हिंसा को पूजती है दुनिया !
-मंजुल भारद्वाज
मनुष्य क्या है?
हिंसा का पुजारी है
हिंसा का कारोबारी है
मीडिया,सिनेमा से लेकर
हथियारों की बिक्री तक
आदिकाल से आजतक
सिर्फ़ हिंसा ही हिंसा जारी है !
विडम्बना है
हिंसा न्याय का नारा बन जाती है
सत्ता बंदूक की गोली से निकलती है
और
प्रगतिशीलता का पर्याय बन जाती है !
धर्मरक्षा का ध्वज
मनुष्यों के खून से रंगा होता है
राम–कृष्ण विचार नहीं बदल पाते
जनसंहार धर्मयुद्ध
और
हत्यारे अवतार बन जाते हैं
जिनको युगों युगों तक जपा जाता है
हिंसा और नरसंहार के लिए !
ढोंग है वो धर्म
सभ्यता,संस्कृति,प्रगतिशीलता
जिसकी जड़ में हिंसा हो !
मनुष्य अपनी हिंसा से मुक्त नहीं हो पाया
उसके लिए हिंसा न्याय का मार्ग है
सर्वहारा की सत्ता के लिए हिंसा
पूंजीवादी सत्ता के लिए हिंसा
आज दुनिया में सारे सत्ताधीश गिद्ध हैं
सारी सत्ता मनुष्य की कत्लगाह !
ऐसे प्रलयकाल में
अहिंसा के सूर्य हैं
बुद्ध और गांधी
पर हिंसा को पूजने वाली दुनिया को
क्या वो दिखाई देते हैं?
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