आंखों में चमकती
लक्ष्य लौ से स्पंदित
स्थापित मानदंडों को
पिघलाती हुई
बेलाग आग
धधक रही है
संवेदनाओं के गर्भ में
दृष्टि सम्मत लक्ष्य को
साधती हुई !
- मंजुल भारद्वाज
कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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