यूँ ही आज फिर से
-मंजुल भारद्वाज
यूँ ही आज फिर से
खुद को ललकारने की ज़िद है
ढ़लती छाँव को
उगते सवेरे में बदलने की ज़िद है
उपलब्धियों को जला
उसकी आग में तपते हुए
नए क्षितिज की ओर चलने की ज़िद है
काल से अर्थहीन हुए
समाज की राख में
जीने की आग जलाने की ज़िद है
आज फिर यूँ ही
खुद से खुद को रूबरू कराने की ज़िद है!
#खुद #यूँही #मंजुलभारद्वाज
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