रूहों का कहाँ बसेरा होता है!
- मंजुल भारद्वाज
हवाओं का कहाँ वतन होता है
चरागों का कहाँ मकां होता है
जिस्मों का घर होता हो
रूहों का कहाँ बसेरा होता है!
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कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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