Saturday, February 4, 2023

आत्मप्रकाशित -मंजुल भारद्वाज

 आत्मप्रकाशित

-मंजुल भारद्वाज
आत्मप्रकाशित  -मंजुल भारद्वाज


पेट के लिए जीने वाले 
इसी जन्म में निपट जाते हैं 
इंसानियत को प्रतिबद्ध रूह 
अनंतकाल तक अलख जगाती है !
परछाई में लिपटे जिस्म
परावलंबन से जूझते हैं 
सर पर सूरज को तपाने वाले 
स्वावलंबन का शिखर बन जाते हैं !
व्यवहार और संसार के 
चक्रव्यूह को भेदना आसान नहीं
आत्मप्रकाशित वैतरणी को 
इस धरा पर उतार लाते हैं !

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