मजबूरी को इंकलाब बना दे!
-मंजुल भारद्वाज
सार्वजनिक रुदन या हास्य को
सरल भाषा में लिखे
सरल रचना को
आम जन समझें
रचना लोकप्रिय हो जाए,बस!
क्या इतना भर
दायित्व है रचनाकार का?
या रचना आम अभिव्यक्ति के परे
पाठक को बदलाव के लिए
झकझोरे
उद्वेलित करे
उत्प्रेरित करे
देशबंदी में
पलायन करने को मजबूर
मजदूरों की भीड़ देखिये
एक डंडे के सामने
गिडगिडाने वाले
मेहनतकश हाथ देखिये
एक रचना ऐसी हो
जो इस भीड़ को
समूह बना दे
डंडे के प्रतिरोध का
बिगुल बजा दे
इनका रास्ता
संसद की तरफ़ मोड़ दे
मजबूरी को इंकलाब बना दे!
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