जुगनू
-मंजुल भारद्वाज
यह मजनू होते हैं
इश्क़ की आग में जलकर
अपने मिलन,उत्सर्जन का
उत्सव मनाते हुए
दुनिया को रोशन कर जाते हैं
गर्मी,उमस भरे दिनों में
बारिश की आहट मिलते ही
किसी पेड़ को जगमगाते हुए
यह प्रेम उत्सव मनाते हैं
हजारों की संख्या में
अँधेरी रात को रोशन करते हुए
आपको गुदगुदाते हैं
आपके अंदर प्रेम,प्रणय
आनंद और उन्मुक्तता की
चिंगारी लगाते हैं
घंटों इनको देखते हुए आप
इनकी दुनिया में विचर जाते हैं
मोहक,सम्मोहक अद्भुत स्निग्ध दृश्य
आँखों में समां आप उनके साथ हो लेते हैं
प्यार में जलने के लिए
एकाकी मन,अकेलपन,बोझिल मन में
एक तरंग,उमंग,ताज़गी,उत्साह
ठहरे वक्त में प्राण फूंक
मन्नत की जन्नत में
नयी कल्पनाओं का संसार बसा जाते हैं
दरअसल यह जुगनू विद्रोही होते है
रात को जगमगा कर
सूर्य की प्रस्थापित सत्ता को चुनौती देते हैं
सभ्यता के ढकोसलों में जकड़े
प्रेम के दुश्मन मनुष्य को
स्वयं प्रकाशित हो
प्रेम का पाठ पढ़ा जाते हैं!
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