घने कोहरे में !
-मंजुल भारद्वाज
घने कोहरे में
पसीजता मन
भिगो देता है
सारे जंगल को !
मोहब्बत की निशानियाँ
चमकती हैं
डाल डाल
पत्ती पत्ती
ओस की बूंद बनकर !
महबूब के नूर से
जगमगाती है कायनात
इंसानियत का पैगाम लिए
खिलता.महकता है गुलशन
पर्वतों से गिरते झरनों में
प्रेम धुन बजाते हुए !
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