इश्क़ जीवन सार है
-मंजुल भारद्वाज
सूर्य और पृथ्वी
ब्रह्मांड के खगोलीय पिंड हैं
एक आग़ का जलता हुआ गोला
दूसरी अपने गर्भ में आग़ समेटे हुए
उसके गिर्द घूमती हुई
अपनी आग़ में जलते गोले को
सूर्य बनाता है
उसका पृथ्वी से इश्क़
सूर्य अपने जन्म से
एक टक तकता है
पृथ्वी को
सूर्य के इश्क़ में पगी पृथ्वी
जीवन की धानी चुनरिया ओढ़
वसुंधरा बन इठलाती है
अपनी धुरी पर घूमती हुई
खेलती है सूर्य से
आँख मिचौली
इस अदा से निर्मित होते हैं
संसार के दिन और रात
सजते हैं ऋतू और मौसम
महकता बहकता है जीवन
अपने को निरंतर
अपनी आग़ में जलाये रखना
सूर्य की समाधि है
जल,वायु,मिटटी
वसुंधरा की खूबियाँ
मुक्त आकाश में
सूर्य के इश्क़ में तपती
वसुंधरा जन्मती है
अपने गर्भ से जीवन
इश्क़ जीवन सार है
इश्क़ ही संसार है!
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