ताकि सनद रहे...
गांव अभी दूर है
- मंजुल भारद्वाज
जिनके लहू में जान थी
वो चल पड़े
जिनका लहू पानी है
वो बिलों में छुपे रहे
हां आजकल
विकास युग में
चूहे महानगरों में रहते हैं
आलीशान चार दीवारों में कैद
अपना सर्वमूल विनाश देखते हुए
अभिशप्त कौम है
यह ना घर के रहे ना घाट के
गांव के हुए नहीं
शहर इनका होगा नहीं
हां कभी कभी तफ़रीह में
गांव इनके सपनों में आता है
हर बार गांव इनसे दूर हो जाता है
यह शहर के पाताल में
धंसते चले जाते हैं!
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