Friday, August 25, 2023

बापू - मंजुल भारद्वाज

बापू

- मंजुल भारद्वाज


बापू  - मंजुल भारद्वाज


दरकता है

टूटता है

भीतर ही भीतर

जब लोक भीड़ बन जाता है !


तन्त्र भीड़ बने लोक का शोषण करता है

वेदना तब असहाय हो जाती है

जब भीड़ बना लोक

शोषक को मसीहा समझता है !


चेतना के मंच पर

उभरते हैं गांधी

गाँधी से असंख्य प्रश्न पूछता हूँ मैं

क्या अहिंसा मुक्ति का मार्ग है?

अगर है तो

दुनिया जब से बनी है

तब से अब तक

पत्थर से परमाणु बम को क्यों पूजती है?

भूखे देश रोटी नहीं

हथियार क्यों खरीदते हैं?


क्यों बापू नरसंहार करने वाले

अवतार बनाकर पूजे जाते हैं

क्यों सत्ता विचार,विवेक से नहीं

बंदूक की गोली से निकलती है?


बापू मौन है !

बोलो बापू आपका आखरी आदमी

क्यों नहीं लड़ता अपने लिए?

क्यों वो अपने उद्धार के लिए

किसी मसीहा का इंतज़ार करता है?


बापू मौन है !

बापू आप किस भारत में पैदा हुए

वर्णवाद के गर्त में धंसे भारत में

छुआछूत को इमां मानने वाले भारत में

महिलाओं को गुलाम मानने वाले भारत में

देश,समाज नहीं जाति के नाम

मर मिटने वाले भारत में ?


राजा रजवाड़ों में बंटे भारत को

राजा को भगवान मानने वाली प्रजा को

सत्ता से दूर

समाज के हाशिये पर रहने वाली

सदियों से गुलाम जनता में

राजनैतिक चेतना कैसे जगाई

तुमने बापू ?


तुम्हारे समय में सोशल मीडिया नहीं था

संचार माध्यम पर अंग्रेजों का कब्ज़ा था

जनता अनपढ़ थी

फिर ऐसा क्या कहा

ऐसा क्या बोला बापू आपने

जो आज पढ़े लिखे होने के बावजूद

कोई मूर्छित भीड़ की मूर्छा नहीं तोड़ पाता?


बोलो बापू

बोलो बापू

तुमसे पहले अहिंसा के मार्ग पर

किसी ने सत्ता नहीं पाई

सबने हिंसा से सत्ता पाई

हिंसा को न्याय पाने का मार्ग समझा

फ़िर आप में वो कौन सा आत्मबल था कि

आप अकेले अडिग रहे

आपको छोड़कर लोग चले गए

पर आप अहिंसा पर टिके रहे

कैसे ?

हे सत्य को साधने वाले

हे सत्य को खोजने वाले

हे सत्यमेव जयते के सिद्ध व्यक्तित्व

कैसा लगता है आपको

जब आपकी तस्वीर पर

झूठा व्यक्ति फूलमाला चढ़ाता है?


बापू मौन हैं

मैं प्रश्न पूछते पूछते

अपने अंतर्मन में उतर गया

आदर्श बना बनाया नहीं मिलता

सत्य अपने आप नहीं साधा जाता

जीवन व्यवहार की भट्टी में तपकर

सत्य रोशन होता है

हिंसा मनुष्य के डीएनए में होती है

अहिंसा तपस्या से साधी जाती है

अहिंसा विवेक के साथ से

विचार को शक्ति देती है

ऐसा आत्मबल जगाती है

जो अडिग होकर

सत्य की डगर पर

निडर होकर चलता है ....

आदर्श समय कोई नहीं होता

पर्याप्त सामग्री और संसाधन कभी नहीं होते

चुनौती को स्वीकार कर

विवेक –विचार से आत्मबल के धरातल पर

सृजनशीलता के सूर्य से

अँधेरे को सवेरे में बदलना होता है ....

मेरे आत्मसंवाद पर

बापू मुस्कुरा दिए .... 

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