स्पंदन
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कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज
कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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मनुष्य के अंदर धर्म कितना ज़हर भरता है वो इस ज़हर से मोहब्बत को मारता है प्रेम से बड़ा है वर्ण प्रेम के हत्यारे हैं जात और धर्म इंसानियत क...
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कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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मी वेडेपणा शोधतो आहे…. - मंजुल भारद्वाज मला तुम्हाला वेडं करायचंय...., मी शोधतो आहे इतिहासात होता ...
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