यह निराशा का नहीं जवाबदारी के निर्वहन का काल है!
- मंजुल भारद्वाज
जिस देश की आबादी युवा हो
जिस राष्ट्र में युवा सबसे ज्यादा हों
युवाओं की जनसंख्या के आधार पर
जो राष्ट्र युवा हो
वो राष्ट्र वैचारिक संकट से गुजरता है
और ऐसा भूमंडलीकरण के काल में हो
तो कोढ़ में खाज
ऐसे समय में
तर्क और विवेकहीन
राष्ट्र पैदा होता है
ऐसे दौर में
तर्कसंगत और विवेकशील
अपने आप को निराश
अर्थहीनता के अपराध बोध से
घिरा पाते हैं
दरअसल यह अपेक्षाओं की
भ्रामक अवस्था है
उसका कारण यह मान लेना है
‘युवा’ अपने आप विचार
तर्कसंगत और विवेकशील होगा
वो भी बाज़ार की भट्टी में
हाँ यह होगा पर समय लगेगा
उसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी
शायद एक राष्ट्र के रूप में
हम ‘एक’ ही ना रहें
इसलिए तर्कसंगत और विवेकशील
कौम के पास निराशा में
झूलने का समय नहीं है
उनके ऊपर एक तर्कसंगत
विवेकशील समाज गढने की
जवाबदेही और ज़िम्मेदारी है
इसलिए अर्थहीन और उदासीनता को
तिलांजलि दे
उत्साह के प्रतिबद्ध संबल और संयम से
आओ पुन: मनुष्यों का समाज घड़े!
...
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