हाशिया हाशिये पर ना हो
- मंजुल भारद्वाज
मजदूरों का यलगार हो
धर्मान्धता,सामन्तवाद,पूंजीवाद
शोषण,अन्याय,असमानता
के खिलाफ़ ललकार हो!
पहाड़ तोड़ने वाले,
जमीन जोतने वाले
समुद्र का सीना चीरकर
तूफानों को रोकने वालों का श्रम
रोटी का मोहताज़ ना हो
दृष्टि स्पष्ट हो, सृष्टि का निर्माण हो
अपनी लड़ाई किसी को ठेके पर
देने की बजाय,
आत्म निर्माण का संकल्प हो!
इंकलाब का आगाज़ हो
हर सपना साकार हो
सम्यक,समता,न्याय की पुकार हो
एक हाथ नर का दूजा हाथ नारी का
लिंग समानता उसका आधार हो !
ऐ विश्व के मजदूरों
तुमने भाषा,क्षेत्र,
देश और भेष को पाटा है
वसुधैव कुटुम्बकम के नारों
संकल्पनाओं को साकार किया है !
तोडा है गुरुर सत्ताधीशों का
बारम्बार,लाल लहराया है
हर बार, लाल के लिए कुर्बान
ऐ माटी की संतानों
अब होशियार, सजग और सचेत
होकर पूछो उनसे ये सवाल
‘मज़दूरों’ के नाम पर साम्राज्यवादियों से
लड़ने वाले खुद ‘साम्राज्यवादी’ कैसे हो गए!
ताकि हाशिया हाशिये पर ना रहे!
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में संघर्ष
हमारा नारा है
लड़ेगें, जीतेगें की भीड़ में
ढ़ोनेवाले,ढकेलने वाले
नारा लगाने वाले जिस्म
की छवि को बदलना होगा
सत्ता को उखाड़ फ़ेंकने वाले
क्रांतिकारियों को ‘आत्म’ में झांकना होगा
व्यवस्थागत क्रांति के साथ
आत्म क्रांति करनी होगी
चिंतन,विचार,स्वराज का
आत्मोदीप जलाना होगा
ताकि हाशिया हाशिये पर ना रहे!...
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