वो साथ साथ चलता रहा
... मंजुल भारद्वाज
आज वो साथ साथ चलता रहा
साथ साथ चलते चलते
वो हम सफ़र हो गया
ना आज मेरी आँख उठी
ना उसकी आँख झुकी
हम बराबरी पर थे
और नज़रें मिल गयी
ना मैं आगे बढ़ रहा था
ना वो पीछे हट रहा था
सफ़र में
आज हम साथ साथ चल रहे थे
बड़ा खुबसूरत इत्तेफ़ाक है
हज़ारों मील की दुरी है
फिर भी साथ साथ हैं
नज़रें जब रूमानी हो गयी
तो लुका छिपी का खेल
शुरू हो गया
उसका चमकता शबाब
बादलों से ढक गया
कभी साफ़ कभी धुंधला
उसका अक्स नज़रों में उतरता रहा
और मैं बादलों मैं तैरता रहा
वो साथ साथ चलता रहा
बड़े अदब से वो देखता रहा
शालीन , शीतल स्वभाव है उसका
सफ़र के हिचकोलों में उसने
नज़रें नहीं चुराई
वो चाँद बनकर
मेरे जीवन में चमकता रहा
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