Tuesday, February 28, 2023

तुम कह दो ना ! -मंजुल भारद्वाज

तुम कह दो ना !
-मंजुल भारद्वाज
तुम कह दो ना ! -मंजुल भारद्वाज

 
तरंगों को साधता हुआ 
वो कौन सा स्वर है 
नकारात्मक रूहों को 
मुक्त करता वो 
कौन सा प्रलाप है 
भटकती उर्जा को 
रचनात्मक दिशा देता 
वो कौन सा आलाप है
रंग से रंगभूमि में 
प्राण फूंकता वो 
कौन सा साज है 
वास्तु के निर्जीव हिस्सों को 
सजीव करता 
वो कौन सा नाद है 
अमूर्त से मूर्त को जोड़ती
मूर्त को अमूर्त से मिलाती 
वो कौन सी आवाज़ है 
दर्शक चेतना में 
कल्पनाओं का रंग भर
जीवन को खूबसूरत बनाता 
वो कौन सा 
दृष्टि और सृष्टि संगम है 
तुम कह दो ना !

Monday, February 27, 2023

विचार और विकार का संघर्ष ! -मंजुल भारद्वाज

 विचार और विकार का संघर्ष !

-मंजुल भारद्वाज

जिन्होंने दुनिया को बताया 
वर्ग संघर्ष है 
धर्म संघर्ष है 
जाति संघर्ष है 
अमीर-गरीब का संघर्ष है 
उन्होंने ग़लत बताया 
सही आकलन नहीं किया 
अपने विश्लेष्ण से दुनिया को भ्रमित किया 
दुनिया में 
विचार और विकार में संघर्ष है
आत्मबल और आत्महीनता में संघर्ष है
विवेक और वर्चस्ववाद में संघर्ष है
अहिंसा और हिंसा में संघर्ष है 
ज्ञान और अज्ञान में संघर्ष है 
न्याय और अन्याय में संघर्ष है
प्रकृति और विकृति में संघर्ष है 
विज्ञान और तकनीक में संघर्ष है!
झूठ है यह की दुनिया में अल्पसंख्यक ख़तरे में होते हैं 
अगर दुनिया में अल्पसंख्यक ख़तरे में होते तो 
दुनिया में कोई अमीर नहीं बचता 
कोई सत्ताधीश नहीं बचता 
कोई धर्मगुरु नहीं बचता 
क्योंकि इनकी संख्या कुल आबादी के बरक्स
सिर्फ़ दो से चार फ़ीसदी है 
आदिकाल से अब तक 
और यह कभी ख़तरे में नहीं थे !
भारत बहुसंख्यक देश नहीं है 
यह अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यक देश है 
यहाँ जितने धर्म है उतने अल्पसंख्यक हैं 
जितनी भाषा हैं उतने अल्पसंख्यक हैं
जितनी जात हैं उतने अल्पसंख्यक हैं
और इन अल्पसंख्यकों पर 
4.3 फ़ीसदी ब्राह्मणों का सदियों से राज है 
आज की जनगणना के अनुसार 
लगभग 6 करोड़ ब्राह्मणों का राज है 
वही इस देश को चलाते हैं 
आज़ादी के बाद संविधान सम्मत भारत ने 
अहिंसा,विवेक,ज्ञान,विज्ञान
धर्मनिरपेक्षता,समानता,समता के मूल्यों से 
मनुवादी सत्ता को उखाड़ फेंका था 
आधे ब्राह्मणों ने संविधान के मूल्यों को अपनाया 
और संविधान सम्मत भारत का निर्माण किया 
नेहरु उनमें से एक थे 
जो सिर्फ़ जन्म से ब्राहमण हैं 
मनुवादी हैं 
ऐसे ब्राह्मणों ने संविधान का विरोध किया 
आर एस एस बनाया 
और संविधान सम्मत भारत की जड़ों को खोदने के 
षड्यंत्र में जुट गया
आज भारत में 
नेहरु और हेगड़ेवार का सत्ता संघर्ष है 
संविधान सम्मत भारत के पक्षधर ब्राह्मणों
और 
मनुवादी ब्राह्मणों के बीच संघर्ष है
बाकी सब इनके सत्ता संघर्ष के मोहरे हैं !
...

Art work: Uday Deshmukh


गंगा -मंजुल भारद्वाज

 गंगा

-मंजुल भारद्वाज
सबसे बड़े प्यासे
उपजाऊ मैदान की प्यास बुझा
जीवन उगाती हो
सभ्यता सींचती हो
पर कैसी सभ्यता?
कपोल कल्पनाओं की किंवदंती
पाखंड,मिथ्या कर्मकांड को सहेजती
गंगा तुम वर्णवाद को पालती हो
जहाँ मनुष्यता खत्म हो जाती है !
शुरू होती है पशुता
गुलामी,भेद, छूत-अछूत का
रक्तपिपासु पाप-पुण्य का शोषण चक्र
प्रारब्ध का लेखा जोखा
पावन,पवित्र ,निर्मल तेरी धारा में
मिलता है वर्णवाद की चक्की में पिसते
अनंत जनों का लहू सदियों से !
हे गंगा तेरा चप्पा चप्पा
कर्मकांड का केंद्र है
जहाँ से फलता–फूलता है
फैलता है वर्णवाद पूरे भारत में
वर्णवाद जो लहूलुहान करता है
पल पल भारत की आत्मा को !

Sunday, February 26, 2023

‘भारत एक विचार’ के महान सपूत! -मंजुल भारद्वाज

 ‘भारत एक विचार’ के महान सपूत!

-मंजुल भारद्वाज
‘भारत एक विचार’ के महान सपूत!  -मंजुल भारद्वाज

विकारी संघ ने बापू को मारा
नेहरु की लोकतांत्रिक विरासत को
ध्वस्त करने के लिए
सरदार और नेहरु में बैर बताया
भगतसिंह को अलग बताया
गाँधी आंबेडकर के द्वंद्व को
दुश्मनी बता सता का खेल रचा
गांधी,नेहरु,भगत,आंबेडकर में
द्वंद्व,अंतर्द्वंद्व थे
ये अंतर्द्वंद्व
संवैधानिक,लोकतांत्रिक
भारत एक विचार के लिए थे
द्वेष,नफ़रत,वैमनस्य और हिंसा से
सत्ता हासिल करने के लिए नहीं
आओ हम भारत के लोग
इन महान सपूतों के
अंतर्द्वंद्वों को स्वीकारते हुए
विकारियों को सता से बेदखल कर
भारत एक विचार के महान शहीदों के
सपनों को पूरा करें !

फिर यह सभ्यता क्या है? -मंजुल भारद्वाज

 फिर यह सभ्यता क्या है?

-मंजुल भारद्वाज
फिर यह सभ्यता क्या है?  -मंजुल भारद्वाज


लोग जश्न मना रहे हैं 
ढोल ताशे बज रहे हैं 
पटाखे फोड़ रहे हैं
मेरे चारों ओर सन्नाटा पसरा है 
मैं हैरान हूँ 
अपनी मौत की शोभा यात्रा में 
आखिर लोग इतने खुश कैसे हैं?
कैसे ज़मीं का एक टुकड़ा 
देश बन जाता है 
जिसको बचाने के लिए 
लोग जान देते हैं 
पर हर रोज़ 
उस टुकड़े में रहने वाले लोग 
आपस में एक दूसरे को लूटते हैं 
नोचते खसोटते हैं 
एक दूसरे की जान लेते रहते हैं 
उलझन सुलझती नहीं 
आखिर देश का मतलब 
ज़मीं का टुकड़ा है 
या उसमें रहने वाले लोग?
सच झूठ की लुका छिपी 
धूप छाँव सी चलती रहती है 
परछाई की तरह घटती बढ़ती रहती है 
एक शरीर है 
जिसका नित्यकर्म अटल है 
जिसका एक ही सच है 
एक ही ईमान है 
एक ही ज़मीर है 
वो है रोटी 
फिर यह सभ्यता क्या 

Friday, February 24, 2023

विकारी संघ की क्रोनोलोजी -मंजुल भारद्वाज

 विकारी संघ की क्रोनोलोजी

-मंजुल भारद्वाज 
विकारी संघ की क्रोनोलोजी  -मंजुल भारद्वाज


आत्महीनता 
विकार,विष,विध्वंस 
द्वेष,नफ़रत,हिंसा 
जवाबदेही से मुक्ति 
जन्म कुंडली
ग्रहों की दिशा 
जन्म का संयोग 
संस्कार,संस्कृति की आड़ में 
प्रारब्ध,आडम्बर,पाखंड
प्राकृतिक आपदाओं में 
सेवा का मानवी मुखौटा 
शाखा का आधार 
भेदभाव
धर्म,जात,लिंग
असत्य,उंच नीच 
भेड़,भीड़,भ्रम 
संघ,संगठन के नाम पर 
कर्मकांड में लिप्त भीड़ 
सवाल से बवाल
भावनाओं का उबाल 
धर्म की आड़ में 
सत्ता का षड्यंत्र 
राष्ट्रवाद,वर्चस्ववाद,व्यक्तिवाद
चमत्कार 
विध्वंस,विध्वंस,विध्वंस !

‘उनको’ - मंजुल भारद्वाज

 ‘उनको’

- मंजुल भारद्वाज 
‘उनको’  - मंजुल भारद्वाज


विकारी संघ के विष कुंड में 
विष ‘उनको’ मारो से आता है 
जनता ‘उनको’ मारने के 
उन्माद में ‘उनको’ मारती है 
विकारी संघ ‘उनको’ की 
पहचान समय समय पर बदलता है 
सत्ता के तख्त के लिए 
‘उनको’ का मतलब मुसलमान होते हैं 
सामाजिक वर्चस्व के लिए 
‘उनको’ का मतलब दलित होते हैं 
सांस्कृतिक शुद्धता के लिए 
‘उनको’ का मतलब महिला होता है 
हर बार पढ़ा लिखा वर्ग 
विकारी संघ के ‘उनको’ को 
जायज ठहराता है 
मध्यमवर्ग राम भक्ति के 
पाखंड में लीन हो 
मलाई की बाट जोहता है 
बेरोजगार कम पढ़ा लिखा 
भीड़,भेड़ और भ्रम का शिकार युवा 
‘उनको’ पर हमला करता है 
पुलिस हमलावरों को संरक्षण देती है 
मीडिया ‘उनको’ से मुनाफ़ा कमाता है 
सुप्रीमकोर्ट मौन समाधि धारण करता है 
संविधान सुबकता रहता है!

अँधेरा ... -मंजुल भारद्वाज

 अँधेरा ...

-मंजुल भारद्वाज
अँधेरा ...  -मंजुल भारद्वाज


मस्तिष्क की कोशिकाओं से 
बाहर निकलती तरंगें 
अपनी अभिव्यक्ति के लिए 
उपयुक्त अर्थ सम्मत 
शब्द खोज रही हैं 
शब्द छिंटक कर बिखर रहे हैं 
टूट रहे हैं 
अपना अर्थ खो रहे हैं 
तरंगें और तीव्र हो रही हैं 
आवेग बढ़ रहा है 
जैसे दिमाग फट जायेगा 
जो घट रहा है 
जो चल रहा है 
मनुष्य शब्दों का अर्थ खो रहा है 
दरअसल मनुष्य का शरीर
बिना सिर के चल रहा है 
द्वंद्व तीव्र है 
बिना सिर की मनुष्य देह को 
कैसे शब्दों से जोडें 
कैसे मरे हुए ज़मीर को जगाएं?
कैसे इन सिर रहित धडों को बताएं 
तुम मनुष्य हो 
कीड़ नाल नहीं हो 
जिसे चुटकी भर आटे
चीनी या चावल के दानों से 
नियंत्रित और संचालित किया जाए 
नसें फट रही हैं 
कल्पना बिजली सी कौंध रही है 
गर्जना हो रही है 
विध्वंस के काले बादल 
घिर आयें हैं
दबोच रहे हैं 
मानव होने के स्वर को 
चेतना को 
रौंद रहे हैं विचार को 
विवेक को 
बचा है सिर्फ़ मवाद 
कीचड़ ,कीचड़ सिर्फ़ कीचड़ 
बिना सिर धड 
कीचड़ में सने अमृतकाल मना रहे हैं 
भारत लहूलुहान हो रहा है 
भारत माता की अस्मिता को 
बिना सिर वाले धड़ नोच रहे हैं 
अस्मिता नोचने वाले 
भारत माता की जय बोल रहे हैं 
जय बोलने वाले भारत माता को नोच रहे हैं 
भांड इसका लाइव टेलीकास्ट कर हैं 
बिना सिर के धड़
अपने ड्राइंग रूम में 
हिन्दू राष्ट्र का सपना साकार होते देख
खुश हो रहे हैं 
एक एक साँस को तरसने वाले 
बस राम मन्दिर के उद्घाटन का इंतज़ार कर रहे हैं 
संविधान नाम की एक किताब 
कीचड़ में फेंक दी गई है 
उस कीचड़ में कमल खिल रहा है 
गरीब हिन्दू राष्ट्र में कमल पर बैठी 
लक्ष्मी मुस्कुरा रही हैं 
राम मन्दिर के बाहर करोड़ों 
भूखी नंगी स्त्री देह 
बच्चे ,बूढ़े,युवा अपना कंकाल लिए 
एक एक निवाले के लिए 
राम नाम जप रहा है 
कमल पर बैठी लक्ष्मी मुस्कुरा रही है 
भोंगे से कान फाडू आवाज़ आ रही है 
भाइयों बहनों हम विश्व गुरु बन गए हैं ...
कंकाल देह मर रही हैं 
कमल उग रहा है 
भाषण चल रहा है 
मस्तिष्क की नसें फट गई हैं ...
चारों ओर शोर ही शोर है 
अँधेरा ही अँधेरा है 
अँधेरा है ....
कहीं एक चराग जलने की 
उम्मीद लिए ...

Thursday, February 23, 2023

बुद्ध और गाँधी की विरासत वाला राष्ट्र या भेड़ों का झुण्ड! -मंजुल भारद्वाज

 बुद्ध और गाँधी की विरासत वाला राष्ट्र 
या भेड़ों का झुण्ड!

-मंजुल भारद्वाज 
हिंसा, अहिंसा 
मानव और पशु के बीच का अंतर 
पशुता जब हावी होती है 
तब युद्ध निश्चित है 
सारे ईश्वर वध को जायज मानते हैं 
धर्म उसको ब्रह्मास्त्र 
प्राण देह त्याग देता है 
सभ्यताएं भूतकाल की खूंटी पर टंगी रहती हैं 
मनुष्य को पशुता में लपेटे हुए
मनुष्य भूत की छाया से बाहर क्यों नहीं आता? 
क्यों नहीं भविष्य को हिंसा मुक्त बनाता?
क्या भेड़ों का राष्ट्र होता है?
या 
राष्ट्र विवेकशील मनुष्यों का जनसागर है 
जो प्रेम और त्याग से बंधा है 
संसार की सम्मत कृति है संस्कृति 
जिसमें विकारों का कोई स्थान नहीं होता 
विचार के सूर्य से दमकता चैतन्य 
जहाँ कोई अँधेरा नहीं होता 
भारत ज्ञान का सरोवर है 
अहिंसा,बंधुत्व,प्रेम,त्याग 
इसके सूत्र हैं 
मनुष्य रूप में जिसे बुद्ध ने साधा 
राजनैतिक डोर में गांधी ने पिरोया
गांधी ने हिंसा और अहिंसा के 
बाहरी टकराव को 
मनुष्य के भीतरी अंतर्द्वन्द्व में बदला
क्या युद्धौन्माद की दहलीज़ पर खड़ा राष्ट्र 
बुद्ध और गांधी की चेतना से रौशन होगा?
पशु और मनुष्य के अंतर्द्वन्द्व में 
मनुष्य विजयी होगा 
या 
हिंसक पशु मनुष्यता को लीलता रहेगा? 
.. 

उगा था वो अंतर्मन में - मंजुल भारद्वाज

 उगा था वो अंतर्मन में 

- मंजुल भारद्वाज
उगा था वो अंतर्मन में   - मंजुल भारद्वाज


मैं एक सदी जी आया 
ढाई आखर प्रेम के 
अपनी रूह पर लिख आया 
उगा था वो अंतर्मन में 
अपने होने की खुशबू से 
मैं उसके वजूद को महका आया 
अपने अहसास की तरंगों से 
मैं सदा सदा के लिए 
उसको रंग आया !

Wednesday, February 22, 2023

स्पंदन - मंजुल भारद्वाज

 स्पंदन

- मंजुल भारद्वाज



स्पंदन 
क्या है स्पंदन 
स्व प्रदत्त नश्वरता मुक्त 
दमकता निसर्ग 
स्व को व्यवहारिकता की 
आग में तपा 
निज को ब्रह्मांड से जोड़ना 
हर पदार्थ
पद के अर्थ को 
आत्मसात कर 
सृजन प्रकिया में 
समर्पित हो जाना
सांस शारीरिक है 
स्पंदन रूहानी 

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...