आत्मप्रकाशित
-मंजुल भारद्वाज
इसी जन्म में निपट जाते हैं
इंसानियत को प्रतिबद्ध रूह
परछाई में लिपटे जिस्म
परावलंबन से जूझते हैं
सर पर सूरज को तपाने वाले
स्वावलंबन का शिखर बन जाते हैं !
व्यवहार और संसार के
चक्रव्यूह को भेदना आसान नहीं
आत्मप्रकाशित वैतरणी को
इस धरा पर उतार लाते हैं !
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