सफलता कोई मंजिल नहीं,जीवन दृष्टि की यात्रा है!
-मंजुल भारद्वाज
सफलता का क्या अर्थ है
गांधी देश को आज़ाद
कराने में सफल हुए
या देश के बंटवारे के
जिम्मेवार घोषित हुए?
विश्व में भारत को
सम्प्रभुता सम्पन्न राष्ट्र के रूप में स्थापित कर
क्या नेहरु सफल हुए
या कश्मीर समस्या के कारण बन गए?
संविधान में सबको समानता का
मौलिक अधिकार दे अम्बेडकर
समता,समानता और न्याय की प्रेरणा बने
या जन्म के संयोग को चुनौती देने के लिए
आरक्षण का प्रावधान करने पर
जातिवादी और सामाजिक भेदभाव को
बढ़ाने के जिम्मेदार बने?
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को
एक डिजिटल आर्थिक महासत्ता
बनाने वाली कांग्रेस सफल हुई
या 70 साल में कुछ नहीं हुआ की शिकार हुई?
सफल क्या है
1950 का निरक्षर पर विवेक सम्मत गणराज्य
या 2019 का साक्षर पर विवेकहीन राष्ट्र?
सफलता की चुनौती है
पचन प्रकिया
यह पचन हो नहीं पाता
सांसारिक मापदंड आपको
सहज नहीं रहने देते
अचानक चाहने वालों की
पूछने वालों की
भीड़ बढ़ जाती है
ऐसा लगने लगता है
बस अब सब पा लिया
यही बिंदु पचन प्रक्रिया को
बाधित करता है
पचन वमन में बदल जाता है
इसमें सबसे पहले विचार
फिर प्रतिबद्धता, फिर सात्विकता
बाहर निकल जाते हैं
शेष रहता है व्यवहार का मवाद
कला में तो पैसा प्रसिद्धि ही कला है
कभी कभार आने वाले भटकाव को
हम खोज समझ लेते हैं
आउटिंग को एक्सप्लोरेशन का नाम देते हैं
मूल कलात्मक चुनौतियों से भागकर
‘कला सत्व’ सृजित नहीं होता
एकांतवास की भट्टी में तपे बिना
‘चैतन्य सिद्धि’ प्राप्त नहीं होती
कलाकार का साधना कक्ष है
‘एकांतवास’
यह कलाकार की कस्तूरी है
बाक़ी सफ़ल होने का भ्रम
सफलता कोई मंजिल नहीं
जीवन दृष्टि की यात्रा है!
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