कब इंसान बनेगी?
- मंजुल भारद्वाज
पल्लू, घूंघट,नक़ाब या हिज़ाब पहनी
दुनिया को जन्म देने वाली
मर्दों की दुनिया में
संस्कार,संस्कृति के नाम शोषित
सीता,सिमरन,सूजी और सलमा में?
कोख,गर्भ कुदरत की
सृजन नियामत है
पर कुदरत की नियामत को
अनंतकाल तक शोषण का अभिशाप
मानने वाली,बनाने वाली
कब जागेगी ?
मां,बहन,बेटी,
बीवी बनाई जाने वाली
कब इंसान बनेगी ?
ये सूरत उन्हीं को बदलनी है
जो इस सूरत में हैं
तू खुद को बदल
तू खुद को बदल
तभी नज़र और नज़रिया बदलेगा !
पर सवाल है
सदियों से दुनिया भर में
धर्म,सामंतवाद,
पितृसत्ता और पूंजीवाद की गुलाम
आधी आबादी
कब अपने हकों के लिए
आर पार का संघर्ष करेगी
भारत के संविधन की शान बनेगी !
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