जड़ता का चक्रव्यहू
-मंजुल भारद्वाज
अपने बाहुपाश में
जकड़े रहती है
मनुष्य देह
मात्र प्राणी हो
उम्र काट जाती है
चेतना उड़ जाती है
जड़ता आस्था का रूप धर
समाज में स्थापित हो
अपने वर्चस्व का परचम लहराती है
देह की मूर्ति बना
समाज पूजता है
चैतन्य,विचार,आदर्श और मूल्यों की
मूर्ति पूजन में आहुति दी जाती है
संसार व्यवहार के वशीभूत
मूर्तियों को पूज पूज कर
मोक्ष के मार्ग में समर्पित हो
चेतना जगाने वालों की
मूर्ति पर बलि चढ़ा देता है!
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