Saturday, January 11, 2020

#युवादिवस पर संसद को आज़ाद करना है! -मंजुल भारद्वाज


युवा दिवस पर
संसद को आज़ाद करना है !

-मंजुल भारद्वाज

गेहूं को स्वयं
अपने को घुन से
अलग करना है
भेड़,भीड़,भ्रम के
चक्रव्यूह में फंसे
देशवासियों को स्वयं
संविधान की रक्षा करनी है
अब युवाओं को
देश की बागडोर
अपने हाथों में ले
अहिंसा के रास्ते
विकारी बहुमत से
संसद को आज़ाद करना है !





Friday, January 10, 2020

जुगनू -मंजुल भारद्वाज

जुगनू
-मंजुल भारद्वाज
ये जो जुगनू होते है ना
यह मजनू होते हैं
इश्क़ की आग में जलकर
स्वाह हो जाते हैं
अपने मिलन,उत्सर्जन का
उत्सव मनाते हुए
दुनिया को रोशन कर जाते हैं
गर्मी,उमस भरे दिनों में
बारिश की आहट मिलते ही
किसी पेड़ को जगमगाते हुए
यह प्रेम उत्सव मनाते हैं
हजारों की संख्या में
अँधेरी रात को रोशन करते हुए
आपको गुदगुदाते हैं
आपके अंदर प्रेम,प्रणय
आनंद और उन्मुक्तता की
चिंगारी लगाते हैं
घंटों इनको देखते हुए आप
इनकी दुनिया में विचर जाते हैं
मोहक,सम्मोहक अद्भुत स्निग्ध दृश्य
आँखों में समां आप उनके साथ हो लेते हैं
प्यार में जलने के लिए
एकाकी मन,अकेलपन,बोझिल मन में
एक तरंग,उमंग,ताज़गी,उत्साह
ठहरे वक्त में प्राण फूंक
मन्नत की जन्नत में
नयी कल्पनाओं का संसार बसा जाते हैं
दरअसल यह जुगनू विद्रोही होते है
रात को जगमगा कर
सूर्य की प्रस्थापित सत्ता को चुनौती देते हैं
सभ्यता के ढकोसलों में जकड़े
प्रेम के दुश्मन मनुष्य को
स्वयं प्रकाशित हो
प्रेम का पाठ पढ़ा जाते हैं!

...
#जुगनू #प्रेम #मंजुलभारद्वाज

Thursday, January 9, 2020

एक अनन्त खोज है ... -मंजुल भारद्वाज

एक अनन्त खोज है ...
-मंजुल भारद्वाज
कल्पना और बुद्धि का
इंसानी स्वरूप है कला
कल्पना जड़ता को तोड़ती है
बन्धनों को खोलती है
मौत को परास्त कर
जीवन को अनन्त बनाती है
सारी बंद खिडकियों को खोलती है
इस व्यापक,समग्र खुलेपन को
दिशा,उद्देश्य और मार्ग
प्रदान करती है बुद्धि
जो विवेक के सत से
दुनिया को खूबसूरत बनाती है
कल्पना का
बुद्धि का
कला का
कोई मुकाम नहीं होता
जितना गहरा उतरता हूँ
गहराई और बढ़ जाती है
कल्पना की राह
बुद्धि की थाह
कला का सौन्दर्य
एक अनन्त खोज है ...
#कल्पना #बुद्धि #कला #मंजुलभारद्वाज

Wednesday, January 8, 2020

‘राजनीति’ के कलंक मिटाओ - मंजुल भारद्वाज

‘राजनीति’ के कलंक मिटाओ
-मंजुल भारद्वाज

कुरीतियों के जाल में फंसे हो
कुरीति को राजनीति समझने की भूल ना करो
कुरीति को राजनीति का नाम देने वालों को 
चिन्हित कर, आओ आईना दिखाएं 
कुरीति को बदल,राजनीति का जश्न मनाएं !

अलग रंग,धर्म, परंपरा, संस्कार, 
संस्कृति, भाषा और भेष 
ये हमारी विविधता है
भारत विविधताओं का विधाता है 
आओ विविधताओं का जश्न मनाएं !

कुरीतियों के कलंक को राजनीतिज्ञ 
ना समझें 
राजनीति को गन्दा समझने वाले 
‘सभ्य’ समाज को समझा दें 
जैसा बोओगे, वैसा काटोगे 
कुरीति को दफ़न कर 
राजनीति का दीप जलाएं 
आओ राजनीति का जश्न मनाएं !

हर व्यक्ति के होते हैं 
गुण, अवगुण 
हर समाज की होती है 
अच्छाई,बुराई 
पर इन सबके पाप की चादर 
राजनीति पर मत चढाओ
अपने, लोभ, लालच, वर्चस्व पर 
‘लगाम’ लगाओ 
राजनीति का जश्न मनाओ !

ऐ भारत की संतानों 
ये पता लगाओ कि वो कौन है 
जो राजनीति के खिलाफ़ 
षड्यंत्र रच रहा है 
उसको बदनाम कर रहा है 
ज़रा सोचो ऐ भारतवासियो
क्या दुनिया का लोकतंत्र 
बिना राजनीति के चल सकता है? 
क्या आपके सपनों का भारत बन सकता है? 
‘राजनीति’ के कलंक मिटाओ 
राजनीति का जश्न मनाओ !
....

#राजनीति #कुरीति #विविधता #भारत #मंजुलभारद्वाज

Monday, January 6, 2020

'समय' का सृजन -मंजुल भारद्वाज

'समय' का सृजन
-मंजुल भारद्वाज
जिज्ञासा के वेग पर
कहे,अनकहे की लहरों पर
सृजनात्मक नाव में
विविध रंगों का परचम फहराते हुए
हम निकलें हैं ज्ञान के समंदर में
तराशते हुए अपनी कला को
'समय' का सृजन करने के लिए!

#मंजुलभारद्वाज #समय #सृजन

Sunday, January 5, 2020

अपने लहू से सींचेंगे ! -मंजुल भारद्वाज


अपने  लहू  से  सींचेंगे !
-मंजुल भारद्वाज

नकाब पोश हत्यारों
देश के गद्दारों
संवाद और संघर्ष से नहीं हटेंगे
हम जानते हैं
तुम विचार से डरते हो
तुम शरीर को मार सकते हो
गांधी के हत्यारों
आज हम विचार को
अपने लहू से सींचेंगे!
# JNU # जिंदाबाद # मंजुलभारद्वाज


युवा - मंजुल भारद्वाज


युवा
- मंजुल  भारद्वाज
व्यक्ति सचेत हुआ
कलात्मक व्यक्तित्व अंकुरित हुआ
जवां अभिव्यक्ति ने अंगड़ाई ली
बदलाव का एक एक फूल
गुलदस्ता बन महक उठा
सचेतनता की तरंग पर
बीच चौराहे कला ने
न्याय की हुंकार भरी
स्वयं को परिवर्तित करता युवा
समाज परिवर्तन को प्रतिबद्ध हुआ
एक मिसाल,एक मशाल बना
युवा ज़िंदा है
युवा प्रतिबद्ध है
युवा संविधान को समर्पित है !
#युवा #मंजुलभारद्वाज

Saturday, January 4, 2020

माटी - मंजुल भारद्वाज

माटी
 - मंजुल भारद्वाज

गर्भ में धारण कर
बीज में प्राण
ओतती है माटी
गुणसूत्र की तासीर को
ताप से उष्मित
नमी से सींचती है माटी
निराकार को आकार
देती है माटी
आकार साकार हो
निराकार होता है
निराकार को अपने
अंदर  समा  लेती है  माटी !


Thursday, January 2, 2020

खंडहरों में उगे फूल सी - मंजुल भारद्वाज


खंडहरों में उगे फूल सी
-मंजुल  भारद्वाज


कविता सिर्फ़ वाह वाह नहीं होती
कभी दर्द और आह भी होती है
भावनाओं के सैलाब को
बूंद बूंद आँखों से बहाती है
कभी होले से मंद मंद मुस्काती है
सुखांत,दुखांत का एकांत
अपने आप से संवाद है कविता
दमित भावों की गति
विद्रोह की आग है कविता
भीड़ में अकेले होने का अहसास
अकेलेपन का संबल है कविता
घोर,भीतर,गह्वर में दबी
सच्चाई का भेद है कविता
खंडहरों में उगे फूल सी
संवेदनाओं का मर्म है कविता!


....
#कविता #मंजुलभारद्वाज

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...