Friday, July 29, 2022

आजकल - मंजुल भारद्वाज

 आजकल

- मंजुल भारद्वाज

आजकल  - मंजुल भारद्वाज


पहले अपनी सांसों पर जीते थे

आजकल

उधार की सांसों पर

ठाठ करते हैं लोग !


पहले

विश्वास कमाते थे

आजकल बिकने को

विकास समझते हैं लोग !


कहां तो आंधियों में

चराग जलाने की जिद थी

आजकल जलता दीया बुझाने का प्रण लेते हैं लोग !


सच, इकबाल, इंसाफ

कभी मुक्ति की डगर थी

आजकल कमल के नाम पर

झूठ बोल राज करते हैं लोग !




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