Sunday, April 10, 2022

मर्यादा नहीं वर्णवाद का नायक ! - मंजुल भारद्वाज

 मर्यादा नहीं वर्णवाद का नायक !

- मंजुल भारद्वाज

आपके मानस में 

दीमक लगा है

किसी काव्य के नायक को

संस्कृति का आधार बना

अलग अलग तरह के कर्मकाण्ड से

आपके डीएनए में बसा दिया जाता है 

आप दिन रात उसे भजने लगते हैं

आस्था की अंधी गुफ़ा में 

पीढ़ी दर पीढ़ी गरकते रहते हैं

आपकी सोच में वर्णवाद पसर जाता है

आप मनुष्य नहीं रहते

वर्णवाद के वाहक बन जाते हैं

जाति को संस्कार मानते है

वर्ण को संस्कृति 

और पिसते रहते हैं

शोषण,हिंसा,छुआछूत की चक्की में

काव्य नायक पता नहीं कौन सी मर्यादाओं का संवाहक है

वो ना वर्ण के चक्रव्यूह को भेद पाता है

वर्ण की शिकार नारी को

अग्नि परीक्षा के जाल में

जन्मा जन्मांतर तक उलझा जाता है

ना वर्णरहित राज्य की स्थापना कर पाता है

सदियों तक वो बस वर्णवाद का वाहक बना रहता है 

वर्णवाद मनुष्यता के लिए ज़हर है

समता,न्याय, अधिकार, प्रेम का शत्रु है

वर्णवाद प्रकृति का शत्रु है

हिंसा वर्णवाद का मूल है

वर्णवाद के मूल में वर्चस्ववाद पलता है

जो ब्राह्मणवाद को श्रेष्ठ मानता है

जिसके चक्रव्यूह में जन्म से मृत्यु तक

आप उलझे रहते हो 

विनाशकारी यह है की आप इस गुलामी को

अपना जीवन मानते हो 

काव्य नायक की हिंसा को 

गांधी नकार पाए 

पर जन मानस में वर्णवाद को मिटा नहीं पाए

स्वयं उसका शिकार हो गए

काव्य नायक को भजते गांधी

काव्य नायक के नाम पर मारे गए

मरते मरते भी गांधी काव्य नायक को भजते रहे

अहिंसा का नायक 

काव्य नायक के वर्णवाद से मारा गया 

इस देश को वर्णवाद से मुक्ति की दरकार है

काव्य नायक के ब्राह्मणवाद के भ्रम जाल से परे

मानवीय चिंतन वक्त की पुकार है !

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