Tuesday, July 23, 2019

उत्सव मनाते हुए -मंजुल भारद्वाज

उत्सव मनाते हुए
                                                                                   -मंजुल भारद्वाज
उत्सव मनाते हुए
हमेशा धे्यय को ध्यान में रखिये 
इस पल के हासिल की खुशी 
अनुभव ,सीख को अपनी दृष्टि से जोड़िए
विविध मत ,विविध रंग हैं 
एकाधिकार और उसके वाद से बचिए
विविध रंगों से, विविधता के गुलदस्ते को सजाइये
भारत विविध है, विविधता का विधाता है

हाँ हमारा अवतार को पूजने वाला मानस है 
वो ‘अवतार’ व्यक्ति नहीं ‘विश्व स्वरूप’ है 
सत्ता पा लीजिये , सत्ता भोग लीजिये 
सत्ता पता नहीं कितने भोग कर चले गए 
चाहे वो देसी हो या विदेशी 
इस देश ने ‘गंगा’ स्नान कर 
उनका मैल धो लिया,
हर बार ‘रूहानी’ चमक बढ़ी 
ऐ इतिहास का बदला लेने वालो 
इतिहास के कब्रिस्तान में दफ़न होने की बजाए, 
इतिहास का निर्माण करो 
मालुम है तुम इतिहास नहीं रच सकते 
क्योंकि तुम भारत वर्ष की दृष्टि
विचार , संस्कृति और विरासत से अनभिज्ञ हो 
तुम जानते हो तो सिर्फ़ ‘कर्मकांड’ 
विशिष्ट भाषा के मन्त्र 
तुम वेदों के संस्कारी नहीं हो 
नफरत, हत्या वध के पुजारी हो 
तुम अपनी ओछी सत्ता लोलुपता 
के लिए ईश्वर का व्यापर करने वाले हो
ये देश किसी आक्रमणकारी ने नहीं लूटा
ये देश तुम्हारे जैसे ‘जयचंदों’ ने लुटवाया है 
‘राष्ट्र’ भक्ति की आड़ में,वर्ण व्यस्था के कंकाल में 
दफ़न करना चाहते हो ना इसके संविधान को 
‘वोट’ की ताकत’ के दम और जीत के दम्भ पर 
दुनिया के सबसे बड़े ‘लोकतंत्र’ को ‘भीड़तन्त्र’ के 
गटर में धकेलकर, रामनामी चादर उढाना चाहते हो 
तुम न्याय के मन्दिरों पर ‘भगवा’ फहराना चाहते हो 
क्योंकि ‘तिरंगा’ कभी तुमने स्वीकारा नहीं 
तुम ऐसा कर पा रहे हो क्योंकि 
जीन्स, टी शर्ट पहने युवा 
आपकी व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से 
इतिहास की पीएचडी किये हुए है 
ये तकनीक को ‘विज्ञान’ समझने वाले 
मानसिक बीमार ‘मॉल’ के सजावटी पुतले है 
मुफ्त में पाई ‘आज़ादी’ की कीमत नहीं जानते 
भूमंडलीकरण के ‘विकास’ में अपना कल्याण 
खोजने वाली ‘पीढ़ी’देश की खोखली फ़सल है 
तुम इसी की ताक में थे 
काल ने तुम्हें सुनहरा अवसर दिया है 
न्यायालय, चुनाव आयोग और मीडिया 
सब भक्तिमय होकर तुम्हारा जयकारा कर रहे हैं 
किसान आत्महत्या और जवान शहीद हो रहे हैं 
हे पाखण्डियो देश में ‘भगवा’ फ़हराने का 
तुम्हारा ये ‘स्वर्णकाल’ है 
1925 से 2014 तक..89 वर्ष इंतज़ार किया है 
अब भोगवाद की लालसा और मानसिक रूप से बीमार 
मध्यमवर्ग और युवा आपके साथ है 
पर ‘तिरंगे’ की आन को बचाने के लिए 
अपनी ‘आहुति’ देने के लिए एक देशभक्त 
‘सर’ है जो तुम्हें अपनी सृजनशीलता से ललकारता है 
संवाद के लिए, राष्ट्र पर बहस के लिए 
पर संवाद तुम्हारा संस्कार नहीं है 
मिथ्या प्रचार और भावावेग का अंधापन 
हत्या और अत्याचार तुम्हारा श्रुंगार है 
रक्तपिपासुओ आओ मेरे ‘रक्त’ से 
भारतभूमि को गौरान्वित करो 
ताकि ‘सर’ ही सर तुम्हें मिलें 
और ये धरती देशभक्तों के लहू से नहा सके 
और तुम्हारे जैसे पाखंडी 
अपनी घृणा की गुफ़ा में दफ़न हो जाएँ 
एक मजबूत ‘भारत’ का तिरंगा 
शान से ‘संविधान’ का परचम फहराता रहे !
.....




No comments:

Post a Comment

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज

 कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं  एक सम्पति हो  सम्पदा हो  इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में  कभी पिता की  कभी भाई की  कभी ...