सांस्कृतिक सृजनकार !
-मंजुल भारद्वाज
मन के उपवन में
हरे भरे सपनों के बीच
प्रेम के धरातल पर खड़ा
कहीं एक अरमानों का आशियां हो
तलाव की सतह पर
नाचती बूंदों के साथ
चाहतों का इंद्रधनुष
जीवन आकाश में खिला हो
जहां धानी चुनर ओढ़े
एकांतवास में समाधिस्थ है
सृजन सत्व में भीगता
सांस्कृतिक सृजनकार!
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