फ़लसफ़ा
- मंजुल भारद्वाज
मुठ्ठी भर ख़ाक में सिमटा
अपेक्षों का आसमान
सांसों में अग्नि
आंखों में समंदर
तूफ़ानों से मुक़ाबिल
जज़्बात है ज़िंदगी !
अरमान दुआओं से
जहां में बिखरते हैं
बनते,संवरते,टूटते हैं
प्रतिशोध के ज्वार को
क्षमा से शांत कर
प्रार्थना का रुहानी
अहसास है ज़िंदगी!
वक्त के सफ़ों पर
अपने होने की
दास्तां लिख
ख़ाक से उठकर
ख़ाक होने का
फ़लसफ़ा है ज़िंदगी !
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