दित होकर ‘चैतन्य के चिंतन’ प्रकोष्ठ में 
व्यवहार मुक्त, मानवीय ‘तत्व और सत्व’ 
को सृजते रहो 
फिर देखो व्यवहार और प्रमाण 
पतवार बनकर कैसे आपके जीवन की 
नैया पार लगाते हैं और आप इस संसार के 
दीप स्तम्भ बनकर सदियों तक 
सभ्यताओं के पथ प्रदर्शक के रूप में जिंदा रहेगें 
..... 

#मानवीयविश्व #रचनाकार #मंजुलभारद्वाज



ये बड़े घाघ हैं - मंजुल भारद्वाज

ये बड़े घाघ हैं
-मंजुल भारद्वाज

ये बड़े घाघ हैं 
बेशर्मी में ‘मौन’ साध जायेगें 
आबोहवा बदलता देख
आपकी टोली में छुप जायेगें

तुम सरोकारों के पैरोकार हो 
ये सत्ता के ‘सिक्कों’ के वफ़ादार हैं 
तुम ‘जीवन’ के संघर्ष में 
व्यवस्था को बदलने के लिए 
‘कला’ को सत्व का,तत्व का 
हथियार मानते हो
ये सिर्फ़ ‘कला’ को भोगवाद का 
भक्ति राग मानते हैं 
तुम ‘कला’ को प्रगतिशील मानते हो 
ये कला को ‘जड़’ समझते हैं 
तुम वैचारिक प्रतिबद्धता की बात करते हो 
ये ‘रूप’ के इर्द गिर्द खत्म हो जाते हैं

तुम्हारे लिए “रंग’ एक चेतना है 
इनके लिए सिर्फ़ ‘नुमाइश’

ये रंगकर्मी नहीं जो ‘कला’ को 
‘मनुष्य को मनुष्य’ बनाने के लिए साधते हों 
ये ‘गिरगिट’ हैं जो ख़ुद को 
बचाने कर लिए ‘रंग’ बदलते हैं!
.....
#रंगदृष्टि #रंगकर्म #मंजुलभारद्वाज

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...