कलम
- मंजुल भारद्वाज
क अब भी कायम है
बस ल और म ने
अपनी जगह बदल ली
कलम अब कमल हो गई!
अब किस्सागोई
लोकतंत्र के लिए नहीं
सत्ताधीश की मुफीद हो गई!
कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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