किताब
-मंजुल भारद्वाज
किवदंती ताबीर
वक्त की तस्वीर
अपने सीने में
समाए रहती है किताब
क्रिया,तथ्य,रंग
बेहद करीने से
अपने अंदर छुपाती है किताब
काल का ताप
कालखंड की बेताबी लिए
पाठक के जहन में
बदलाव लिखती है किताब!
#किताब #मंजुलभारद्वाज
किताब
-मंजुल भारद्वाज
किवदंती ताबीर
वक्त की तस्वीर
अपने सीने में
समाए रहती है किताब
क्रिया,तथ्य,रंग
बेहद करीने से
अपने अंदर छुपाती है किताब
काल का ताप
कालखंड की बेताबी लिए
पाठक के जहन में
बदलाव लिखती है किताब!
#किताब #मंजुलभारद्वाज
वक़्त लिख जाता है
-मंजुल भारद्वाज
वक़्त लिखता रहता है
चेहरे पर अपनी दास्ताँ
कभी पल
कभी लम्हें
कभी पहर
कभी वर्ष
कभी सदी
और कभी
युग लिख जाता है !
#वक़्तलिखजाताहै #मंजुलभारद्वाज
गांधी
- मंजुल भारद्वाज
गांधी समन्वय,समग्रता
अहिंसा के मार्ग पर चलते हैं
जन में बसे राम को स्वीकारते हैं
गीता से राजनैतिक दर्शन लेते हैं
पर राम और कृष्ण के युद्ध को खारिज करते हैं !
गांधी के लिए सत्य ही ईश्वर है
सत्य, न्याय , समता ही धर्म है
असत्य - सत्य के द्वंद्व को
गांधी आत्म संघर्ष
आत्म मंथन करते हुए
विवेक के आलोक से
सत्य तक पहुंचते हैं !
वर्ग संघर्ष के द्वेष को
आत्म संघर्ष का मार्ग दिखा
शत्रुता, हिंसा,नफरत को हटा
प्रेम ,सहिष्णुता ,बंधुता की दृष्टि
जन मानस में आलोकित कर
इंसानी बदलाव का मार्ग प्रशस्त करते हैं !
मंदिर से भभूत लो !
- मंजुल भारद्वाज
प्रकृति भी सुन लेती है
जैसी प्रवृत्ति होती है
उसे वैसी सजा देती है
वर्षो के संघर्ष के बाद
गुलामी से निजात मिली
सब भारतीय बने
संविधान की दृष्टि में
हम भारत के लोग की
दुनिया में हुंकार भरी
देश को गति मिली
विकारी संघ ने सबको
हिंदू मुसलमान बना डाला
एक विकारी ने स्कूल
अस्पताल की बजाय
चुनावी रैली में
श्मशान कब्रिस्तान बनाने का
वादा कर डाला
भेड़ों से पूछा
श्मशान बनना चाहिए की नहीं
भेड़ों ने जयकारा लगाया
हम हिंदू है
हमें स्कूल और अस्पताल नहीं
श्मशान और मंदिर चाहिए
भेड़ों ने भर भर वोट दिया
और बहुमत की हिंदू सरकार बनाई
कोरोना ने कोहराम मचाया
घर घर मसान हो गया
लाशों का ढेर लग गया
पूरा देश श्मशान हो गया
भेड़ें त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही हैं
मौत से बचने के लिए
जीवन की गुहार लगा रही हैं
दवा,डॉक्टर ,अस्पताल
खोज रही हैं
बहुमत की सरकार
चुनावी रैली में मस्त है
पदान मंत्री मौत के तांडव में
आज भी चुनावी रैली में
हिंदू मुसलमान कर रहा है
भेड़ों का झुंड हुआं हुआं कर
अपने लिए श्मशान मांग रहा है
विकारी संघ ने ऐसी दुर्गति
देश की कर दी
हिन्दुओं ने भारतीय होने की पहचान छोड़
कुंभ स्नान किया
गर्व से हिंदू कहा
निर्लज्जता की प्रकाष्ठा लांघ दी
आज भी कोरोना से बचने के लिए
मंदिर नहीं अस्पताल जाते हैं
हिंदू हो तो अस्पताल क्यों जाते हो?
मंदिर जाओ
पुजारी से भभूत लो
मोक्ष प्राप्त करो
खूब चंदा दो
मंदिर बनाओ
अस्पताल नहीं
मंदिर हिन्दुओं की आस्था है
मंदिर मोक्ष धाम है
धर्म की राजनीति के
ध्वजारोहण का यही सिला है
अब संविधान नहीं
मंदिर ही अस्मिता है !
यह सब भूल जायेंगे ...
-मंजुल भारद्वाज
यह सब भूल जायेंगे
कोरोना का हाहाकार
मौत का तांडव
श्मशान का टोकन
घर घर में मौत
कुंभ स्नान
मरते इंसान
मंहगाई की मार
मजदूरों का पलायन
दो करोड़ रोज़गार
पेट्रोल डीजल की मार
राफेल की दलाली
महिलाओं की बदहाली
स्मार्ट सिटी का शगूफ़ा
15 लाख का जुमला
बुलेट ट्रेन की दौड़
विश्व गुरु की होड़
5 ट्रिलियन की जीडीपी
किसान की आय दुगनी
सबका विकास
चाय पे चर्चा
आमदनी से ज्यादा खर्चा
बर्बाद अर्थव्यवस्था
देश के दो धन कुबेर
दर दर की ठोंकरे
नोटबंदी की लाइन
पुलिस के डंडे
सैनिकों की शहादत
झूठ बोलने की आदत
भात भात चिल्लाती बच्ची
मरी हुई माँ के पास बिलखता बच्चा
सड़क पर बच्चा पैदा करती महिला
बलात्कार के बाद
आधी रात को जलती चिता
राम की मर्यादा
संविधान की शक्ति
भारतीय होने की पहचान
हम भारत के लोग की शान
यह विकारियों के सामने
रेंगते रहेंगे
गिडगिडाते रहेंगे
ये भूखे मर जायेंगे
मनुष्य होना भूल जायेंगे
पर गर्व से हिन्दू होने का
नारा लगायेंगे
यह न्याय
अधिकार
शिक्षा
समानता
सत्य
अहिंसा
विचार
विवेक
बुद्धि
सब का त्याग कर
विकार से भर जायेंगे
जलता दीया बुझा
ताली और थाली बजायेंगे
यह सब भूल जायेंगे
यह सिर्फ़ हिन्दू कहलायेंगे !
जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन करते हुए!
......
उदास हूँ
-मंजुल भारद्वाज
उदास हूँ
कितने भयाक्रांत हैं
माँ भारती के लाल
इस भय से नोच रहे हैं
अपनी ही संतानों को
इस भय से तार तार कर रहे है
अस्मत,अस्मिता,आबरू,मर्यादा
उस राम की जिसका राज्य
‘राम राज्य’ स्थापित करना
चाहते हैं
घोल रहे हैं विष पूरी पीढ़ी में
राम के नाम पर
कितने भयाक्रांत हैं
माँ भारती के लाल
छद्म,कुतर्क,लफाज़ी में प्रवीण
जुमलों के धुरंधर
छलनी कर रहे हैं
माँ भारती का सीना
कितने भयाक्रांत हैं
माँ भारती के लाल
उदास हूँ, निराश नहीं
हैरान हूँ,हताश नहीं
ये भारत भूमि है
माँ भारती है
जो जन्मती है
मीरा,सावित्री,द्रौपदी
जीजा और लक्ष्मीबाई
जो अपने विद्रोह,समर्पण
प्रतिशोध और बलिदान से
बचाती हैं आंचल ममता
अस्मिता और स्वाभिमान का
धर्मांध ठेकेदारों और धृतराष्ट्रों से
माँ भारती जन्मती है
बुद्ध,नानक,गांधी,टैगोर
तुलसी,तिलक,कबीर
सूर,रहीम,रैदास
जिनका सत और चेतना
तोड़ती हैं पाखंड की बेड़ियाँ
करती हैं निर्माण नव भारत का
समय,समय पर!
....
#जलियाँवालाबाग #माँभारती #भारत #मंजुलभारद्वाज
इकहरे ख़्वाब
-मंजुल भारद्वाज
इकहरे ख़्वाब
बहुत गहरे होते हैं
तनहाई के चाँद
बहुत प्यारे होते हैं
उड़ान को बेताब
सपने सुनहरे होते हैं
जहां दर्द दवा हो जाए
वो इश्क़ के पैमाने होते हैं
जहां डूब कर पार हो जाए कश्ती
वो आँखों के समंदर होते हैं !
#इकहरेख़्वाब #मंजुलभारद्वाज
वक़्त बदलने के लिए क्या किया
-मंजुल भारद्वाज
करवटें बदलते रहे
सारी रात
सिलवटें ठीक करते रहे
सारा दिन
हाथों की लकीरों के
बदलने का इंतज़ार
करते रहे उम्र भर
मैं पूछता हूं
करवटें
सिलवटें
हाथ की लकीरों को
भाग्य समझने वालों से
तुमने वक़्त बदलने के लिए
क्या किया?
#वक़्त #बदलाव #मंजुलभारद्वाज
मर्यादा नहीं वर्णवाद का नायक !
- मंजुल भारद्वाज
आपके मानस में
दीमक लगा है
किसी काव्य के नायक को
संस्कृति का आधार बना
अलग अलग तरह के कर्मकाण्ड से
आपके डीएनए में बसा दिया जाता है
आप दिन रात उसे भजने लगते हैं
आस्था की अंधी गुफ़ा में
पीढ़ी दर पीढ़ी गरकते रहते हैं
आपकी सोच में वर्णवाद पसर जाता है
आप मनुष्य नहीं रहते
वर्णवाद के वाहक बन जाते हैं
जाति को संस्कार मानते है
वर्ण को संस्कृति
और पिसते रहते हैं
शोषण,हिंसा,छुआछूत की चक्की में
काव्य नायक पता नहीं कौन सी मर्यादाओं का संवाहक है
वो ना वर्ण के चक्रव्यूह को भेद पाता है
वर्ण की शिकार नारी को
अग्नि परीक्षा के जाल में
जन्मा जन्मांतर तक उलझा जाता है
ना वर्णरहित राज्य की स्थापना कर पाता है
सदियों तक वो बस वर्णवाद का वाहक बना रहता है
वर्णवाद मनुष्यता के लिए ज़हर है
समता,न्याय, अधिकार, प्रेम का शत्रु है
वर्णवाद प्रकृति का शत्रु है
हिंसा वर्णवाद का मूल है
वर्णवाद के मूल में वर्चस्ववाद पलता है
जो ब्राह्मणवाद को श्रेष्ठ मानता है
जिसके चक्रव्यूह में जन्म से मृत्यु तक
आप उलझे रहते हो
विनाशकारी यह है की आप इस गुलामी को
अपना जीवन मानते हो
काव्य नायक की हिंसा को
गांधी नकार पाए
पर जन मानस में वर्णवाद को मिटा नहीं पाए
स्वयं उसका शिकार हो गए
काव्य नायक को भजते गांधी
काव्य नायक के नाम पर मारे गए
मरते मरते भी गांधी काव्य नायक को भजते रहे
अहिंसा का नायक
काव्य नायक के वर्णवाद से मारा गया
इस देश को वर्णवाद से मुक्ति की दरकार है
काव्य नायक के ब्राह्मणवाद के भ्रम जाल से परे
मानवीय चिंतन वक्त की पुकार है !
वो
-मंजुल भारद्वाज
जितना सुनता हूँ
उतना इश्क़ परवान चढ़ता है
जितना उसके पास जाता हूँ
दीवानगी बढ़ जाती है
जितना उसके साथ रहता हूँ
जुनूनी हो जाता हूँ
जितना उसके साथ जीता हूँ
ज़िंदगी को समझ पाता हूँ
जितना उसके साथ चलता हूँ
जीवन सार्थक हो जाता है
वो
मेरे होने का सबब है
वो
मेरी अंतरात्मा की आवाज़ है !
#अंतरात्माकीआवाज़ #मंजुलभारद्वाज
अंधड़ की गुहार
-मंजुल भारद्वाज
उड़ती रेत में
रंगों का लिपटकर
एक साथ आना
धुंधली उम्मीदों का
जवां होना है
सूखे
बरसों से ख़ाली घड़ों की
प्यास बुझाना है
विरह में जलते
अरमानों के लिए
दरख्तों की सामूहिक
अरदास होती है
बादल से एक
अंधड़ की गुहार है
बूंद बूंद बरसने की !
पत्थर से चिंगारी निकलती रहेगी !
-मंजुल भारद्वाज
अँधेरे का सम्राट
यह जान ले
अँधेरा अजर अमर नहीं है
उसका एक निश्चित काल है
अँधेरे का अंत तय है
अँधेरे का प्रतिरोध
सदा से है
जब बिजली नहीं थी
तब दीया था
जब दीया नहीं था
तब जुगनू थे
जब जुगनू नहीं थे
तब पत्थर थे
पत्थर से चिंगारी
निकलती रहेगी
अँधेरे में मशाल
जलती रहेगी
अँधेरे को परास्त
करती रहेगी !
#अँधेरा #मशाल #मंजुलभारद्वाज
उर्दू भारत की संविधान सम्मत भाषा है !
- मंजुल भारद्वाज
उर्दू किसी मज़हब
कौम या प्रांत की भाषा नहीं है
भारत में उर्दू
संविधान सम्मत भाषा है!
किसी के रहमो करम की भीख नहीं
नोट से लेकर सरकारी महकमों
स्कूल,कॉलेज, विश्वविद्यालय
रेलवे ,बस स्टॉप तक में
उर्दू लिखी,पढ़ी और बोली जाती है
कीचड़ बने चाटुकार चैनलों को
ना पता है संविधान
ना है भाषा का ज्ञान!
70 साल में कुछ नहीं हुआ के मारे
भ्रष्टाचार आंदोलन के प्यारे
हल्दी घाटी के हल्दी
राम मंदिर के राम वाले हल्दीराम
अब पिट रहे हैं सारे
जो आज कमल पकड़े खड़ा है
उसका कीचड़ बनना तय है !
किसी भी उन्मादी रंग की पट्टी बांध
हुड़दंग करने वाले
100 रुपए की दिहाड़ी पर बिकने वाले
पद्मश्री के लिए ज़हर उगलने वाले
लेखक,अभिनेता,फिल्मवाले
व्यंग कवि और गीतकार
सत्ता की बिसात पर
तुम्हारी क्या औकात?
याद करो कौन बचा
क्या आडवाणी बचे
महबूबा मुफ्ती बचीं
टीडीपी बची
नीतीश बचे
अकाली दल बचा?
जिस जिस ने
संघ - मोदी का साथ दिया
उन्होंने उसी को डसा !
इतिहास गवाह
वर्णवाद संस्कृति नहीं
मानवता के लिए अभिशाप है
विकार किसी को नहीं छोड़ता
करता सबका सत्यानाश है !
समय बड़ा विकट है
बाट जोहता मरघट है
वो जो आज आत्ममुग्ध है
कल चंदन लगाकर भी महक नहीं पायेगा
चंद मिनटों में स्वाह हो जायेगा
ना तख्त बचेगा ना ताज
कोई नामलेवा
कहीं नज़र नहीं आयेगा !
मनुष्य से इतनी नफ़रत क्यों है?
-मंजुल भारद्वाज
हमारे आसपास लाशें ढ़ोते हुए
बुजुर्ग और महिलाएं दिखाए दे रहे हैं
इनको हिन्दू प्रधानमंत्री के राज में
एम्बुलेंस नहीं मिली
पर क्या किसी को फ़र्क पड़ता है
70 साल में कुछ नहीं हुआ की शिकार भीड़ को
सुबह पार्कों में नाख़ून घिसकर
ताली पीटकर हाहाहा करते झुंड को
ज़ोर ज़ोर से विठल विठल चिल्लाते लोगों को
महंगाई में जलते देश को?
पतंग के मांजे को जानलेवा बनाने वाले
पक्षियों की जान लेने वाले
चींटी,कबूतर,चिड़िया को दाना डाल
मोक्ष पाने वाले लोगों को
क्या फ़र्क पड़ता है?
जब गंगा में बहती लाशों से फ़र्क नहीं पड़ा
जब घर घर मरघट बना
देश श्मशान,कब्रिस्तान बना
तब कोई फ़र्क नहीं पड़ा
आखिर हमारे समाज को
मनुष्य से इतनी नफ़रत क्यों है?
कैसे ?
-मंजुल भारद्वाज
रोयाँ रोयाँ जिसका नफ़रत से कता हो
वो कैसे मातृभूमि का जयकारा लगाते हैं ?
वर्णवाद की बिसात पर मोहरों की तरह रखी
जात पात की दासता कैसे भारत की संस्कृति है?
कैसे अन्याय के मूल से उगी शोषण,भेदभाव,नफ़रत,
हिंसा को परवान चढ़ाती रीति रिवाज़ हमारी सभ्यता है?
औरत को अपने पैरों तले रौंदता भारत का मर्दवाद
कैसे नारियों का बलात्कार कर, माँ को पूजता है?
जिसके नाम से अधर्म का कुचक्र चलाया जाता है
वो मनुष्यता का क़त्ल होते देख कैसे ईश्वर कहलाता है?
तुम मेरी नई सुबह हो !
-मंजुल भारद्वाज
ओस की चादर ओढ़े
अलसाई सी
रूमानियत भरी रात के बाद
अंगड़ाई लेती हुई
उनींदी आखों को
होले होले अपने हाथों से मलते हुए
अपने आगोश में लेते हुए
मेरे अंदर समा रही हो
हाँ उम्मीद से भरी
तुम मेरी नई सुबह हो !
#तुममेरीनईसुबहहो #मंजुलभारद्वाज
शुभ लाभ
-मंजुल भारद्वाज
भारत में हर दिन नववर्ष होता है
सब लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं
शुभ हो, शुभ हो का जाप कर
घर के बाहर शुभ लाभ लिखते हैं
फ़िर भी 50 लाख लोग
हिन्दू सरकार ने विगत दो साल में
मौत के घाट उतार दिए
शायद शुभ लाभ हुआ नहीं
उम्मीद पर दुनिया कायम है
आज फ़िर विक्रम संवत से हिन्दू नववर्ष का आरंभ है
हिन्दू प्रधानमन्त्री है तो शुभ होगा
राजा विक्रमादित्य की तरह
सत्तासीन हिन्दू प्रधानमन्त्री
आज अदानी अम्बानी की सारी सम्पत्ति
राष्ट्र के नाम कर देंगे
सभी बेरोजगारों को रोजगार देंगे
किसानों की आय दुगनी कर देंगे
मंहगाई की होलिका पर पानी डाल देंगे
सब सस्ता होगा,सुलभ होगा
हर नागरिक को घर,पीने का पानी
स्वास्थ्य सेवा,स्कूल और निर्बाध उज्ज्वला गैस कनेक्शन देंगे
इतना ही नहीं अपने सारे झूठ,पाखंड
गुनाह कबूल कर न्यायप्रिय व्यक्तित्व के नाम से
इतिहास में दर्ज़ होने के लिए
झोला उठा फ़क़ीर बन जायेंगे
शुभ लाभ!
कभी सहेली कभी पहेली
-मंजुल भारद्वाज
ज़िंदगी तुम मुझे हर रोज़
अजनबी की तरह मिलती हो
कभी सुलझी कभी उलझी
कभी मुलायम कभी सख्त
कभी खुशहाल कभी उदास
तुम्हें मैं हर रोज़ पहली बार मिलता हूं
तुम कभी सहेली हो जाती हो
कभी पहेली
तुम्हें बुझते बुझते
मैं तुम्हें हर बार नया महसूस करता हूं
तुम्हारा सुहावना स्पर्श
मुझे खिला जाता है
तुम्हारी गरमी तपा जाती है
हर बार एक नयी याद
बही खाते में जमा हो जाती है
ज़िंदगी तुम मुझे जी रही हो
या मैं तुम्हें
तुम मुझे चला रही हो
या मैं तुम्हें
ये कभी कहीं ना मिलने वाला क्षितिज हो जाता है
कभी सांसों में चलती प्राणवायु सा
तेरी प्यास है मुझे
तेरी आस हूं मैं
ज़िंदगी तू कभी मुसीबतों का पहाड़ है
विरह का रेगिस्तान है
कभी उफनता समंदर
कभी धधकता ज्वालामुखी
कभी वक़्त के दामन में
फूलों का गुलदस्ता
ज़िंदगी अटूट अग्नि सा
मैं जलता रहूंगा
तेरा हर ख्वाब रोशन करता रहूंगा
ज़िंदगी तू बहुत हसीन है
ज़िंदगी तू बहुत खूबसूरत है !
#ज़िंदगीबहुतखूबसूरतहै #मंजुलभारद्वाज
कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...