जीवन कहीं खो गया है
-मंजुल भारद्वाज
जीवन कहीं खो गया है
खिल रहा था
जो तेरी रानाइयों में
कल तक
वो आज निज़ाम की
सलीब पर लटका है!
तेरी मुस्कान सी कभी
खिलती थीं कलियाँ
चमन में
आज वहां ख़िज़ां का डेरा है!
आरज़ू मुस्कुराने की
ठहराई जाती है जुर्म
तुम्हें क्या बताएं
हर सांस पर हुकुमत का पहरा है!
जहाँ आवाज़ उठी थी
कल जो इंकलाब की
दीवारें गिरी थीं
जब तख़्त-ओ-ताज की
आज वहां गद्दारों का बसेरा है!
क़िस्से कहानियों में कल तक
चमन मेरा था सोने की चिड़िया
आज वहाँ भूख से मरते
कंकालों का कोहराम है!
कल तक हर लेते थे
जीवन की हर पीड़ा राम
आज कलयुग में
मर्यादा में कैद हैं राम
जिस पर रावण का पहरा है!
तमन्ना जीने की
गूंजती थी फ़िज़ा में कल तक
आज वहां
मरघट का सन्नाटा है!
गुलज़ार हो जीवन
ना हो ख़ार का बसेरा
इस आस में हमने
गर्दन में विद्रोह का फंदा
अपने हाथों से पहना है!
#जीवन #मंजुलभारद्वाज
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