Thursday, March 9, 2023

मनुष्य होने की सार्थकता - मंजुल भारद्वाज

 मनुष्य होने की सार्थकता

- मंजुल भारद्वाज

मनुष्य होने की सार्थकता  - मंजुल भारद्वाज


तुम्हारी हद जहां ख़तम होती है
वहां से मेरा क्षितिज शुरू होता है 
तुम यथार्थ का समंदर हो
मैं कल्पनाओं का आसमान 
हदों के पार पलती हैं उम्मीद
जिससे जन्म लेते हैं ख़्वाब 
मंथन होता है यथार्थ के भ्रम का
जड़ता के विष को निष्क्रिय करता हुआ
उभरता है चैतन्य का 
अमृत तुल्य क्षितिज
जहां बसता है हमारा विश्व 
इंसानियत के सुंदर सपनों से सजा 
मनुष्य होने की सार्थकता को
सिद्ध करता हुआ!

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