पहर दर पहर
-मंजुल भारद्वाज
पहर दर पहर
आँखें
राह तकती हैं
जाने सूनी राह में
किसका इंतज़ार करती हैं !
कान अपने आप
किसी आहट के
सुनने की प्रतीक्षा करते हैं
अपने आप आहट का
निर्माण करते हैं !
एक पुर-कशिश
गरमाहट से
रोआँ रोआँ खिल उठता है
जाने यह कौन है
किसका अहसास है
जो रूह में जा बसता है !
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