चैतन्य
-मंजुल भारद्वाज
‘चैतन्य’ निजता का ध्वंस कर
एकाकार को सृजित करता है!
व्यवहार व्यक्तिगत का निर्माण कर
‘निजता’ को जन्मता है!
‘कलाकार’ ‘चैतन्य’ का स्वामी
व्यक्ति ‘निजता’ का गुलाम!
‘निजता’ की जंजीरों को
कलाकार अपने ‘चैतन्य’ से तोड़कर
उन्मुक्त होकर
व्यापक ‘क्षितिजों’ में रचता है
एकाकार ‘कलात्मक’ ब्रह्माण्ड!
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