प्रस्तुति
- मंजुल भारद्वाज
पर्वतों के शिखर पर
वादियों के बीच
मैं कर रहा हूँ
रंगकर्म
उन्मुक्त भाव से
जिसकी अभिव्यक्ति है
स्वछंद ,स्वतंत्र, उन्मुक्त
प्रस्तुति है
पवित्र ,पारदर्शी
ये मिलन है
धरती और आसमान का !
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