आजकल
- मंजुल भारद्वाज
पहले अपनी सांसों पर जीते थे
आजकल
उधार की सांसों पर
ठाठ करते हैं लोग !
पहले
विश्वास कमाते थे
आजकल बिकने को
विकास समझते हैं लोग !
कहां तो आंधियों में
चराग जलाने की जिद थी
आजकल जलता दीया बुझाने का प्रण लेते हैं लोग !
सच, इकबाल, इंसाफ
कभी मुक्ति की डगर थी
आजकल कमल के नाम पर
झूठ बोल राज करते हैं लोग !
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