आओ रूमानी हो जाएँ
-मंजुल भारद्वाज
रोम रोम में बसी
रोम रोम से झरती
इंसानियत ही तो रूमानियत है
जो मिटाती है दहशत
नफ़रत,द्वेष और हिंसा
उगाती है
पल्लवित करती है प्रेम
आत्मीयता और समर्पण
रूमानियत पगी आँखों से
देखो जग सारा
रूमानियत की चादर ओढ़
विष मुक्त हो सारा विश्व
रूमानियत विश्व की
सबसे बड़ी धरोहर है
आओ रूमानी हो जाएँ
मनुष्य होने के संकट काल में
झुलसी हुई मानवता में
थोड़ी थोड़ी इंसानियत जगाएं
आओ रूमानी हो जाएँ!
#आओरूमानीहोजाएँ #मंजुलभारद्वाज
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