Saturday, November 9, 2019

भेड़ों के समाज में शब्दक्रांति! -मंजुल भारद्वाज

भेड़ों के समाज में शब्दक्रांति!

-मंजुल भारद्वाज

धर्मान्धता के आडम्बरों में

सदियों से सोए

प्रारब्ध की संस्कृति से

अभिशप्त मानस की

चेतना को जगा

इंसानियत का बीज रोपित कर

पेट भरने वाले पशु मात्र से

मनुष्य होने के अहसास

विश्वास की फ़सल

देश में लहलाई

गुलामी की बेड़ियों तोड़

सार्वभौमिक राष्ट्र बन

भारत विश्व में खड़ा हुआ

संविधान सम्मत राष्ट्र

अन्न से आत्म निर्भर हुआ

विचार, प्रगति पथ पर

तेज़ी से बढ़ा

लालच विनाश की जड़ है

यह सूत्र जानते हुए भी

मुनाफ़ाखोर विज्ञापनखोरों ने

भूमंडलीकरण के विनाश को

भारतीय जनमानस में विकास के

दिव्य स्वरूप में प्रस्थापित किया

लालच घर कर गया

विकाश सत्ता के शिखर पर बैठ गया

पहले विकास ने

6 लाख अन्नदाताओं को

आत्महत्या पर विवश किया

मध्यमवर्ग चुप रहा

स्मार्ट सिटी में

बुलेट ट्रेन में सफ़र करते हुए

पडोसी देश को

हर शाम टीवी स्टूडियो में हराकर

उसने देश विकास पुरुष के

सुरक्षित हाथों में सौंप दिया

बेटियों की चीत्कारों से

देश में हाहाकार है

न्याय को एनकाउंटर से ध्वस्त कर

प्रतिशोध की आग में

जलता हुआ समाज

मीडिया की मंडियों में

हैवानियत पर ताली बजाता है

भात भात मांगती बच्ची

विकाश पुरुष के डिजिटल इण्डिया में

भूख से मर जाती है

विकास पुरुष देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर

5 ट्रिलियन के जीडीपी का ख़्वाब दिखाता है

मुर्छित कोर्ट से राम मंदिर का फ़ैसला करवा

हिन्दूराष्ट्र की नींव रखवाता है

स्वर्ग को धरती से मिला

देश के संविधान को तार तार करने की

मुहीम चलाता है

भारत नाम के विचार को

सत्ता के आकंड़ों से ध्वस्त करता है

संसद में संविधान को लहूलुहान कर

धर्म के आधार पर

नागरिकता का डंका बजाता है

विकारी सत्ता लोलुप

देश को रौंदता हुआ

वोट की फ़सल लहलाता है

विकारी सत्ता की भूख में

पूरे समाज को चबा जाता है

शब्दक्रांति का पैरोकार

मैं, केवल और केवल

सत्य,विचार,विनय

विवेक की जीत की उम्मीद को

आखरी सांस तक थामे

भेड़ों के देश में

निरर्थक शब्द रचनाओं से

चेतना का बीज बोता है!

#भेड़ोंकासमाज #शब्दक्रांति #मंजुलभारद्वाज

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