रंग कारवां
-मंजुल भारद्वाज
सांसों की ताल पर नाचते
अपने नृत्य से
नाभि के सृजन चक्र को
मस्तिष्क के चैतन्य से आलोकित कर
अपने होने का
सृजन उत्सव मना रहे हैं !
अपने होने की खुशबू से
महकता रंग अस्तित्व
विकार को विचार का
पथ दिखा
घनघोर निराशा के अंधेरों में
उम्मीद का दीया जला रहा है !
सौन्दर्य बोध की किरणों से
आसपास पसरे वीभत्स को भेद
प्रकृति की निर्मलता से
जीवन को स्वयं प्रकाशित कर
रंग कारवां खूबसूरत दुनिया का
नया इतिहास रच रहा है !
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