एक समय ऐसा होता है
- मंजुल भारद्वाज
एक समय ऐसा होता है, जब सारे प्रश्न बेमानी लगते हैं
सब जिज्ञासा फौरी लगती हैं, सारे प्रतिबद्धता के शब्द सतही लगते हैं
सारी अपेक्षाएं बोझ बन जाती हैं , आप का अपना अक्स
अपने आप धुंधला हो जाता है, आप अपने आप में
एक सवाल बन जाते हो, आप का हर शब्द चुभता है
आपकी वाणी नश्तर, तीर की तरह लगती है
आपका जूनून कर्तव्य, पागलपन बन जाता है
सब आपकी मंशा पर , ध्येय पर शक करते हैं
ऐसा समय ,समय नहीं होता, काल होता है,जो आपके होने को आजमाता है
आपके विश्वास को चुनौती देता है, आपकी धारणाओं को झकझोरता है
आपके मूल्यों का अवमुलन करता है ,आपके अनुभव को झुठलाता है
ऐसे ‘काल’ को सच्चा ‘कलाकार’, कान से पकड़ कर ‘आकार’ देता है
उसकी विध्वंसक मंशा को निमार्ण उर्जा में परिवर्तित कर
उसे ‘समय’ बनाता है और
सृजता है अपना सकारात्मक ‘संसार’ !
……….
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