उगा था वो अंतर्मन में
- मंजुल भारद्वाज
उगा था वो अंतर्मन में
अपने होने की खुशबू से
मैं उसके वजूद को महका आया
अपने अहसास की तरंगों से
मैं सदा सदा के लिए
उसको रंग आया !
कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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