कविता
- मंजुल भारद्वाज
विचार प्रवृति , विचार प्रकृति
अपने दृष्टि आलोक के
शब्दों पुष्पों को
भावनाओं के आँचल में
करीने से सजाकर
एक गुलदस्ता बनाती है
जिसको हम ‘कविता’ कहते हैं !
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कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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