खंडहरों में उगे फूल सी
-मंजुल भारद्वाज
कविता सिर्फ़ वाह वाह नहीं होती
कभी दर्द और आह भी होती है
भावनाओं के सैलाब को
बूंद बूंद आँखों से बहाती है
कभी होले से मंद मंद मुस्काती है
सुखांत,दुखांत का एकांत
अपने आप से संवाद है कविता
दमित भावों की गति
विद्रोह की आग है कविता
भीड़ में अकेले होने का अहसास
अकेलेपन का संबल है कविता
घोर,भीतर,गह्वर में दबी
सच्चाई का भेद है कविता
खंडहरों में उगे फूल सी
संवेदनाओं का मर्म है कविता!
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#कविता #मंजुलभारद्वाज
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