Saturday, November 9, 2019

भेड़ों के समाज में शब्दक्रांति! -मंजुल भारद्वाज

भेड़ों के समाज में शब्दक्रांति!

-मंजुल भारद्वाज

धर्मान्धता के आडम्बरों में

सदियों से सोए

प्रारब्ध की संस्कृति से

अभिशप्त मानस की

चेतना को जगा

इंसानियत का बीज रोपित कर

पेट भरने वाले पशु मात्र से

मनुष्य होने के अहसास

विश्वास की फ़सल

देश में लहलाई

गुलामी की बेड़ियों तोड़

सार्वभौमिक राष्ट्र बन

भारत विश्व में खड़ा हुआ

संविधान सम्मत राष्ट्र

अन्न से आत्म निर्भर हुआ

विचार, प्रगति पथ पर

तेज़ी से बढ़ा

लालच विनाश की जड़ है

यह सूत्र जानते हुए भी

मुनाफ़ाखोर विज्ञापनखोरों ने

भूमंडलीकरण के विनाश को

भारतीय जनमानस में विकास के

दिव्य स्वरूप में प्रस्थापित किया

लालच घर कर गया

विकाश सत्ता के शिखर पर बैठ गया

पहले विकास ने

6 लाख अन्नदाताओं को

आत्महत्या पर विवश किया

मध्यमवर्ग चुप रहा

स्मार्ट सिटी में

बुलेट ट्रेन में सफ़र करते हुए

पडोसी देश को

हर शाम टीवी स्टूडियो में हराकर

उसने देश विकास पुरुष के

सुरक्षित हाथों में सौंप दिया

बेटियों की चीत्कारों से

देश में हाहाकार है

न्याय को एनकाउंटर से ध्वस्त कर

प्रतिशोध की आग में

जलता हुआ समाज

मीडिया की मंडियों में

हैवानियत पर ताली बजाता है

भात भात मांगती बच्ची

विकाश पुरुष के डिजिटल इण्डिया में

भूख से मर जाती है

विकास पुरुष देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर

5 ट्रिलियन के जीडीपी का ख़्वाब दिखाता है

मुर्छित कोर्ट से राम मंदिर का फ़ैसला करवा

हिन्दूराष्ट्र की नींव रखवाता है

स्वर्ग को धरती से मिला

देश के संविधान को तार तार करने की

मुहीम चलाता है

भारत नाम के विचार को

सत्ता के आकंड़ों से ध्वस्त करता है

संसद में संविधान को लहूलुहान कर

धर्म के आधार पर

नागरिकता का डंका बजाता है

विकारी सत्ता लोलुप

देश को रौंदता हुआ

वोट की फ़सल लहलाता है

विकारी सत्ता की भूख में

पूरे समाज को चबा जाता है

शब्दक्रांति का पैरोकार

मैं, केवल और केवल

सत्य,विचार,विनय

विवेक की जीत की उम्मीद को

आखरी सांस तक थामे

भेड़ों के देश में

निरर्थक शब्द रचनाओं से

चेतना का बीज बोता है!

#भेड़ोंकासमाज #शब्दक्रांति #मंजुलभारद्वाज

मैं खोजता रहता हूँ! -मंजुल भारद्वाज

मैं खोजता रहता हूँ!
-मंजुल भारद्वाज
मैं खोजता रहता हूँ
हर पल तुममें
अपने होने को
मैं हर पल साध रहा हूँ
खुरदरे होते चैतन्य को
मैं जीना चाहता हूँ
हर उस लम्हें को
तुम्हारी धडकनों में
धड़कते हुए
जिन्हें काल छिटककर
दूर फेंक देता है!
#हरपल #जीना #मंजुलभारद्वाज

चल बंजारन ले चल - मंजुल भारद्वाज

चल बंजारन ले चल
- मंजुल भारद्वाज
एक ठौर सुहाती नहीं
खूंटे पर बंधी जिंदगी
रास आती नहीं
जिंदगी बंजारन है
कहीं रूकती नहीं
अपनी धुरी पर
गतिशील है वसुंधरा
किसी तरह की जड़ता
मन को भाति नहीं
मैं बन का जारा
फिरूं जग सारा
गाऊं जीवन गीत
लिए बंजारन की प्रीत
काले काले कजरारे
नयनों में ख़्वाब सा तैरता
सुंदर मुखड़े के
नक्श निहारता
लय,ताल से सधा
गठीला बदन
बिना जोर जबरदस्ती के
जब अपनी मर्जी से
मोहक अदाओं की छटा बिखेर
चमकती चांदनी को मदमाता है
तब अपने आप बंजारा होने का
गुरुर आ जाता है
सभ्यता के नाम पर
बसे शहरों की घुटन
हिंसा,खून खराबे
बलात्कार की चीत्कारों से
अच्छा है अपना बन
चल बंजारन ले चल
अपने बंजारे को
इस पढ़ी लिखी दुनिया से
कहीं दूर
अपने बन में
जहाँ प्रेम ही प्रेम हो!
#बंजारन #मंजुलभारद्वाज

विवेक की सलीब है! - मंजुल भारद्वाज

विवेक की सलीब है!
- मंजुल भारद्वाज
अर्थियों पर सवार मंदिर
अस्थियों पर खड़ी मस्जिद
ज़िंदगी नहीं मौत का तांडव हैं
राम या रहीम का प्रेम नहीं
सत्तालोलुपों का मवाद है
सभ्यताओं का ध्वंस
इंसानियत की बलि है
आस्था का पाखंड
विवेक की सलीब है!
#मंदिर #मस्जिद #मंजुलभारद्वाज

बरखुरदार -मंजुल भारद्वाज

बरखुरदार
-मंजुल भारद्वाज
तम से जीत
चैतन्य से प्रीत
अहं की हार
सम संसार
भ्रम पर वार
सत्य हो स्वीकार
अधिकार मिलेगें
जब कर्तव्य
निभाओगे बरखुरदार!
#मूल्य #जीवन #मंजुलभरद्वाज

ऐ चाँद – मंजुल भारद्वाज

ऐ चाँद
– मंजुल भारद्वाज

ऐ चाँद
आशिक़ों का महबूब
शायरों का सुरूर
तन्हाई में हम-नफ़स
हुश्न का शबाब है तू!

ऐ चाँद
स्याह राहों का राही
रात का चकोर
नाउम्मीद के अंधियारों में
उम्मीद का चराग है तू!

ऐ चाँद
मुक़द्दस है तेरा जलवा
मजहब की अकीदत
मोहब्बत का पैगाम है तू !

#चाँद #मोहब्बत #मंजुलभारद्वाज

मन मंच पर घटित! -मंजुल भारद्वाज

मन मंच पर घटित!
-मंजुल भारद्वाज
विविध रंगों
उनके भावों
सपनों के
घर,खिड़की
दर,दरीचों
आंगन,गलियारों में
महकते,बहकते मौसम
समाज को अपने
चक्र पर घूमाता काल
जन्म और मौत के
फ़ासले की यात्रा के
मन मंच पर घटित
जीवन का कर्म हूँ
मैं रंगकर्म हूँ!
#मन #मंच #रंगकर्म #मंजुलभारद्वाज

प्रेम - मंजुल भारद्वाज

प्रेम
- मंजुल भारद्वाज
प्रेम दृष्टि है
प्रेम सृष्टि है
प्रेम दर्शन है
व्यवहार यानी
शरीर की तपिश
काम में जलते बदन
जिस झरने में स्नान कर
पवित्र, शीतल हो
सृजन साधना करते हैं
वो प्रपात है प्रेम

माटी के चोले को
इंसान बनाने वाली
चादर है प्रेम
पंचतत्व में इंसान
उपजाने वाली
संजीवनी है प्रेम

चाहत के पंखो पर
मन के समंदर में
उड़ती सहवास
सह अस्तित्व की
खुश्बू है प्रेम

भोग में डूबती
लालसा विलासता
शरीर की निरर्थक क्रिया को
राह दिखाता दर्पण है प्रेम

एक अनेक
अनेक एक
विविध के एकाकार
होने की शाश्वत
प्रकिया है प्रेम !
....
#प्रेम #माटी #मंजुलभारद्वाज

हर रात का सवेरा है! -मंजुल भारद्वाज

हर रात का सवेरा है !
-मंजुल भारद्वाज
पानी होते हुए नदी प्यासी है
भरा समन्दर खारा है
साहिलों के लिए तड़पता है
किनारे मझदार को तरसते हैं
प्यार भरे दिल
एक दूजे के लिए भटकते हैं
कहीं बाहरों का गुलशन है
कहीं जज़्बातों का कारवां
सहराओं में भटकता है
बात बड़ी सीधी सरल है
भेद बड़ा गहरा है
ख़ुशी की चाह जीवन है
गमों की हर रात का सवेरा है!
....
#रात #सवेरा #मंजुलभारद्वाज

स्पंदन - मंजुल भारद्वाज

स्पंदन
- मंजुल भारद्वाज
क्या है स्पंदन
स्व प्रदत्त नश्वरता
मुक्त दमकता निसर्ग
स्व को व्यवहारिकता की
आग में तपा
निज को ब्रह्मांड से जोड़ना
हर पदार्थ
पद के अर्थ को
आत्मसात कर
सृजन प्रकिया में
समर्पित हो जाना
सांस शारीरिक है
स्पंदन रूहानी !
#स्पंदन #मंजुलभारद्वाज

ओस - मंजुल भारद्वाज

ओस
- मंजुल भारद्वाज
रातभर नूर
बूंद बूंद
टपकता रहा
हरे भरे गलीचे पर
शरद ऋतू के आगमन पर
पेड़ अपने फूलों की
एक एक गुलाबी पंखुड़ी गिरा
सजाता रहा वसुंधरा का आँचल
प्रेम में पगी
आँखों की शबनम
जीवन को पल्लवित करती हुई
सूर्य किरण से
सितारों सी चमक उठी
दमकती हुई सुबह लिए!
#ओस #वसुंधरा #मंजुलभारद्वाज

परावर्तन - मंजुल भारद्वाज

परावर्तन
- मंजुल भारद्वाज
परिदृश्य
परिवेश
परिवर्तन
प्रेरणा
पथ
प्रेरक
पथिक
प्रवर्तित
प्रयोग
पुनरावलोकन
पराक्रमी
प्रतिमा!
#प्रेरणा #परिवर्तन #मंजुलभारद्वाज

आर-पार -मंजुल भारद्वाज

आर-पार
-मंजुल भारद्वाज
आर एक छोर
पार दूसरा छोर
एक संध्या दूसरा भोर
है आर-पार!

देह से आत्मा
आत्मा से देह की
यात्रा है आर-पार!

अमूर्त से मूर्त
मूर्त से अमूर्त की
सृजन प्रक्रिया है आर-पार!

प्रेमी-प्रेमिका
मिलन-बिछोह चक्र को
भेदता प्रेम है आर-पार!

पारदर्शक
सम प्रकृति
सीमाओं के ध्वंस का
मार्ग है आर-पार !

देख लूँगा,देख लूँगी
बता दूंगा,बता दूंगी
आज न्याय करने का प्रण
भावनाओं का संतुलन
अहं की तुष्टी
कुछ कर दिखाने का अहसास
है आर-पार!
#आरपार #मंजुलभारद्वाज

कश्ती -मंजुल भारद्वाज

कश्ती
-मंजुल भारद्वाज
तूफानों के बीच
मैंने चाहत की
कश्ती सजाई है

भंवर से साहिल तक
चुनौतियों की
महफ़िल रानाई है!

लहर दर लहर
रूमानियत की हवाओं ने
महबूब से मिलने की
रस्म निभाई है!

होंगें बने बनाए
जहाँ में गुजर बसर करने वाले
हमने तो
नई दुनिया बनाई है!

बेचैनियों में
मौजों की रवानी है
काल के पतवार पर
वक्त को गढने की
रीत चलाई है!
#कश्ती #मंजुलभारद्वाज

हाँ मैं उस देश का वासी हूँ ! -मंजुल भारद्वाज

हाँ मैं उस देश का वासी हूँ !
-मंजुल भारद्वाज

हाँ मैं उस देश का वासी हूँ
जहाँ सर्वोच्च अदालत
पत्थर को भगवान का क़ानूनी दर्जा दे
धर्मनिरपेक्ष संविधान की रक्षा करती है!

हाँ मैं उस देश का वासी हूँ
जहाँ सरकार छात्रों पर लाठियां
पूंजीपतियों पर दौलत बरसाती है!

हाँ मैं उस देश का वासी हूँ
जहाँ देश का तानाशाह
लाखों का सूट पहन इतराता है
भूख से बच्चे बिलख बिलख मर जाते हैं!

हाँ मैं उस देश का वासी हूँ
जहाँ आधी फ़ौज के बराबर
किसान आत्महत्या कर लेते हैं
भेड़ें बहुमत की सरकार बनाती हैं!

हाँ मैं उस देश का वासी हूँ
जहाँ देश प्रेम
राष्ट्रवाद की सलीब पर झूलता है!

#देशप्रेम #राष्ट्रवाद #मंजुलभारद्वाज

वक्त से आँख मिचौली! -मंजुल भारद्वाज


वक्त से आँख मिचौली!
-मंजुल भारद्वाज
अपना वक्त से
आँख मिचौली का
खेल पुराना है
कभी वक्त आगे
तो कभी हम
वक्त एक सीख है
काल की लीक है
कसकर आ घेरता है
गर्दन दबोच
रीढ़ तोड़ता है
सामान्य भाषा में
इसे संकट कहते हैं
दरअसल यह संकट
जीवन,अपनेपन,दोस्ती
दुनिया का मर्म है
जीवन मर्म को साधने का
अवसर है संकट
लीक छोड़ते ही
आ घेरता है
इसे भेदने का
एक सूत्र है
काल जब क्रूर होकर
अपनी गिरफ़्त में ले
तुम कसकर काल को पकड़ लो
तब तक पकड़े रहो
जब तक वो ढीला ना पड जाए
जी हाँ
काल की गिरफ़्त भी छूटती है
यह वही जान पाता है
जो उससे आँख मिलाता है
यह और बात है
वक्त को साधना
किसी किसी को आता है!
....

युवाओं का लहू बहाकर! -मंजुल भारद्वाज

युवाओं का लहू बहाकर!
-मंजुल भारद्वाज
लोकतंत्र में वो कैसा शासक होगा
अपने अधिकार के लिए
संघर्ष करते युवाओं पर
जो लाठियां बरसाता होगा
बहाकर युवाओं का लहू
वो कौन सा सुकून पाता होगा!

अपनी गरीबी का ढिंढोरा
पीट पीट कर
जनसभाओं में
विदेश की धरती पर
फेसबुक के जुकरबर्ग की
गोद में आंसू बहाने वाला
गरीब के बच्चों को
पढने से कैसे रोकता होगा!

अपना अधिकार मांगती
हर बेख़ौफ़ आवाज़ से
सवाल पूछती
हर बेबाक आवाज़ से
अपने हुकूक के लिए
जान न्यौछावर करने वाले
हर जांबाज़ से
सोचो
सत्तानशीं यह कायर तानाशाह
कितना डरता होगा !
#jnu #मंजुलभारद्वाज

ना धर्म ना जात,ना देस ना भेस! -मंजुल भारद्वाज

ना धर्म ना जात,ना देस ना भेस!
-मंजुल भारद्वाज
अपने होने का साक्ष्य
अपने को जन्मने के
प्रतिबद्ध प्रचंड आवेग से
शुक्राणु अपने कोष को त्याग
जा मिलता है अंडाणु से
अपने पूर्णत्व के लिए
एकाकी प्यास आग
संवेदना एक स्पर्श से
विलीन हो जाती हैं
एक दूसरे में
आत्मा को धारण करते हुए
एक जीव की प्रतिकृति हेतु
अपनत्व का त्याग
दूसरे की स्वीकार्यता
अनिवार्य है सृजन के लिए
यही सम है
यही समावेश
यही दृष्टि,यही सृष्टि
अपने जन्मने की प्रकिया
मनुष्य भूल जाता है
तब धर्म,जात,भाषा
देस और भेस का भेद उभरता है
जो धकेल देता है
मनुष्य को विध्वंस के
विकराल भयावह गह्वर में
जहाँ वो लीलता है
अपनी प्रकृति और मनुष्यता को!
#धर्म #जात #देश #भेष #मंजुलभारद्वाज

Friday, November 8, 2019

नाद - मंजुल भारद्वाज

नाद
- मंजुल भारद्वाज
पत्थरों में चिंगारी पैदा करने वाला
घर्षण हूँ मैं

दीये को जलाने वाला
हाथ हूँ मैं

मनुष्य की चेतना जगाने वाला
रचनाकार हूँ मैं

मानवता का प्रहरी
इंसानियत का मरहम हूँ मैं

अनाहद ब्रह्मांडीय चैतन्य की
अमूर्त-मूर्त प्रकिया को
सम्प्रेषित करने वाला
कलाकार हूँ मैं

" मैं " के सिंहनाद को
" हम " में परिवर्तित करने वाला
नाद हूँ मैं!

#मैं #मंजुलभारद्वाज

नरसंहार क्रांति नहीं होती! - मंजुल भारद्वाज

नरसंहार क्रांति नहीं होती!
- मंजुल भारद्वाज
चंद हत्यारों ने
सत्ता के लिए
नरसंहार को
क्रांति का नाम दे दिया
चंद सत्ताधीशों ने
धर्मयुद्ध के नाम पर
धरती को लहुलुहान किया
गीता का ज्ञान दे
भगवान का अवतार धर लिया
हत्या या वध
मनुष्यता का विनाशक है
बहुत घिसा है विद्वानों ने
यह विचार की लड़ाई है
धर्म का युद्ध है
न्याय के लिए संघर्ष है
यह विचार की लड़ाई
हत्या या वध क्यों करती है?
विचार क्यों नहीं बदलती
असल में विचार की
लड़ाई के नाम पर
सत्तालोलुप सत्ता का युद्ध लड़ते हैं
विचार उनके लिए ढ़कोसला भर हैं
सत्ता ही उनका लक्ष्य होता है
विचार परिवर्तन नहीं
विचार परिवर्तन ही क्रांति है
बाक़ी क्रांति के माथे पर
लिखा नरसंहार हैं!
.......
#क्रांति #नरसंहार #विचार #मंजुलभारद्वाज

ध्यान चेतना दीप है! - मंजुल भारद्वाज

ध्यान चेतना दीप है!
- मंजुल भारद्वाज
अंधकार दृष्टि शून्य
प्रकाश दृष्टि सम्पन्न
होने का सबब है
पंचतत्व,पंच इन्द्रियाँ
एक श्वास,एक लक्ष्य
एक स्वर,एक ताल
अंतर्बाह्य तारतम्य
व्यक्ति चेतना
ब्रह्मांडीय चैतन्य
एकाकार होते हैं
ध्यान प्रकिया से
समाधिस्त चेतना
कल्याणकारी दृष्टि
कालचक्र का कलात्मक सौन्दर्य
सबके सुख और शांति हेतु
आनंदित हो
ब्रह्मांड में सितारे
बनकर जगमगाता है !

संकल्प -मंजुल भारद्वाज

संकल्प
-मंजुल भारद्वाज
अब मोमबत्तियां जलाने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब अफ़सोस करने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब नारी देह पर
प्रलाप करने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब खुद को कोसने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब नारा लगाने से
नहीं बचेंगी बेटियाँ
अब विक्षिप्त मनोवृति के
ग़ोश्तपिशाच नराधम
कामुक पिपासुओं के
लिंगध्वज को चौराहों पर
सरेआम काटकर लटकाने से
बचेंगी बेटियाँ !
..........
#बेटियाँ #संकल्प #मंजुलभारद्वाज

टूटता,बिखरता,संवरता निज! - मंजुल भारद्वाज

टूटता,बिखरता,संवरता निज!
- मंजुल भारद्वाज
महान रंग चिंतन
प्राण न्यौछावर करती हुई
फ़ौलादी प्रतिबद्धता से बने
सांस लेते हुए पंचतत्वों में
एक अदना सा निज भी
साँस लेता है
जो ना जाने कितनी बार
वक्त से टकरा कर
टूटता है,बिखरता है
फ़िर संवरता है
बस इसका साक्षी
सिर्फ़ मैं हूँ
आधार है सृजनकार
अपने चैतन्य से आलोकित
कलात्मक साधना से
मानवीय विष को पीता हुआ
बेहतर इंसानी विश्व सृजन के लिए!
...
#निज #वक्त #रंगचिंतन #कला #मंजुलभारद्वाज

Thursday, November 7, 2019

ऐ चाँद – मंजुल भारद्वाज

ऐ चाँद
– मंजुल भारद्वाज

ऐ चाँद
आशिक़ों का महबूब
शायरों का सुरूर
तन्हाई में हम-नफ़स
हुश्न का शबाब है तू!

ऐ चाँद
स्याह राहों का राही
रात का चकोर
नाउम्मीद के अंधियारों में
उम्मीद का चराग है तू!

ऐ चाँद
मुक़द्दस है तेरा जलवा
मजहब की अकीदत
मोहब्बत का पैगाम है तू !
...................
#चाँद #मोहब्बत #मंजुलभारद्वाज

मन मंच पर घटित! -मंजुल भारद्वाज

मन मंच पर घटित!
-मंजुल भारद्वाज
विविध रंगों
उनके भावों
सपनों के
घर,खिड़की
दर,दरीचों
आंगन,गलियारों में
महकते,बहकते मौसम
समाज को अपने
चक्र पर घूमाता काल
जन्म और मौत के
फ़ासले की यात्रा के
मन मंच पर घटित
जीवन का कर्म हूँ
मैं रंगकर्म हूँ!
.......
#मन #मंच #रंगकर्म #मंजुलभारद्वाज
सभ्यताओं का
वो विनाश काल होता है
जब दिन रात के पहिये
धूल उड़ाते हुए
हरियाली को पाट देते हैं

सभ्यताओं का
वो विनाश काल होता है
जब आँखों में ईमान का पानी नहीं
इंसानियत को ध्वस्त करता
खून उतर आता है

सभ्यताओं का
वो विनाश काल होता है
जब जनता नीति का आचरण नहीं
सत्ताधीश का आ-चारण करती है!

प्रेम - मंजुल भारद्वाज

प्रेम
- मंजुल भारद्वाज
प्रेम दृष्टि है
प्रेम सृष्टि है
प्रेम दर्शन है
व्यवहार यानी
शरीर की तपिश
काम में जलते बदन
जिस झरने में स्नान कर
पवित्र, शीतल हो
सृजन साधना करते हैं
वो प्रपात है प्रेम

माटी के चोले को
इंसान बनाने वाली
चादर है प्रेम
पंचतत्व में इंसान
उपजाने वाली
संजीवनी है प्रेम

चाहत के पंखो पर
मन के समंदर में
उड़ती सहवास
सह अस्तित्व की
खुश्बू है प्रेम

भोग में डूबती
लालसा विलासता
शरीर की निरर्थक क्रिया को
राह दिखाता दर्पण है प्रेम

एक अनेक
अनेक एक
विविध के एकाकार
होने की शाश्वत
प्रकिया है प्रेम !
....
#प्रेम #माटी #मंजुलभारद्वाज

बरखुरदार -मंजुल भारद्वाज

बरखुरदार
-मंजुल भारद्वाज
तम से जीत
चैतन्य से प्रीत
अहं की हार
सम संसार
भ्रम पर वार
सत्य हो स्वीकार
अधिकार मिलेगें
जब कर्तव्य
निभाओगे बरखुरदार!
.............
#मूल्य #जीवन #मंजुलभरद्वाज

राजनीति की पवित्रता का दीप जलाओ! - मंजुल भारद्वाज

राजनीति की पवित्रता का दीप जलाओ!
- मंजुल भारद्वाज
इधर उधर की नहीं
अब सीधे लक्ष्य की बात करो
कारवां कैसे लुटा
सत्ताधीश से सवाल करो
संविधान सम्मत मालिक हो
इस अधिकार का
अपने अंदर अहसास जगाओ
तुम्हीं विकल्प
तुम्हीं संकल्प का विश्वास करो
जर्जर,सड़े,दुर्गन्ध भरे
सत्ता के गलियारों को
साफ़ और स्वच्छ करो
सत्ताधीशों के काले करतूतों से
कलंकित राजनीति के दामन को
अब पावन और पवित्र करो
राजनीति पवित्र है
राजनीति कल्याणकारी है
राजनीति के नाम दीया जलाओ
चारों ओर खुशहाली
अमन और शांति का
प्रकाश फैलाओ
दीपोत्सव मनाओ
शुभ दीपावली!

.................

#शुभदीपावली #राजनीति #मंजुलभारद्वाज

आब-ए-हयात है मोहब्बत! - मंजुल भारद्वाज

आब-ए-हयात है मोहब्बत!

- मंजुल भारद्वाज

तेरी आँखों के दरिया में

डूबने की सौगात है मोहब्बत

इस मुफ़लिस की क्या बिसात

मेरी नियामत तेरा इक़रार है मोहब्बत

ज़िंदगी तेरी ऐसे ही रौशन रहे ताउम्र

कुदरत का नूर

आब-ए-हयात है मोहब्बत!
..............

#मोहब्बत #रौशन #मंजुलभारद्वाज

आपकी नज़र! - मंजुल भारद्वाज

आपकी नज़र!
- मंजुल भारद्वाज
आँखों के समंदर में डूबना
आशिक़ों की नियति है
इश्क़ के समंदर की थाह नहीं होती

विरह के तपते रेगिस्तान में
शबनम सी पसीजती है मोहब्बत
सूखे शैलाब के किनारे नहीं होते

इश्क़ के ज़ेर-ओ-ज़बर
ज़माना मिटा ना सका
जितना मिटाया
इश्क़ और बढ़ा

दिल की इबारत पर लिखा
जिसने पढ़ा
वो जी गया
बाक़ी जिस्म का बोझ
ताउम्र ढ़ोते रहे

नफ़रत की हुकूमतों से कह दो
आशिक़ों की जमात
शमा परवाने की होती है
खुदको जला
दुनिया को रोशन करती है!
.........
#नज़र #मोहब्बत #इश्क़ #मंजुलभारद्वाज

प्रतिरोध का प्रलाप! - मंजुल भारद्वाज

प्रतिरोध का प्रलाप!
- मंजुल भारद्वाज
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
सत्ताधीश के झूठ,पाखंड,मल
मवाद का प्रचार करने के लिए
सब कुछ बेच देना ही पत्रकारिता हो
भारत में लोकतंत्र का बिका हुआ
चौथास्तम्भ जब हर पैसेवाले का
सुलभ शौचालय हो
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
राजनैतिक परिदृश्य बदलने वाले
सिर्फ़ आंकड़ों को अपना हथियार मानते हो
जब इस देश के इतिहास में लिखा हो
युधिष्ठिर भी आंकड़ों के खेल में हार गया था
चेतना,दृष्टि शून्य आंकड़े राजनीति के अखाड़े में
निरर्थक और आत्मघाती होते हैं
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
साहित्य के नीरो
कवि,कहानीकार,स्तम्भकार
रंगकर्मी,नाटककार
देश की बर्बादी पर
लिखने की बजाय
सत्ताधीश की स्तुति में
एक दूसरे को आदरणीय के सम्बोधन से
शब्दों की बासुंरी बजा रहे हों
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
करवाचौथ के चाँद की महिमा मंडन में
नारीमुक्ति का परचम
पितृसत्ता के पाँव में मुक्ति खोज रहा हो
भारतीय परम्परा,संस्कृति और संस्कार के
नए अवतार नींबू का डंका
पूरी दुनिया में बज रहा हो
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
जनता एक दूसरे की बर्बादी का
तमाशा देख रही हो
किसानों की आत्महत्या का जश्न
बेरोजगार युवा राष्ट्रवाद के
उन्माद में मना रहे हों
एक बैंक के डूबने वाले
खाताधारकों के विनाश का जश्न
दूसरे बैंक के खाताधारक
इस बात से मना रहे हों
हमारे वाला नहीं डूबा
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
देश के स्वर्ग की बर्बादी का जश्न
वहां मिलने वाले प्लाट में हो
सत्ताधीश हर रोज़ चुनाव के लिए
सरहद पर सैनिकों की बली ले रहा हो
और
देश बाज़ार में मिलने वाले छूट से
दिवाली की खरीदारी कर रहा हो
तब प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन हो जाता है !

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तेरे दरबार न्याय के कत्लखाने हैं! -मंजुल भारद्वाज

तेरे दरबार न्याय के कत्लखाने हैं!
-मंजुल भारद्वाज
बदनाम बस्तियों में भले ही
जिस्म बिकते हों
इंसानियत महफ़ूज़ रहती है
सत्ता के गलियारों में
पोषक भले ही सफ़ेद हो
इंसानियत के खून से रंगी होती है
सभ्य समाज सपनो के बाज़ार में
नंगा होकर बिकता है
उसे शान से विकास कहता है
हाशिए का व्यक्ति नंगा रहता है
अपने ईमान को नहीं बेचता
ताउम्र महफ़ूज़ रखता है
कैसे करें तेरी इबादत
ऐ मौला ओ ईश्वर
तेरे दरबार न्याय के कत्लखाने हैं!
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कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...